apka akhbarप्रदीप सिंह ।

रामचरित मानस में एक प्रसंग है। समुद्र पार करने के लिए भगवान राम समुद्र से विनय करते हैं। पर वह उनकी विनती सुनने को तैयार नहीं हुआ। गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं- ‘विनय न मानत जड़धि जल गए तीन दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिन होत न प्रीत।‘ पाकिस्तान ने आतंकवाद से बाज आने की भारत की विनती को स्वीकार नहीं किया। तो छब्बीस फरवरी को तड़के भारत ने बता दिया कि हमारी विनम्रता कमजोरी नहीं है। भारतीय वायुसेना के बारह मिराज-दो हजार लड़ाकू विमान पुलवामा हमले के बारह दिन बाद तथा हमारे शहीदों की तेरहवीं से पहले अजहर मसूद और पाक सेना के आतंकवादियों की अत्येष्टि करके आ गए। वायुसेना के गोलों की गूंज और आग की तपिश पूरी दुनिया ने महसूस की। पहली बार दुनिया भर के देशों ने कहा ठीक किया।


जो बीती छब्बीस फरवरी को हुआ वह पिछले अड़तालीस साल में नहीं हुआ था। पूरा देश पिछले तीस साल से इस दिन का इंतजार कर रहा था। लोग थक गए थे, शहीदों के ताबूत गिनते गिनते। सवासौ करोड़ का देश अपने को असहाय महसूस कर रहा था। लगता था कि यही हमारा प्रारब्ध बन गया है। हमारे जवान शहीद होते रहेंगे और नेता उस हमले की निंदा फिर और कड़ी निंदा करते रहेंगे। सत्ता में कोई दल हो कोई नेता हो वह जवाब देने की बात करते रहेंगे पर स्थिति वही ढ़ाक के तीन पात वाली रहेगी। लोगों के मन में हताशा और आक्रोश का भाव स्थायी हो गया था। साल 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक बाद थोड़ी उम्मीद जगी थी कि भारत बदल रहा है। पर पुलवामा ने लोगों को फिर से पुरानी मनःस्थिति में पहुंचा दिया। तो लोग चाहते क्या थे? सिर्फ इतना कि देश के हुक्मरान हमारी फौज के हाथ खोल दें और मातम दुश्मन के घर में मनाया जाय, भारत में नहीं।

पुलवामा हमले के बाद जब प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान ने बहुत बड़ी गलती कर दी है और उसे इसका भारी नुक्सान उठाना पड़ेगा तो बहुत से लोगों को लगा था कि इतिहास दोहराया जा रहा है। आखिर अटल बिहारी वाजपेयी ने भी आर पार की लड़ाई की बात कही थी। मनमोहन सिंह ने भी करारे जवाब की बात कही थी। पर नहीं, अब और नहीं। छब्बीस फरवरी भारत के इतिहास का ऐतिहासिक दिन बन गया। संसद पर हमले के बाद जो वाजपेयी नहीं कर पाए, मुंबई हमले के बाद जो मनमोहन सिंह नहीं कर पाए वह नरेन्द्र मोदी ने कर दिखाया। भारतीय वायुसेना की कार्रवाई के बाद विपक्ष और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने प्रतिक्रिया देते समय इत बात का खास ध्यान रखा कि कहीं मोदी की तारीफ न हो जाय। इन लोगों ने दिल खोलकर वायुसेना की प्रशंसा की, जो करना भी चाहिए। भारतीय वायुसेना ने अपनी जाबांजी और रणकौशल का लोहा एक बार फिर पूरी दुनिया से मनवा लिया। ऐसे दुर्गम स्थान पर हमला करके लौट आए और दुश्मन हाथ मलता रह गया। पर हे विद्वतजनों और विघ्नसंतोषियों हमारी वायुसेना, थल सेना और नौसेना पहले भी इतनी ही ताकतवर और जाबांज थी। पर उसके हाथ बधे हुए थे। दिसम्बर 2001 में संसद पर हमले के बाद सेना सीमा पर पहुंच गई और करीब डेढ़ महीने बाद वापस आ गई। मुबंई हमले के बाद वायुसेना के लड़ाकू विमान हमले के लिए तैयार थे। पायलट कॉकपिट में बैठे थे लेकिन दिल्ली से आदेश नहीं आया। पुलवामा के बाद जब मोदी ने कहा कि फौज के हाथ खोल दिए हैं तो बहुत से लोगों ने मजाक उड़ाया कि क्या अभी तक बांधे हुए थे। उड़ी का बदला दस दिन में और पुलवामा का बारह दिन में, यह नया भारत है। यह मुमकिन हुआ है क्योंकि मोदी हैं। भारत में कितने ही आतंकवादी हमले हों पर भारतीय सेना नियंत्रण रेखा पार नहीं करेगी इस मिथक को मोदी ने तोड़ दिया। मोदी ने इस मिथक को भी तोड़ दिया कि परमाणु हथियार सम्पन्न पाकिस्तान से तनाव बढ़ाना या कोई सैन्य कार्रवाई करना संभव नहीं है। मोदी ने पाकिस्तान ही नहीं पूरी दुनिया को बता दिया कि आतंकी हमला होगा तो भारत की फौजें एक बार, दो बार नहीं बार बार नियंत्रण रेखा पार करेंगी।

भारत का यह आत्मबल केवल बेहतर फौज, फौजियों और हथियारों के कारण ही नहीं है। यहआत्मबल मोदी सरकार की पिछले साढ़े चार साल की विदेश के कारण भी है। भारत, चीन और सउदी अरब को छोड़कर दुनिया के देशों को समझाने में कामयाब रहा है कि पाकिस्तान में चल रही आतंक की फैक्ट्री पूरी दुनिया के लिए खतरा है। यह भी कि उसे आतंकवादी हमलों को जवाब देने का हक है। यही कारण है कि भारत ने केवल पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर में ही नहीं पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में जैश-ए- मोहम्मद के सबसे बड़े आतंकी शिविर को जमींदोज कर दिया। जैश-ए- मोहम्मद भारत के खिलाफ पाक सेना का बड़ा हथियार है। पिछले तीस सालों में पहली बार पाकिस्तान के पाले पोसे आतंकी संगठनों और उनके जरिए पाकिस्तानी सेना को इतना बड़ा नुक्सान हुआ है। भारत के आत्मबल का तीसरा और आज की परिस्थिति में सबसे बड़ा कारण है, मोदी के रूप में एक ऐसे प्रधानमंत्री का होना जिसके पास कड़े फैसले लेने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है।जो देशहित में जोखिम लेने को तैयार है। मोदी ने तय किया कि सुविधाजनक तटस्थता का समय चला गया है।लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता क्रांतिगीत बन गई थी। उसकी एक पंक्ति है- ‘दो राय, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो।‘ जन आक्रोश का घर्घर नाद पूरे देश में गूंज रहा था। मोदी ने उस नाद को सुना, समझा और देश की भावनाओं का सम्मान किया। दिनकर के ही शब्दों में ‘वीरता नहीं तो सभी विनय क्रंदन है।‘ मंगलवार की हवाई कार्रवाई में भारत ने इस बात का ध्यान रखा कि पाकिस्तान के किसी सैनिक ठिकाने या आम लोगों को निशाना न बनाया जाय़। तीनों जगहों पर आतंकवादी शिविरों पर हमला किया गया। इससे पाकिस्तान के पास दुनिया के सामने रोने का मौका भी नहीं रहा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केवल पाकिस्तान को ही नहीं देश में अपने विरोधियों को भी मुश्किल में डाल दिया है। न पाकिस्तान के पास कोई विकल्प है और न ही उनके पास। पुलवामा हमले के बाद कुछ दिन की चुप्पी के बाद विरोधी दल मोदी के प्रति हमलावर हो गए थे। एयरफोर्स की कार्रवाई के बाद सब सन्नाटे में हैं। हालांकि उनके खैरख्वाह भूमिका तैयार कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि मोदी को इसका राजीनितिक फायदा नहीं उठाना चाहिए। यह बात ऐसे लोग कह रहे हैं जो 1971 के बांग्लादेश युद्ध का आज भी राजनीति श्रेय लेते हैं। किसी काम का श्रेय किसी को लेने से नहीं मिलता। काम का श्रेय लोग देते हैं।मोदी ने जो किया है उसका श्रेय उन्हें इस देश की जनता देगी। इस कार्रवाई के बाद लोगों को मोदी की इस बात पर यकीन करना आसान होगा कि देश सुरक्षित हाथों में हैं।