प्रदीप सिंह।

वैसे यह अक्सर होता नहीं, पर कभी-कभी ऐसा हो भी जाता है कि आपकी सफलता ही आपकी सबसे बड़ा दुश्मन बन जाती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ यही हो रहा है। उनकी जगह कोई भी होगा तो यही सोचेगा कि आखिर मैंने गलत क्या किया है? क्या प्रदेश से माफिया राज को खत्म करना और उसके आर्थिक तंत्र को तबाह करना गलत है? क्या सरकारी पट्टे-ठेके में पारदर्शिता लाना भूल है? क्या मंत्रियों को भ्रष्टाचार और विधायकों को ट्रांसफर-पोस्टिग का धंधा चलाने की रवायत को रोकना अपराध है? क्या ईमानदार होना, परिवारवाद से मुक्त होना, विचारधारा के प्रति समर्पण, अपने सिद्धांतों से समझौता न करना अयोग्यता है?


पहले ऐसा कब हुआ?

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पिछले चार सालों में उत्तर प्रदेश में जितना निवेश आया है और जितना आने के लिए तैयार है, पहले ऐसा कब हुआ था? याद रखिए ये सब देश की सबसे ज्यादा राजनीति से ग्रस्त नौकरशाही के बावजूद हुआ है। पिछले तीन दशकों में नेता, माफिया और नौकरशाही के गठजोड़ का रावण राज फल फूल रहा था। सरकार और मुख्यमंत्री माफिया के खिलाफ खड़े होने वाले पुलिस अधिकारी नहीं, माफिया का साथ देते थे। योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश को वहां से निकाल कर लाए हैं। किसी ने ठीक ही कहा कि अच्छा आदमी बुरे आदमी के लिए बहुत अपमानजनक होता है। वे उसे बर्दाश्त नहीं कर पाते।

‘गुजरात में चल गया, यूपी में तो नहीं चलेगा’

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जिन लोगों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया, वे अच्छी तरह जानते थे और जानते हैं कि योगी ठहरे हुए पानी में फेंके गए भारी पत्थर की तरह हैं। जो यथास्थिति को तोड़ने की क्षमता रखते हैं। उनके विरोधियों को तो छोड़िए, उनके साथ काम करने वालों को भी चार साल में समझ में नहीं आ रहा है कि यह कैसे और कैसी सरकार चल रही है? इन लोगों को गुजरात के भाजपा नेताओं से मिलना चाहिए था। तब उन्हें शायद इतना आश्चर्य नहीं होता। यह इसलिए कह रहा हूं कि ऐसे लोगों की उसके बाद भी प्रतिक्रिया होती कि ठीक है गुजरात में चल गया, यूपी में तो नहीं चलेगा।

पार्टी ही नहीं, प्रदेश के लिए भी बहुत बड़े असेट

किसी दूसरे प्रदेश में आपने देखा कि दंगा-तोड़फोड़ करने वाले आकर कहें कि गलती हो गई। नुकसान की भरपाई करने के लिए ये लीजिए यह चेक। कोविड के दौरान मरीजों से मनमाना पैसा वसूलने वाले अस्पताल पैसा लौटा रहे हों। भाजपा के एक वर्ग को अभी इसका अहसास नहीं कि योगी आदित्यनाथ पार्टी ही नहीं, प्रदेश के लिए भी बहुत बड़े असेट हैं। जो उनके विरोध में खड़ा है, समझ लीजिए, वह संगठन, विचारधारा और प्रदेश हित के बजाय अपने निजी स्वार्थ को तरजीह दे रहा है। योगी आदित्यनाथ उस नाथ संप्रदाय से आते हैं, जिसके लिए समाज का स्वार्थ हमेशा निजी स्वार्थ से ऊपर रहा है। पहले जैसा ‘सब चलता है’ वाली नीति बंद होने से बहुत से लोग दुखी हैं। इसलिए वे योगी को हटाने की सुनियोजित अफवाह से प्रसन्न हो जाते हैं।

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देश में आजकल मुद्दों पर लोगों में आक्रोश पैदा होता नहीं, पैदा किया जाता है। किस मुद्दे पर आक्रोश होगा और किस पर राष्ट्रीय विमर्श खड़ा किया जाएगा, यह इससे तय नहीं होता कि मामला कितना गंभीर है। वह इससे तय होता है कि घटना/दुर्घटना कहां हुई? यदि भाजपा शासित राज्य में ऐसा कुछ हो रहा है तो वह राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्दा भी बन सकता है, पर किसी और पार्टी की सरकार है तो उसे तूल देना तो दूर, उसे उठाने की भी जरूरत नहीं होती। राजस्थान में वैक्सीन कूड़े के ढेर में, जमीन के नीचे दबी हुई मिली। कल्पना कीजिए यही यदि उत्तर प्रदेश में हुआ होता तो क्या होता? कोरोना वैक्सीन की तात्कालिक कमी के समय सबसे ज्यादा वैक्सीन खराब करने वाले राज्य गैर भाजपा शासित हैं। पंजाब की सरकार ने तो वैक्सीन को महंगे दाम पर निजी अस्पतालों को बेच दिया, पर वह तो ‘सेक्युलर’ सरकार है। ‘सांप्रदायिक’ योगी सरकार ऐसा करती तो यह मानवता के खिलाफ अपराध और निजी अस्पतालों के मालिकों की जेब भरने का मुद्दा बनता।

कोरोना की दूसरी लहर में खुद संक्रमित होने के बाद आइसोलेशन से बाहर आते ही योगी आदित्यनाथ सूबे के हर जिले में कस्बे और गांव तक पहुंच रहे हैं, जो किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने नहीं किया। यहां तक कि विपक्षी दल के नेता भी घर और ट्विटर से बाहर नहीं निकल रहे। इसके बावजूद विमर्श यह है कि योगी को तो जनता की ‘परवाह’ ही नहीं है। तो उनका अगला कदम क्या होना चाहिए? योगी को हटाया जाना चाहिए। पहले अभियान चलाया गया कि बस योगी की कुर्सी अब गई कि तब गई। अचानक भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व से लेकर संघ सब उनसे ‘नाराज’ बताए जाने लगे। उन्हें हटाने के लिए बैठक हो गई और फैसला भी हो गया। झूठ के पांव तो होते नहीं, सो वह मुंह के बल गिर पड़ा। गिर पड़े तो धूल झाड़कर उठे और कहा कि अरे असली बात यह है कि योगी भाजपा की मजबूरी बन गए हैं। एक दिन पहले कह रहे थे कि योगी बने रहे तो भाजपा उत्तर प्रदेश में हार जाएगी। अब कह रहे हैं मजबूरी हैं। ऐसे लोग भूल जाते हैं कि भाजपा ऐसी पार्टी है, जो संगठन के हित में अपने शीर्ष नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में कभी हिचकिचाती नहीं है।

इसलिए नए-नए रूप में सामने आता रहेगा कुप्रचार

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कोरोना की पहली लहर हो या दूसरी, सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ से बेहतर काम किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने नहीं किया। उत्तर प्रदेश से आधी आबादी वाले महाराष्ट्र में स्थिति सबसे खराब रही, लेकिन उसे आदर्श बताने की कोशिश हो रही है। कोरोना की दूसरी लहर में नीति आयोग सहित सब कह रहे थे कि उत्तर प्रदेश में हालात सबसे ज्यादा खराब होने वाले हैं और मई के मध्य तक उत्तर प्रदेश संक्रमितों और मरने वालों की संख्या के मामले में महाराष्ट्र से बहुत आगे निकल जाएगा, लेकिन हुआ क्या? दिल्ली में प्रति दस लाख पर मौत का आंकड़ा 894 है, महाराष्ट्र में 591 और उत्तर प्रदेश में 63 है। तीनों राज्यों की आबादी का आपको अनुमान है ही। यह मत समझिए कि योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कुप्रचार खत्म हो गया है। यह नए-नए रूप में सामने आता रहेगा, क्योंकि जो अभियान चला रहे हैं उनका अस्तित्व खतरे में है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ‘दैनिक जागरण’ से साभार)