apka akhbarप्रदीप सिंह ।

मानव इतिहास में वैसे तो बहुत से दार्शनिक हुए हैं पर दो नाम हैं जिनका लिखा कई शताब्दियों बाद आज भी उतना ही प्रासंगिक है। चाणक्य का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इसी तरह चीन के दार्शनिक शुन जू की किताब ‘आर्ट ऑफ वॉर’ दुनिया भर के सैनिक अकादमियों और व्यापार प्रबंधन संस्थानों में बड़ी शिद्दत से पढ़ाई जाती है। यहां इन दोनों का जिक्र करने का संदर्भ यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली पर इन दोनों का अच्छा खासा प्रभाव नजर आता है। ऐसा लगता है कि उन्होंने इन दोनों को अच्छी तरह न केवल पढ़ा है बल्कि आत्मसात भी किया है। उनकी राजनीति ही नहीं शासन कौशल पर भी इनका प्रभाव साफ नजर आता है।


 

चाणक्य का जिक्र पहले कई बार कर चुका हूं इसलिए आज शुन जू की बात करते हैं। उनकी किताब बहुत छोटी सी है। उसमें तेरह चैप्टर हैं और पचास सूत्र। आज उनके चार सूत्रों के परिप्रेक्ष्य में मोदी की कार्यशैली का विश्लेषण करने का प्रयास करेंगे। पहला सूत्र- अचरज में डालने की योजना बनाओ। दूसरा सूत्र, खुद को जानो और अपने दुश्मन को जानो। तीसरा,सकारात्मक तत्वों/ कारकों को साथ लेकर चलो। और चौथा,समय को अपना  साथी बनाओ। तो अचरज में डालने की रणनीति प्रधानमंत्री का सहज स्वाभाव बन गया है। पिछले छह सालों में उन्होंने बहुत से बड़े फैसले किए हैं जिन्होंने लोगों को चौंकाया है। शुन जू के मुताबिक इस नीति पर चलकर जो कामयाबी मिलती है वह उसके लिए किए गए प्रयास से बहुत ज्यादा होती है। इसी कार्यकाल के दो उदाहरण हैं।

जम्मू-कश्मीर से संविधान का अनुच्छेद 370 कभी हट सकता है यह तो कल्पनातीत हो गया था। ऐसा कोई प्रस्ताव दो दिन में संसद के दोनों सदनों से दो दिन में दो तिहाई बहुमत से पास हो सकता है, यह तो अस्म्भव ही था। पांच अगस्त 2019 को यह असम्भव इतनी तेजी से सम्भव हुआ कि विरोधियों को संभलने का मौका ही नहीं मिला। यह देखने के बाद भी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कोई सबक नहीं सीखा। लेह-लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना वहां तक आ गई जहां उसे नहीं आना चाहिए था। उन्होंने अपने ही देश के दार्शनिक की सीख को नजरअंदाज किया।

शुन जू का दूसरा सूत्र है कि खुद को जानो और अपने दुश्मन को समझ लो तो सौ लड़ाइयां भी नहीं हारोगे। पहले तो वे भूल गए कि मोदी चौंकाते हैं। पिछले तिहत्तर सालों से चीन ऐसी हरकतें करता रहा है। पर भारत ने कभी( 1962 के युद्ध को छोड़कर) कभी अपनी सेना का भारी जमावड़ा वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नहीं किया। मोदी के ही राज में डोकलाम के समय भी भारत ने ऐसा नहीं किया था। चीन इसी मुगालते में था कि इस बार भी वैसा ही होगा। भारतीय सेना की तौनाती ऐसी है जैसी पूर्ण युद्ध के लिए होना चाहिए। यह चीन की दूसरी गलती थी। वह अपने दुश्मन यानी भारत को समझ नहीं पाया। शुन जू ने आगे कहा कि अगर अपने को जानते हो और अपने दुश्मन को नहीं तो लड़ाई बराबरी पर छूटेगी। यदि दोनों को नहीं समझे तो हार तय है। गलवान में भारतीय फौज ने जिस तरह चीन को जवाब दिया, उससे साफ है कि उसने अपने को(अपने फौजियों की क्षमता) भी समझने में भूल की।

चीन को अचरज का सामना केवल सीमा पर ही नहीं करना पड़ा। आर्थिक मोर्चे पर भी उसे भौंचक्का होना पड़ा। चीन से आयात पर हमारी निर्भरता और व्यापार के परिमाण को देखते हुए वह मुतमइन था कि भारत को मजबूरन व्यापार के मोर्चे पर यथा स्थिति बनाए रखना पड़ेगा। चीनी ऐप्स पर प्पतिबंध से चीनी कंपनियों पर एक के बाद एक वार का सिलसिला अभी रुका नहीं है। मेक इन इंडिया देश के लिए था। आत्मनिर्भर भारत उसी का विस्तार था। पर मेक फॉर वर्ल्ड की नीति का ऐलान चीन को दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब होने का गुरूर तोड़ने के लिए है। प्रधानमंत्री ने दुनिया के देशों को कहा कि आइए भारत में निवेश कीजिए। हमारे यहां जनतंत्र और हम ज्यादा भरोसेमंद है। निशाने पर चीन ही है।

शुन जू का तीसरा मंत्र है सकारात्मक तत्वों/ कारकों को साथ रखो। भारत सीमा और आर्थिक क्षेत्र में चीन पर दबाव बनाने तक ही सीमित नहीं रहा। अमेरिका खुले तौर पर साथ है, तो जापान, आस्ट्रेलिया इजरायल, खाड़ी के देशों को भी साधने में मोदी की कूटनीति सफल रही है। रूस जो पिछले कुछ समय से चीन के करीब आ गया था। उसने भारत के प्रभाव में चीन को एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्ट्म की आपूर्ति रोक दी है। पर भारत को तय समय पर देने का वादा किया है। चीन ने भारत का नाम लिए बिना कहा भी कि हमें पता है यह किसी के दबाव में किया गया है।भारत के कूटनीतिक प्रयासों और चीन की विस्तारवादी नीति ने दुनिया के तमाम देशों को चीन के खिलाफ कर दिया है। वह दक्षिण चीन सागर में भी घिर ही नहीं रहा बल्कि अलग थलग भी पड़ गया है। शुन जू के मुताबिक सकारात्मक तत्वों/कारकों को साथ लेने से रणनीति के सफल होने की संभावना बढ़ जाती है।

चौथा सूत्र है- समय को अपना साथी बनाओ। बात चीन की हो पाकिस्तान की या घरेलू राजनीति की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कभी जल्दबाजी में नजर नहीं आते। इसके उलट उनके विरोधियों की जल्दबाजी हमेशा उनके काम आती है। मोदी आलोचना के डर से न तो फैसले करते हैं और न ही बदलते हैं। उसका कारण यह है कि उनकी नजर इस बात पर रहती है कि आलोचना करने वाले कौन हैं और किस मकसद से कर रहे हैं। लोकतंत्र में शासक को आलोचना न केवल सुनना चाहिए बल्कि उसका स्वागत भी करना चाहिए। पर इसके साथ ही लोकतंत्र में नेता का हाथ यदि जनता की नब्ज पर हो तो उसे पता रहता है कि कौन सी आलोचना दिशा-दशा सुधारने के लिए है और कौन सी दिग्भ्रमित करने के लिए। लोकतंत्र में जनता की नब्ज ही शासक शासक का कुतुनुमा होना चाहिए।

यही कारण है कि बात चीन से सीमा विवाद हो, कोरोना के खिलाफ लड़ाई या देश की आर्थिक स्थिति, प्रधानमंत्री कुछ नेताओं और लिबरल ब्रिगेड की आलोचनाओं, हमलों का जवाब देने में नहीं उलझे। उसका सबसे बड़ा कारण है कि उन्हें देश के लोगों पर विश्वास है और देश के लोगों का मोदी पर भरोसा डिगा नहीं है। शुन जू ने एक बात और कही है। हालांकि यह युद्ध में सेनापति के लिए है। पर राजनीति पर भी खरी उतरती है। जिस नेतृत्व का एकमात्र लक्ष्य अपने लोगों की सुरक्षा और देश हित हो वह उस देश का बहुमूल्य रत्न होता है। मोदी की राजनीति और शासन कौशल के हर पहलू में देश हित पहली और अंतिम कसौटी होती है। उनका यही गुण उन्हें दूसरे दलों के नेताओं से ही नहीं अपनी पार्टी के नेताओं से भी अलग करता है।

 

 

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