प्रदीप सिंह ।
संवाद की कला में निपुण हुए बिना कोई नेता महान नहीं बन सकता। महान नेताओं की खूबी होती है कि वे लोगों से जब भी बात करते हैं तो उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। फिर उनकी कही बात से प्रेरित होकर लोग वह कर गुजरते हैं जिसका उन्हें भी पूर्वानुमान नहीं होता। पिछले पांच साल में हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ऐसा करते हुए देख चुके हैं। स्वच्छ भारत अभियान ने पांच साल में इस देश के लोगों का व्यवहार ही नहीं आदत भी बदल दी। देशवासियों के इस सहयोग के कारण प्रधानमंत्री इस समय आत्मविश्वास से लबरेज हैं। तिहत्तरवें स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से उनका सम्बोधन इसका प्रमाण है।
प्रधानमंत्री ने यों तो लाल किले से बहुत सी बातें कहीं लेकिन आज जिक्र उन मुद्दों का जिनका तात्कालिक राजनीतिक नफा-नुक्सान से कोई सीधा वास्ता नहीं है। ये मुद्दे किसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर नहीं उठाए गए हैं। ये मुद्दे ऐसे भी नहीं जिनका प्रभाव कुछ साल के लिए या सरकार के कार्यकाल तक के लिए हो। ऐसी बातें वही कर सकता है जिसमें दलगत राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर देश हित में कुछ कहने,करने का माद्दा हो। इस संदर्भ में जनसंख्या नियंत्रण, जलजीवन मिशन, सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल से परहेज, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में कमी, जिलों के हस्तशिल्प उत्पादों के निर्यात, कृषि उत्पादों के निर्यात और घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों का जिक्र जरूरी है।
सबसे पहले जनसंख्या नियंत्रण की बात करते हैं। यह ऐसा विषय है जिसके बारे में कोई राजनीतिक दल सपने में भी बोलने से डरता था। इस मुद्दे का जिक्र आते ही लोगों को इमरजेंसी के जमाने की ज्यादतियां याद आ जाती हैं।पर मोदी इससे डरकर चुप नहीं रहे। उन्होंने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा भी कि कुछ बातें दलगत राजनीति से उठकर होनी चाहिए। उन्होंने जनसंख्या विस्फोट कीविकराल समस्या से लोगों को आगाह किया।पर वे यहीं रुके नहीं। कहा कि छोटा परिवार रखना भी देश भक्ति है। पर जो छोटा परिवार रखते हैं उनपर ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों का बोझ नहीं डाला जा सकता। हालांकि उन्होंने अभी इस सम्बन्ध में किसी कानून की बात नहीं की है। पर इस बात को उनके इस कथन के संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि हम समस्यों को न पालते हैं, न टालते हैं। दरअसल दुनिया भर में यह माना जाता है कि जनसंख्या वृद्धि की दर इतनी होनी चाहिए जिससे नई पीढ़ी लगभग उसी अनुपात में पुरानी पीढ़ी का स्थान ले सके।विशेषज्ञों का मानना है कि यह रिप्लेसमेंट रेट दो दशमलव एक होनी चाहिए। जबकि देश में यह दर दो दशमलव दो है। समस्या इस बात से और और बढ़ जाती है कि सात राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और असम में यह ढ़ाई से तीन दशमलव दो तक है। इन सात राज्यों में देश की पैंतालीस फीसदी आबादी बसती है। बढ़ती आबादी कई तरह के असंतुलन और चुनौतियां लेकर आती है।
पानी के संकट को उन्होंने जलजीवन मिशन का नाम दिया। देश के पचहत्तर फीसदी लोगों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं है। इस मुद्दे का जिक्र करते हुए उन्होंने महिलाओं की परेशानियों का जिक्र किया, जिन्हें कई कई किलोमीटर चलकर पानी लाना पड़ता है। सरकार अगले पांच साल में जलजीवन मिशन पर साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए खर्च करने वाली है। जल संरक्षण से जल संचयन तक उन्होंने सभी चुनौतियों का जिक्र किया। इसी तरह प्रधानमंत्री ने एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक से परहेज करने की अपील की। तो साथ किसानों से कहा कि अपने खेतों में रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम करें। रासायनिक खादों के इस्तेमाल से न केवल जमीन की ऊर्वरा शक्ति घट रही है बल्कि भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रहा है। निर्यात को बढ़ावा देने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हमारा किसान अपने उत्पाद का निर्यातक क्यों नहीं हो सकता। साथ ही उन्होंने हस्तशिल्प को प्रोत्साहित करने के लिए कहा कि जिले के हस्तशिल्प उत्पाद के निर्यात का प्रयास होना चाहिए। पर्यटन उद्योग के विकास के लिए मोदी ने लोगों से अपील कि वे 2022 तक देश पंद्रह पर्यटन स्थलों पर जाएं।पर्यटन रोजगार का बड़ा जरिया है।
जनसंख्या और जलजीवन मिशन के अलावा बाकी लक्ष्य ऐसे हैं जिन्हें आसानी से हासिल किया जा सकता है।इन मुद्दों पर कामयाबी उनकी अपील के असर पर निर्भर है। प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए नरेन्द्र मोदी को पांच साल से ज्यादा समय हो चुका है। वे 2014 में आए थे तो अपने को ‘सिस्टम’ से बाहर वाला बताकर बदलाव का वादा किया था। पांच साल बाद भी उन्होंने लाल किले से अपने को एक बार फिर बदलाव के वाहक के रूप में पेश किया है। बड़ी बात यह है कि लोगों उनको इस भूमिका में स्वीकार करने से कोई गुरेज नहीं है। लोगों को मोदी पर यह भरोसा उनकी सरकार के पांच साल के काम से बना है। इस तरह का भरोसा तभी बनता है जब लोगों को नेता की नीति ही नहीं नीयत पर भी यकीन हो। प्रधानमंत्री का यह आत्मविश्वासनये जनादेश और उनकी अपील को आगे बढ़कर जन अभियान बना देने के लोगों के संकल्प से उपजा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लाल किले से छठा सम्बोधन एक कुशल प्रशासक और समाज सुधारक का समन्वय था। साल 2014 में केंद्र में सत्ता संभालने के बाद से उनका सतत प्रयास रहा है कि समाज की शक्ति को जगाया जाए। भारतीय संस्कृति और परम्परा में सत्ता की शक्ति से ज्यादा अहमियत समाज की शक्ति की रही है। सत्ता पर आवश्यकता से ज्यादा निर्भरता किसी समाज और देश को बहुत आगे नहीं ले जा सकती। इस बात को प्रधानमंत्रीअच्छी तरह समझते हैं।
उन्होंने पहले ही इस बात को समझ लिया था कि पहले की सरकारें अपेक्षित गति से देश का विकास नहीं कर पाईं तो इसका कारण केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव नहीं था। नेता की राजनीतिक इच्छाशक्ति तभी फलीभूत होत है जबउसे आम लोगों का समर्थन और सहभागिता मिले। पिछले पांच सालों में मोदी भारतीय समाज की इस शक्ति को जगाने मेंकामयाब रहे हैं।आम लोगों के साथ उनकी इस जुगलबंदी को उनके राजनीति विरोधी या तो भांप नहीं पाए या उस पर यकीन नहीं किया। नतीजा सबके सामने है।
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