प्रदीप सिंह ।
देश के राजनीतिक दलों का एक वर्ग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से नाराजगी के स्थायी भाव में है। इस वर्ग की अगुआई कांग्रेस पार्टी कर रही है। इनकी नजर में मोदी और उनकी सरकार ने पिछले छह सालों में जो किया सब गलत किया। बल्कि इससे आगे उनका मानना है कि मोदी कुछ अच्छा कर ही नहीं सकते।
इस वर्ग की मुश्किल यह है कि देश का मतदाता की राय इसके ठीक उलट है। वह अपने मन में बिठा चुका है कि मोदी इरादतन कुछ गलत कर ही नहीं सकते। इतना ही नहीं उसे इस बात का भी भरोसा है कि अगर कुछ गलत हुआ भी है या हो रहा है तो उसे ठीक केवल मोदी ही कर सकते हैं।
झूठ का किला
पिछले छह सालों से केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध के तरीके में आपको एक पैटर्न नजर आएगा। सरकार ने जो किया है उसे गलत साबित करने के लिए झूठ का एक किला खड़ा करो। और बताओ की वास्तविकता यही है। पर सच की एक बुरी आदत है वह पानी की ही तरह अपना रास्ता बना ही लेता है। झूठ का नया किला बना है किसानों से सम्बन्धित नये कानून पर। मोदी सरकार ने किसानों को सरकारी बेड़ियों से मुक्त करने के लिए तीन नये कानून संसद से पास कराए हैं। अब किसान अपनी उपज अपने तय किए दाम पर जिसे और देश में जहां चाहे बेचने के लिए स्वतंत्र है। इन तीनों कानूनों को लेकर कई तरह के झूठ बोले जा रहे हैं। पर दो बड़े झूठ हैं। पहला, केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म करने जा रही है। दूसरा, नये कानून से छोटे किसान लुट जाएंगे।
कृषि क़ानून हमारे किसानों के लिए मौत की सज़ा हैं। उनकी आवाज़ संसद के अंदर और बाहर कुचल दी गयी है।
ये इस बात का प्रमाण है कि भारत में लोकतंत्र मर चुका है। pic.twitter.com/2q1fyQ4wiP
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 28, 2020
वास्तविकता तो यह कि ऐसा ही कानून लाने का वादा कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने चुनाव घोषणा पत्र में किया था। दूसरी बात यूपीए सरकार में कृषि मंत्री शरद पवार ने 2006 में एक इंटरव्यू में कहा था कि सरकार एपीएमसी की व्यवस्था खत्म करके कृषि बाजार को निजी क्षेत्र के लिए खोलना चाहती है। इसके लिए कई राज्य तैयार हैं। मोदी सरकार ने कभी नहीं कहा कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म करने जा रही है। हाथ कंगन को आरसी क्या..। सरकार ने पंजाब और हरियाणा में तय तारीख से पहले ही धान की सरकारी खरीद शुरू कर दी। दूसरी बात यह है कि जब तक देश के सत्तर अस्सी फीसदी लोगों को दो रुपए किलो गेहूं और तीन रुपए किलो का चावल देने की जरूरत बनी रहेगी, मोदी क्या कोई भी सरकार समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म नहीं कर सकती। इसके अलावा अन्न के सुरक्षित भंडार के लिए सरकार को न्यनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीद करनी ही पड़ेगी।
एमएसपी का फायदा केवल बड़े काश्तकारों को
रही बात छोटे किसानों की तो यही लोग सालों से हल्ला मचा रहे थे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा तो केवल बड़े काश्तकारों को मिलता है। छोटे काश्तकारों के पास तो इतना भी पैसा नहीं होता कि वह अपनी फसल को मंडी ले जाने के लिए परिवहन का खर्च उठा सके। नये कानून में यह व्यवस्था है कि वह अपनी उपज का दाम फसल लगाने से पहले ही तय करने का अनुबंध सकता है। फसल होने पर दाम गिर गए तो भी उसे तय दाम ही मिलेगा और वह भी तीन दिन के भीतर। दाम बढ़ जाए तो वह दाम बढ़ाने के लिए सौदेबाजी कर सकता है। किसान हित की इस व्यवस्था की आलोचना के लिए तर्क दिया जा रहा है कि अस्सी फीसदी किसानों के पास को दो एकड़ भी जमीन नहीं है। तो उसका जवाब है कि इन छोटे किसानों को मिलकर समूह( कृषक उपज संगठन) बनाने से कौन रोक रहा है। अभी छोटे पैमाने पर ऐसा हो भी रहा है।
मोदी की नजर समाज की समृद्धि पर
तो रफाल पर जवान और राष्ट्रीय सुरक्षा को निशाना बनाया गया था। नागरिकता संसोधन कानून पर मुसलमान को बरगलाकर ढ़ाल बनाया गया और अब किसान के कंधे से बंदूक चलाई जा रही है। सवाल है कि मोदी गलत क्या कर रहे हैं। दरअसल मोदी के आने से पहले भी यह देश आगे तो बढ़ ही रहा था। तरक्की कर रहा था। तो समस्या क्या थी? समस्या यह थी कि देश ठहराव का शिकार था। देश को समाज की बजाय व्यक्तियों की भीड़ बना दिया गया। लोगों की उम्मीद का स्तर इतना कम कर दिया गया कि लोग अपनी गरीबी-बदहाली में संतुष्ट थे। संतुष्ट व्यक्ति हो या समाज, वह ठहर जाता है। असंतुष्ट गतिशील होता है। मोदी को यह अत्छी तरह पता है कि ठहरा हुआ समाज समृद्ध नहीं हो सकता। उनकी नजर समाज की समृद्धि पर है। अपनी और अपने परिवार की समृद्धि पर नजर होती तो सब पहले की तरह चलता रहता।
विरोधियों की समस्या
मोदी इस ठहरे हुए पानी जैसे समाज में बदलाव के पत्थर फेंक रहे हैं। उससे हलचल हो रही है। यथा स्थिति को पालने-पोसने वालों को अपनी जमीन खिसकती हुई नजर आ रही है। मोदी लोगों की अपेक्षा बढ़ा रहे हैं। बार बार कह रहे हैं कि जो मिला है उससे संतुष्ट मत हो जाओ। बारह करोड़ शौचालय बन गए तो ठहर मत जाओ, आगे बढ़ो। मोदी के विरोधियों की समस्या यही है कि मोदी ठहरने को तैयार नहीं है। वे यह कह ही नहीं रहे हैं कि इतना कर दिया अब बस। अब बस, उनके शब्दकोष में नहीं है। किसानों के बारे में जो कानून बना है उसे बनाने की बातें तो दशकों से हो रही थीं लेकिन किसी प्रधानमंत्री ने इसे करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। राजनेता ओर राजनीतिक दल अक्सर बदलाव से डरते हैं। क्योंकि बदलाव अनिश्चितता का जोखिम लेकर आता है। राजनीतिक नफे-नुक्सान की परवाह किए बिना जो देश के लिए ठीक लगता है उसे करने का जोखिम लेना मोदी का स्वभाव बन गया है। या यह कहें कि यह उनकी स्वभाविक वृत्ति है।
हीन भावना से हताशा
अब उनके विरोधियों का हाल देखिए। उनके विरोधी धीरे धीरे हीन भावना का शिकार हो गए हैं। हीन भावना से हताशा पैदा हो रही है। इंडिया गेट पर ट्रैक्टर जलाकर भाग जाना उसी हताशा का प्रतीक है। शरद पवार के इंटरव्यू के मुताबिक 2006 में इन कृषि सुधारों के लिए तैयार राज्यों में पंजाब भी था। पर आज विरोध में है। मोदी सरकार के अध्यदेश के मुताबिक महाराष्ट्र की सरकार शासनादेश जारी कर चुकी है। तब कांग्रेसी, सोनिया और राहुल गांधी सो रहे थे।अक्सर यह देखा गया है कि हीनभावना से ग्रस्त लोग राजनीति में बड़ी तेजी से दौड़ते हैं। पर थोड़ी देर में हांफने लगते हैं। कांग्रेस के साथ यही हो रहा है।
एक नई सुबह
किसानों से सम्बन्धित नये कानून कृषि के क्षेत्र में एक नई सुबह लेकर आएंगे। साल 2022 तक किसानों की आय दुगना करने का लक्ष्य अब आसानी से हासिल हो सकेगा। भारत जैसे कृषि प्रधान देश की तरक्की का रास्ता उसके खेतों, खलिहानों और किसानों से ही होकर जाता है। यह जानते और मानते तो सभी हैं पर उस दिशा में बड़े बदलाव करने का साहस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिखाया है।