#pradepsinghप्रदीप सिंह।
आखिरकार शिवसेना के बड़बोले नेता संजय राउत का नम्बर आ ही गया। उनको प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रविवार, 31 जुलाई को आधी रात के बाद गिरफ्तार कर लिया। पिछले ढाई साल से उनका बर्ताव बड़ा अजब-गजब था।  … अपने राजनीतिक विरोधियों- या जिस किसी का भी वह विरोध कर रहे हों- उनके प्रति बात करने, बोलने के अंदाज तल्खी और अभद्र भाषा का प्रयोग बहुत बढ़ गया था। फिर चाहे वे संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोग ही क्यों न हों- किसी के भी खिलाफ वह कुछ भी बोल सकते थे।

सवालों का जवाब दो? राउत चुप

31 जुलाई को सुबह 7:00 बजे संजय राउत के घर ईडी की टीम पहुंची। घर की तलाशी हुई। ईडी ने इसके तीन दिन पहले उनको पूछताछ के लिए बुलाने का समन भेजा गया था लेकिन वह नहीं गए। ईडी एक बार पहले भी उनसे पूछताछ कर चुकी है। रविवार को दिन में ईडी की टीम पूछताछ के बीच उन्हें मेडिकल के लिए अस्पताल ले गई थी। यह तैयारी होती है औपचारिक रूप से गिरफ्तारी से पहले की। तभी साफ हो गया था कि उनको कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। संजय राउत की गिरफ्तारी के बारे में ईडी ने कहा है कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे और पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दे रहे थे। इस वजह से पहले उनको हिरासत में लेकर पूछताछ की गई और फिर आधी रात के बाद गिरफ्तार कर लिया गया।

मुलाकात हुई, क्या बात हुई

शिवसेना नेता और राज्यसभा सदस्य संजय राउत के खिलाफ मामला क्या है? मुंबई की एक चाल थी पात्रा चाल। उसके रीडेवलपमेंट का एक टेंडर था। उसमें एक हजार करोड़ रुपए के घोटाले की बात है। इस जमीन घोटाले में संजय राउत, उनकी पत्नी वर्षा राउत और उनके कुछ करीबी लोग शामिल हैं। इस मामले की जो (विटनेस) गवाह हैं उनको धमकी दी जा रही थी। जैसा कि सबको पता है कुछ दिन पहले संजय राउत का एक ऑडियो टेप वायरल हुआ था जिसमें वह पात्रा चाल मामले के एक विटनेस को भद्दी भद्दी गालियां दे रहे हैं। ये सब तो छोटी सी बातें हैं। खास समस्या क्या होने वाली है? जब ईडी ने राउत को बुलाया था और पूछताछ हुई तो उसके बाद संजय राउत एनसीपी नेता शरद पवार के पास गए थे। शरद पवार और संजय राउत में क्या बात हुई यह पता नहीं। लेकिन संजय राउत से बातचीत के बाद शरद पवार सीधे दिल्ली गए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। दिल्ली में दोनों में क्या बात हुई यह भी किसी को पता नहीं है क्योंकि वह प्रधानमंत्री और शरद पवार के बीच की बात है।

असली धमाका तो अब होगा

इतना साफ़ है कि संजय राउत की गिरफ्तारी से महाराष्ट्र विकास अघाडी के एक बड़े नेता और इस पूरे घोटाले के संबंध में आने वाले दिनों में बड़े खुलासे होने वाले हैं। आप यह मान कर चलिए कि संजय राउत तक यह मामला रुकने वाला नहीं है- उससे आगे जाने वाला है। इसमें शिवसेना और एनसीपी के नेता शामिल हैं। दोनों पार्टियों के नेताओं की इस घोटाले में मिलीभगत और हिस्सेदारी है। ईडी संजय राउत की कई प्रॉपर्टी और उनकी पत्नी वर्षा राउत के कई बैंक खाते सीज कर चुका है। उनके करीबी लोगों के खिलाफ एक्शन हो चुका है। इसके अलावा एक दूसरे मामले में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साले के 12 फ्लैट ईडी सीज कर चुका है। इससे समझ में आता है कि इस घोटाले का स्केल यानी परिमाण बहुत बड़ा है।

ऐसा पहली बार हुआ

संजय राउत की गिरफ्तारी महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव लाने वाली है। इस गिरफ्तारी के बाद उनसे जो पूछताछ होगी और उससे जो निकलने वाला है- ईडी के पास जो सबूत, दस्तावेजी साक्ष्य, प्रॉपर्टी के पेपर हैं- उसके अलावा जो मनी ट्रेल है- इन सब के आधार पर जो केस बनने वाला है- उससे एक नए युग का सूत्रपात होगा। आपको पता चलेगा कि महाराष्ट्र में पहली बार ऐसा हो रहा है कि नेताओं के बीच भ्रष्टाचार को लेकर जो अघोषित समझौता था वः टूट गया है। वह अघोषित समझौता क्या था? यह कि- सरकार चाहे किसी पार्टी या गठबंधन की हो- वह दूसरे दल- चाहे वह विपक्ष में ही क्यों ना हो- उसके खिलाफ कोई मामला, कोई केस या जांच नहीं करती थी। महाराष्ट्र की राजनीति में यह मिलाजुला खेल था। दूसरे प्रदेशों में या तो ऐसा था नहीं- या बहुत कम था- महाराष्ट्र में यह खुलेआम था। सरकार बदलने से किसी का ‘व्यापार-धंधा’ रुकता नहीं था अगर सत्तापक्ष चुनाव बाद विपक्ष में आ जाता था, तो भी उसके नेताओं का काम चलता रहता था। लेकिन अब यह घोषित समझौता टूट गया है। बीजेपी और खास तौर से केंद्र की सरकार ने तय किया कि यह समझौता तोडना बहुत जरूरी है क्योंकि भ्रष्टाचार का दीमक देश को लगातार खोखला कर रहा है। इसको रोकना जरूरी है।

उद्धव के सामने सत्ता नहीं, पार्टी बचाने की चुनौती

क्या बीजेपी वाले दूध के धुले हैं

जिनके खिलाफ एक्शन हो रहा है उनकी सबसे बड़ी शिकायत है कि कार्रवाई केवल विपक्ष के नेताओं के खिलाफ हो रही है- बीजेपी के नेताओं के खिलाफ क्यों नहीं हो रही है। सवाल यह है कि भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए राज्यों के पास भी अपनी जांच एजेंसियां होती हैं। ढाई-तीन साल उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री रहे। अगर बीजेपी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच करने का मामला बनता था तो उन्होंने जांच क्यों नहीं की। या फिर दूसरे राज्यों में- जहां गैर भाजपा सरकारें हैं- वहां भाजपा के जिन नेताओं को आप भ्रष्ट मानते हैं- उनके खिलाफ जांच करने से आपको कौन रोक रहा है? सवाल इस बात का है कि जिन लोगों के खिलाफ कार्यवाही हो रही है उन लोगों ने भ्रष्टाचार किया है, या नहीं- उन्होंने गलत किया है, या नहीं- उन्होंने पैसे की लूट की है- या नहीं। इसका फैसला ईडी की जांच और उसकी रिपोर्ट के आधार पर अदालत करेगी। अदालत में ही तय होगा कि ये लोग दोषी हैं या निर्दोष हैं। यह किसी के दावे या आरोप से तय नहीं होगा। संजय राउत की गिरफ्तारी से उनका बड़बोलापन, उनकी शेखी, सब खत्म होने वाली है। आपको याद होगा नवाब मलिक का भी यही हश्र हुआ था। बहुत बोल रहे थे। ईमानदार आदमी बोले तो समस्या नहीं होती है… सूप तो सूप छलनी भी बोली जिस में बहत्तर छेद। लेकिन संजय राउत, नवाब मलिक, अनिल देशमुख- ऐसे लोग अगर बोलेंगे तो निश्चित रूप से समस्या होगी। समस्या उनके लिए होगी और उनको बचाने वालों/संरक्षकों के लिए भी होगी।

कायदे और संतुलित तरीके से एक्शन

महाराष्ट्र की राजनीति में पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि राजनीतिक नेताओं के भ्रष्टाचार पर इतनी सख्त कार्रवाई हो रही है। इतने कायदे और संतुलित तरीके से एक्शन हो रहा है जांच एजेंसियो का। पहले सबूत जुटाओ- तथ्य जुटाओ- डाक्यूमेंट्स जुटाओ- मनी ट्रेल का जितना हिस्सा संभव हो सके उसके बारे में सबूत जुटाओ… फिर उसके बाद कार्रवाई करो। तो अब आगे संजय राउत की मुलाकात नवाब मलिक और अनिल देशमुख से होगी- उद्धव ठाकरे और शरद पवार से नहीं हो पाएगी। शिवसेना के बहुत से लोगों का मानना है कि उद्धव ठाकरे को शरद पवार के यहां ले जाने वाले संजय राउत थे। …और उद्धव ठाकरे को शरद पवार के पास संजय राउत ले गए तो वह मामला केवल राजनीति का ही नहीं था- इसके अलावा भी था। वह ईडी बताएगी अदालत में। तब तक इंतजार करते हैं।