प्रदीप सिंह
जिस देश की आजादी के आंदोलन का लक्ष्य राम राज्य की स्थापना हो उसी देश में राम के जन्म स्थान के लिए करीब पांच सौ साल संघर्ष करना पड़े इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है। राम जन्म भूमि के मालिकाना हक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्या हिंदुओं और हिंदुस्तान को जमीन का एक टुकड़ा मिला है। जी नहीं, बिल्कुल नहीं। इस फैसले से इस देश की राजनीतिक सांस्कृतिक अस्मिता मिली है। देश की बहुसंख्यक आबादी के मन में यह बात घर कर गई थी कि वह अपने ही वतन में दोयम दर्जे का नागरिक बन गया। अयोध्या में जिसने भी राम लला विराजमान के दर्शन किए होंगे वह कलेजे पर पत्थर रखकर लौटा होगा।
आजादी से पहले तो अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुसलमानों को लड़ाया। 1934 में अयोध्या में हुए दंगे में विवादित ढ़ांचे के गुम्बद को नुकसान पहुंचा तो प्रशासन ने उसकी मरम्मत का पैसा हिंदुओं से यह कह कर लिया कि तोड़फोड़ के अपराध की सजा है। साल 1934 से निकलिए और 1994 में आइए। पीवी नरसिंह राव की सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति को मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह बताए कि रामजन्म भूमि-बाबरी मसजिद के निर्माण के पहले क्या वहां कोई हिंदू मंदिर या कोई हिंदू धार्मिक ढ़ांचा था क्या। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधानपीठ ने बहुमत के फैसले में इस सवाल का जवाब देने से मना कर दिया।सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक इसका जवाब देना एक पक्ष( हिंदू) की हिमायत करना होगा, जो धर्मनिरपेक्षता के लिए ठीक नहीं है।
बात यहीं तक नहीं रही। बहुमत का फैसला मुख्य न्यायाधीश वेंकटचेलैया और जीएन रे के लिए जस्टिस जेएस वर्मा ने लिखा। उन्होंने लिखा कि हिंदुओं को मेकशिप्ट मंदिर में खुद पूजा के अधिकार से वंचित किया जाना उचित है जो उन्हें छह दिसम्बर से पहले हासिल था। उन्होंने लिखा है कि हिंदुओं को यह क्रास अपने सीने पर लगाकर चलना होगा क्योंकि जिन शरारती तत्वों ने ढ़ांचे को गिराया वे हिंदू धर्म के अनुयायी माने जाते हैं। दुनिया के किसी देश में ऐसा सम्भव है कि बहुसंख्यक समाज अपने सबसे बड़े आराध्य की पूजा से सजा के तौर पर वंचित कर दिया जाय। हालात कैसे थे इसके बारे में रामलला विराजमान के मुख्य पुजारी सत्येन्द्र दास जी कहते हैं कि टेंट के पास तुलसी के दो छोटे पौधे उग आए। मुसलिम पक्षकारों ने उसे यह कहकर उखड़वा दिया कि इससे यथास्थिति बदल जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने देश के बहुसंख्यक समाज के को यह यकीन दिलाया है कि धर्मनिरपेक्षता की सूली पर हमेशा उसे ही नहीं चढ़ाया जाएगा। रामलला को टेंट में देखकर जो रामभक्त खून के आंसू रोते थे आज उसी टेंट में उन्हें देखने की दृष्टि बदल गई है। अब उन्हें लगता है कि यह टेन्टवास रूपी वनवास जल्दी ही खत्म होने वाला है। फैसले के बाद तीन दिन पहले से मैं अयोध्या में था और दो दिन बाद तक रहा। यह कार्तिक का महीना है। जो कल्पवास का महीना होता है। देश के ज्यादातर राज्यों से हजारों भक्त अयोध्या में थे। जिससे भी फैसले के बारे में पूछिए किसी के चेहरे पर हार्दिक खुशी की चमक थी तो किसी के भाव गूंगे के गुड़ की तरह।