apka akhbar-ajayvidyut

अजय विद्युत।

आपने सतयुग नहीं देखा…  लेकिन मन में उसके बारे में जानने की ललक है… तो इस ललक की खातिर नैमिषारण्य जाएं। यहां सतयुग में ही कलयुग में होने वाले खतरों की आहट पहचानते हुए ज्ञान की ‘आपदा प्रबंधन प्रणाली’ विकसित की गई थी। नैमिषाण्य कोई तीर्थ नहीं है और हिन्दू तीर्थ तो कतई नहीं है। नैमिष ने तीर्थ बनाए हैं, उनकी आधारशिला रखी है। पूरे विश्व में मानव कैसे सुखी और संतुष्ट रहे, इसका ज्ञान-विज्ञान तैयार किया है। यहां वेद-उपनिषद रचे गए। इसीलिए श्रीसत्यनारायण की कथा से लेकर तमाम पुराणों में आप पढ़ते सुनते आए होंगे- एकदा नैमिषारण्ये… यहां 88 सहस्र ऋषियों की ज्ञान की सभा हुई थी। कोई सत्संग नहीं था जिसमें साधारण जनों का तांता हो, एक से एक ज्ञानी विज्ञानी आए थे। दुनिया में कहीं किसी और समाज या देश में ऐसी व्यापक चर्चा होने का कोई कपोल-कल्पित उल्लेख भी नहीं मिलता।


 

सतयुगं नैमिषारण्ये त्रेतायां च पुष्करे।

द्वापरे कुरुक्षेत्रे कलौ गंगा प्रवर्ततें।।

पुराणों की इस उक्ति के अनुसार नैमिषारण्य की महिमा सतयुग से चली आ रही है। त्रेता युग से पुष्कर तीर्थ की, द्वापर युग से कुरुक्षेत्र की तथा कलयुग में गंगा की महिमा हुई।

 

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सड़क मार्ग से जाएंगे तो दो घंटे के भीतर पहुंच जाएंगे। राज्य सड़क परिवहन निगम की बस ढाई-पौने तीन घंटे में पहुंचा देती है। नैमिषारण्य, सीतापुर जिले में गोमती नदी का तटवर्ती एक प्राचीन तीर्थस्थल है। पुराणों, रामायण तथा महाभारत में इसका हवाला मिलता है। नैमिषारण्य वह पुण्य स्थान है, जहाँ शौनकादि 88 सहस्र ऋषीश्वरों को वेदव्यास के शिष्य सूत ने महाभारत तथा पुराणों की कथाएँ सुनाई थीं। मनु-शतरूपा ने कठिन तप कर कर्मनिष्ठा और फिर मुक्ति की अमूल्य धरोहर मानव-जाति को सौंपी। यहाँ चक्रतीर्थ, व्यास गद्दी, मनु-सतरूपा तपोभूमि और हनुमान गढ़ी प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

चक्रतीर्थ पर बद्रीनारायण मंदिर के प्रबंधकर्ता आचार्य संतोष दीक्षित ने बताया कि महर्षि शौनक के मन में दीर्घकालव्यापी ज्ञानसत्र करने की इच्छा थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने उन्हें ब्रह्ममनोमय नाम का एक चक्र दिया और कहा कि इसे चलाते हुए चले जाओ। जहाँ पर इस चक्र की नेमि (धुरी) गिर जाए, उसी स्थल को पवित्र समझना और वहीं आश्रम बनाकर ज्ञानसत्र करना। शौनक के साथ 88 सहस्र ऋषि थे। वे सब उस चक्र के पीछे घूमने लगे। गोमती नदी के किनारे एक वन में चक्र की नेमि गिर गई और वहीं पर वह चक्र भूमि में प्रवेश कर गया। चक्र की नेमि गिरने से वह क्षेत्र नैमिष कहा गया। इसी को नैमिषारण्य कहते हैं। और जहां पर चक्र की नेमि गिरी वह स्थान चक्रतीर्थ हो गया।

बद्रीनारायण मंदिर के प्रबंधकर्ता आचार्य संतोष दीक्षित

यहां एक सरोवर है, जिसका मध्यभाग गोलाकार है और उससे बराबर जल निकलता रहता है। उस मध्य के घेरे के बाहर स्नान करने का घेरा है। यहीं नैमिषारण्य का मुख्य तीर्थ है। इसके किनारे अनेक मंदिर हैं। मुख्य मंदिर भूतनाथ महादेव का है। चक्रतीर्थ का बड़ी महिमा है।

 

जब ब्रह्ममनोमय चक्र की नेमि गिरी वहीँ से जल की तेज धारा निरंतर प्रवाहित होने लगी। जब पूरा क्षेत्र इस जल से आप्लावित होने लगा तो ऋषि मुनियों ने ब्रह्मा जी से जल के इस तीव्र प्रवाह को रोकने के लिए प्रार्थना की। फिर ब्रह्मा जी के कहने पर आदि शक्ति ललिता देवी ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके इस चक्र को वहाँ पर स्थापित करके जल के तीव्र प्रवाह को रोका। तभी से जल का प्रवाह बराबर हो रहा है। ललिता देवी की यहां विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि सर्वप्रथम यहां पर अरण्य (जंगल) था। यहां तीन ही चीजें थीं- गोमती नदी, अरण्य और आदि शक्ति श्री ललिता देवी।

द्वापर में श्रीबलरामजी यहां पधारे थे। भूल से उनके द्वारा रोमहर्षण सूत की मृत्यु हो गयी। बलराम जी ने उनके पुत्र उग्रश्रवा को वरदान दिया कि वे पुराणों के वक्ता हों। और ऋषियों को सतानेवाले राक्षस बल्वल का वध किया। संपूर्ण भारत की तीर्थयात्रा करके बलराम जी फिर नैमिषारण्य आये और यहां उन्होंने यज्ञ किया। (जारी)


ये भी पढ़ें

एकदा नैमिषारण्ये 2 : वेद और गीता की रचना कहां की थी ऋषि वेदव्यास ने

एकदा नैमिषारण्ये 3 : अश्वमेघ यज्ञ के लिए कहां गए थे श्रीराम : वाल्मीकि रामायण

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments