apka akhbarप्रदीप सिंह ।

आने वाले समय में राजनीति शास्त्री जब भी चुनावी रणनीति पर शोध करेंगे तो अमित शाह का नाम रणनीति के शहंशाह के तौर पर आएगा।उनकी सफलता अध्ययन का विषय बन गई है। यह बात केवल इस आधार पर नहीं कही जा रही है कि भाजपा को लगातार दूसरी बार लोकसभा में बहुमत मिला है और पांच साल में उसने सोलह चुनाव जीते। चुनाव में भाजपा और एनडीए की प्रचंड जीत एक मुद्दा है। पर पांच साल में किसी पार्टी के संगठन के सामाजिक आधार को इतना व्यापक बनाने का काम कम से कम अपने देश में तो इससे पहले कभी किसी नेता ने नहीं किया।


 

भारतीय राजनीति खासतौर से भाजपा की राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की जोड़ी की हमेशा चर्चा होती है। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह सही मायने में एक दूसरे के पूरक हैं। आमतौर पर जिन्हें एक दूसरे का पूरक माना जाता है, उन दोनों में किसी के पास एक तरह के गुण और दूसरे में दूसरे तरह के गुण होते हैं। पर मोदी और शाह के मामले में ऐसा नहीं है। दोनों उत्तम कोटि के संगठनकर्ता हैं। दोनों ही चुनावी और राजनीतिक रणनीति में पारंगत हैं। मोदी इस समय देश ही नहीं शायद दुनिया के सबसेसशक्त वक्ता हैं। दूसरी ओर अमित शाहवैयक्तिक संवाद के उस्ताद हैं। लोकसभा चुनाव में शिवसेना और जनता दल यूनाइटेड से समझौता अमित शाह के ही बस की बात थी। दोनों में एक और समानता है। प्रधानमंत्री संगठन के हित पर राष्ट्रीय हित को तरजीह देते हैं। तो अमित शाह संगठन के हित को व्यक्तिगत हित के ऊपर रखते हैं। दोनों ही अपने साथ के लोगों से सौ फीसदी से ज्यादा की उम्मीद रखते हैं। क्योंकि खुद उस पर आचरण करते हैं।

अमित शाह की एक और खूबी है वे संगठन के हित और विचारधारा से समझौता नहीं करते। राष्ट्रीय नागरिकता विधेयक को लेकर असम और उत्तर पूर्व में हिसंक विरोध हो रहा था। विधेयक लोकसभा से पास हुआ और राज्यसभा में विपक्ष ने रोक दिया। शाह चाहते तो चुनाव तक चुप्पी साध सकते थे। पर चुप्पी साध लें तो वह अमित शाह नहीं होते। चुप्पी छोड़िए वह रैली दर रैली कहते रहे कुछ भी हो नागरिकता कानून के मुद्दे से भाजपा पीछे नहीं हटेगी। इतना ही नहीं इस मुद्दे पर नाराज होकर एनडीए से बाहर गई असम गण परिषद को भी उन्होंने मना लिया। पिछले लोकसभा चुनाव में वे पार्टी के महासचिव थे औऱ उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे। इसलिए पर्दे के पीछे से चुपचाप अपना काम करते रहे और उत्तर प्रदेश में भाजपा को अकल्पनीय सफलता दिलाई। इस बार वे पार्टी के अध्यक्ष थे। उनके काम करने के तरीके के बारे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को बनारस में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में बताया। उन्होंने कहा ‘अमित शाह जी रात में दो बजे तक बैठक करते हैं और सुबह छह बजे लोगों को अगले दिन के काम के लिए जगा देते हैं।‘ बहुत से लोगों के मन में एक सवाल उठता है कि आखिर अमित शाह की कामयाबी का मंत्र क्या है। योगी आदित्य नाथ के कथन और शाह की कार्यशाली के आधार पर निष्कर्ष निकालें, तो कह सकते हैं कि उनकी सफलता का मंत्र है चरैवेति चरैवेति। रुकने, थकने, आराम और आलस्य जैसे शब्द शायद उनके शब्दकोष में हैं ही नहीं।

कम ही लोगों को पता होगा कि इन्हीं अमित शाह के बारे में एक समय भाजपा संसदीय बोर्ड के एक सदस्य ने नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में कहा था कि आखिर हम अमित शाह को कब तक ढ़ोएंगे? इस सवाल पर नरेन्द्र मोदी का धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने कहा ‘आप लोगों को अंदाजा भी है कि उसने पार्टी के लिए क्या किया और सहा है।‘आज वही लोग अमित शाह की प्रशंसा में सबसे आगे रहने की कोशिश करते हैं। एक समय था कि भाजपा में अटल आडवाणी के होते हुए कई गुट थे। ऐसा नहीं है कि आज सब लोग पूरी तरह संतुष्ट हैं। पर ऐसे लोगों के लिए समस्या यह है कि उनके पास शिकायत का कोई मौका नहीं है।

इंडिया शाइनिंग के नारे के बावजूद 2004 में भाजपा क्यों हार गई? इसके कारण तो कई हैं लेकिन यहां तीन बातों का जिक्र जरूरी है। एक वाजपेयी के समय सरकार और संगठन एक हो गया था। बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि संगठन सरकार का दरबारी हो गया था। सरकार की उपलब्धियों को आम लोगों तक पहुंचाने का काम भी संगठन ने सरकार पर ही छोड़ दिया। अमित शाह ने इस बार यह नहीं होने दिया। सरकार और संगठन कदम से कदम मिलाकर चले। दूसरी बात यह है कि वाजपेयी सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बड़े ऐतिहासिक काम किए। लेकिन आम लोग विकास का आंकलन इस बात से करते हैं कि उन्हें ठोस रूप में क्या मिला, जो उनके जीवन स्तर को सुधार सके। उज्ज्वला, शौचालय, प्रधानमंत्री आवास, बिजली कनेक्शन और आयुष्मान जैसी योजनाओं ने मतदाताओं की इस इच्छा को पूरा किया।

मोदी शाह की जोड़ी ने जो तीसरा अहम काम किया वह है राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ सेसर्वांगीण तालमेल का। उसके लिए बाकायदा एक संस्थानिक व्यवस्था की गई। वाजपेयी सरकार पर आक्रमण में उस समय संघ परिवार, कांग्रेस से भी ज्यादा आक्रामक था। तत्कालीन सरसंघ चालक केएस सुदर्शन, स्वदेशी जागण मंच के दत्तोपंत ठेंगड़ी और विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल ने वाजपेयी और उनकी सरकार पर राष्ट्र विरोधी काम करने का आरोप सार्वजनिक रूप से लगाया था। पिछले पांच सालों में कभी ऐसा नहीं लगा कि संघ और सरकार अलग अलग दिशा चल रहे हैं। सरकार, संगठन और संघ के बीच संवाद सेतु बनाने में किसी एक व्यक्ति की सबसे बड़ी भूमिका रही तो वह अमित शाह की।

सरकार में न होते हुए भी प्रधानमंत्री सुचारु रूप से शासन चला सकें इसके लिए अमित शाह ने प्रधानमंत्री को संगठन की समस्याओं से मुक्त रखा। इससे भी बड़ा काम उन्होंने यह किया कि भाजपा के दूसरी और तीसरी पीढ़ी के नेताओं को संगठन का काम करना सिखा दिया। एक नेता ने कहा कि जिसने कुछ समय अमित शाह के साथ काम कर लिया या करते देख लिया वह विधायक का चुनाव हार ही नहीं सकता। वे उम्मीदवारों को यहां तक बताते हैं कि पैसा कैसे, किस काम पर और कब खर्च करें। उम्मीदवारों के चयन के मुख्य रूप से दो ही मानदंड थे। कार्यकर्ता को प्रथामिकता और जीतने की संभावना। इस चुनाव में उन्होंने पार्टी की ओर उम्मीदवारों को दिए जाने वाले पैसे की परम्परा भी रोक दी। एक और बड़ा काम उन्होंने किया कि चुनाव जिताने का फार्मूला ईजाद कर लेना का दावा करने वाले तथाकथित प्रोफेशनल रणनीतिकारों को उनकी हैसियत बता दी। बता दिया कि चुनाव में जीत और हार सिर्फ पार्टी और नेताओं की होती है। पांच साल में अमित शाह ने ऐसा कर दिया है कि उनके बिना भाजपा के संगठन की कल्पना कठिन हो गई है।

 

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