प्रदीप सिंह
त्रेता युग में जब मुनि वशिष्ठ से राम के राज्याभिषेक का मुहुर्त पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ‘शुभ और अशुभ राम से ही प्रकाशित होते हैं। राम का जिस दिन राज्याभिषेक होगा, वह शुभ दिन बन जाएगा।‘ तो भारतवर्ष में पांच अगस्त एक नया शुभ मुहुर्त बनने जा रहा है। इसी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या मेंश्रीराम मंदिर के गर्भ गृह का भूमि पूजन करेंगे। इसके साथ पांच अगस्त को सनातनधर्म की संस्कृति की समाज में पुनर्स्थापना का श्रीगणेश होगा। पुनर्स्थापना इसलिए कि पिछली कई शताब्दियों में हम धीऱे धीरे अपनी ही संस्कृति से दूर होते गए।
भारतीय संस्कृति का मूल आधार है गार्हस्थ्य व्यवस्था और राम इस व्यवस्था के चरम आदर्श हैं। राम के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना भी कठिन है। उनके चरित्रसे समाज में मर्यादाएं बनीं, आदर्श स्थापित हुए। राम भारत की सांस्कृतिक विरासत के सर्वोच्च प्रतीक हैं।बाल्मिकी रामायण के बालकांड के पहले सर्ग में ऋषि वाल्मिकी नारद मुनि से पूछते हैं कि ‘इस समय इस लोक में कौन गुणवान, शक्तिशाली,धर्म का ज्ञाता, कृतज्ञ,सत्यभाषी, चरित्रवान, सब प्राणियों की भलाई चाहने वाला, क्रोधहीन और तेजस्वी है। जिसके युद्ध में कोप करने पर देवता भी डरते हैं, वह पुरुष कौन है?’ नारद कहते हैं ‘वे इच्छवाकु वंश में उत्पन्न हुए हैं एवं उनका नाम राम है। जिस प्रकार नदियां सागर के पास जाती हैं, उसी प्रकार सज्जन पुरुष राम के पास जाते हैं।‘
जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राम भद्राचार्य कहते हैं कि ‘राम नाम दुनिया की महा औषधि है।‘ दुनिया की सबसे लोकप्रिय साहित्यिक रचना गोस्वामी तुलसी दास की राम चरित मानस है। राम और भारतीय संस्कृति को अलग करके नहीं देखा जा सकता। ऐसे भगवान राम के जन्म स्थान को लेकर पांच सौ साल तक अपने ही देश में संघर्ष करना पड़ा इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है। भारत में राम के अस्तित्व को भी चुनौती मिल सकती है यह अकल्पनीय बात भी हमने सुनी। राम पर बाबर को तरजीह देने वाले भी इसी देश के नागरिक हैं। ऐसे लोगों के लिए भारतीय संस्कृति की बात करने वाले पुरातनपंथी और साम्प्रदायिक हैं। राम और सनातन धर्म का विरोध धर्मनिरपेक्षता का सर्टीफिकेट बन गया। मंदिर का विरोध करने वाले भूल गए कि आजादी के आंदोलन का ध्येय ही राम राज्य की स्थापना था। राम राज्य की स्थापना के नारे पर आजादी की लडाई लड़ने वाली पार्टी कीसरकार ने अदालत में खड़े होकर कहा कि राम काल्पनिक हैं।
यह एक मानसकिता है। जो मूल रूप से जो कुछ भारतीय है उसके विरोध में खड़ी है।यही कारण है कि भारतीय धर्म और दर्शन के इतिहासकारों ने दाराशिकोह के समुद्र संगम और मज्मउल्बहरैन जैसे ग्रंथों की उपेक्षा की। इतना ही नहीं अलबिरूनी,शेख मुबारक नागौरी, अब्दर्रहीम खानखाना, मलिक मोहम्मद जायसी और नजीर अकबराबादी के लिखे को भी महत्व नहीं दिया। सनातन धर्म और संस्कृति पर लिखने वाले तमाम लोगों को हमेशा यह शिकायत रही। अपनी पुस्तक वैश्वानर की प्रस्तावना में मंत्रों की शक्ति के बारे में बात करते हुए शिव प्रसाद सिंह लिखते हैं- ‘मैं जानता हूं हमारा बौद्धिक कितना नकलची और अज्ञान के ज्ञान में मस्त रहने वाला प्राणी है। उसे अगर कुरान या बाइबिल सुनाया जाए तो वह प्रशंसा के अतिरिक्त एक शब्द नहीं कहेगा। पर यदि हम वैदिक युग की मान्यताओं के अनुरूप कुछ भी लिखें तो वह नाक-भौं सिकोड़ेगा।‘
आंदोलनों के बारे में अक्सर देखा गया है कि वे जिस लक्ष्य को लेकर शुरू होते हैं बीच रास्ते में ही वह छूट जाता है। साल 1949 से चल रहे मुकदमे और उससे पहले के संघर्ष को देखते हुए किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि राम जन्म स्थान पर कभी राम मंदिर बन पाएगा। विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल ने 1986 में तीस अक्तूबर को राम मंदिर आंदोलन का शुभारम्भ किया था। यह उन्हीं की तपस्या का फल है। भारतीय जनता पार्टी और लाल कृष्ण आडवाणी की भूमिका मई1989 में हिमाचल के पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर पर पास प्रस्ताव से शुरू हुई। पिछले तीस साल में अयोध्या आंदोलन से भाजपा को राजनीतिक फायदा और नुक्सान दोनों हुआ है।
छह दिसम्बर,1992 को विवादित ढ़ांचा गिरने के बाद इस मुद्दे पर भाजपा की विश्वसनीयता खत्म सी हो गई थी। उसके विरोधी तंज करते थे कि राम लला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, लेकिन तारीख नहीं बताएंगे। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मंदिर समर्थकों की उम्मीद बढ़ी। पर पहले कार्यकाल में कोई ठोस पहल न होने से थोड़ी निराशा हुई। दूसरे कार्यकाल में सरकार ने दो नहीं बल्कि तीन ऐसे काम किए जिसको आम लोग असम्भव मानकर चल रहे थे। तीन तलाक की कुप्रथा खत्म हो सकती है यह तो इसके खिलाफ आंदोलन करने वाली मुसलिम महिलाओं को भी नहीं लगता था। उसके बाद जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद तीन सौ सत्तर खत्म हो जाएगा, यह पाक अधिकृत कश्मीर को लेने से भी कठिन लगता था। पर अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद पांच अगस्त, 2019 को संसद ने जो देखा वह अविश्वसनीय और कल्पनातीत था। बात सिर्फ यह नहीं थी कि मोदी सरकार संविधान के इस प्रावधान को खत्म करने का प्रस्ताव लाई। उससे भी बड़ी बात यह थी कि अल्पमत में होते हुए भी राज्यसभा में यह प्रस्ताव भारी बहुमत से पास हुआ।
राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला शायदअभी और कई साल न आता अगर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री न होते। पर वहां भी बड़ी बात हुई पांच जजों की पीठ का फैसला सर्वसम्मति से आया। इसकी भी संभावना न के बराबर थी।फैसले से हिंदुओं के मन में अपने ही देश में तिरस्कृत होने का भाव तिरोहित हो गया।याद रहे सनतान धर्म में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधने की अद्भुत क्षमता है।यह क्षमता राष्ट्रीयता के विकास में बड़ी भूमिका निभा सकती है। डा. हर्ष नारायण ने अपनी ‘पुस्तक भारतीय सनातन संस्कृति, विविध आयाम’ में लिखा है कि ‘धर्म और अध्यात्म की की ठोस भूमि के बिना नैतिकता की अट्टालिका खड़ी ही नहीं हो सकती।‘ भव्य राम मंदिर का निर्माण इस मार्ग को प्रशस्त करेगा ऐसी उम्मीद करना चाहिए।
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