प्रदीप सिंह।
देश में इस समय बड़ा घमासान मचा हुआ है। आप गलत समझ रहे हैं मैं कोरोना महामारी की बात नहीं कर रहा। रुकिए, मैं पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद सरकारी संरक्षण में हो रही राजनीतिक हिंसा की बात भी नहीं कर रहा हूं। पिछले सात साल में एक नया वर्ग बना है। इसे लेफ्ट लिबरल कहिए, गिद्धों का गिरोह कहिए, लुटियंस बिरादरी कहिए या फिर खान मार्केट गैंग। वैसे भी शेक्सपियर ने कहा है कि नाम में क्या रखा है। इन सबका डीएनए एक ही है। इन्हें कोरोना की गर्दन नहीं चाहिए। बंगाल में हत्या, बलात्कार, आगजनी करने वालों की गर्दन भी नहीं चाहिए। इन्हें देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गर्दन चाहिए।

ऐसा नहीं है कि यह बिरादरी पहले नहीं थी। पहले भी थी और ज्यादा ताकतवर थी। उनकी तकलीफ यहीं से शुरू होती है। वो ताकत चली गई है। वे मोदी की गर्दन को शिलालाजीत की गोली समझते हैं। उन्हें लगता है कि मोदी की गर्दन एक बार हाथ में आ जाय बस उसके बाद उनके सामने खड़े होने की हिम्मत कौन करेगा। आज से पहले इस बिरादरी को रसद-खाद सत्ता से मिलती थी। ये सत्तामुखी जीव हैं। मोदी ने इनकी सप्लाई लाइन काट दी है। सात साल से लगे हैं बड़े बड़े इंजीनियर लेकिन जोड़ नहीं पा रहे।

अक्षय पात्र का क्षय

कारण कि इनका ऊर्जा का जो पात्र था, जिसे ये अक्षय पात्र (मूलतः कांग्रेस और कम्युनिस्ट) समझते थे, उसी का क्षय हो गया है। पहले पांच साल तो उसमें हवा भर भर फुलाने की कोशिश करते रहे। पर उसमें इतने छेद हैं कि हवा टिकती ही नहीं। इसलिए फिलहाल उसको किनारे कर दिया है। अब रणनीति है कि बड़ी लकीर खींचना तो संभव नहीं है। इसलिए बड़ी लकीर को छोटा करने की कोशिश करो। उनका अस्तित्व संकट में है इसलिए जहां से मदद मिले ले रहे हैं। मदद करने वाला भारत विरोधी हो तो क्या फर्क पड़ता है। इसलिए भारत विरोधी और खासतौर से मोदी विरोधी विदेशी मीडिया संस्थानों का बेशर्मी से इस्तेमाल हो रहा है। लैंसेट जैसी पत्रिका में चीनियों से मोदी विरोध में लिखवाया जा रहा है।

मोदी बहुत से लोगों के लिए खतरा

BJP's victory certain in West Bengal, says PM Modi | Elections News – India TV

दरअसल मोदी भारत में ही नहीं दुनिया में बहुत से लोगों के लिए खतरा बने हुए हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान से दुनिया की बहुत सी बड़ी कंपनियों को खतरा नजर आ रहा है। दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक भारत यदि इस मामले में आत्मनिर्भर हो गया तो किसको परेशानी होगी यह बताने की जरूरत नहीं। भारत दुनिया की फार्मेसी बन रहा है। भारत तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन को बढ़ावा देने जा रहा है। फिर शेखों और दूसरे तेल उत्पादकों का तेल कौन खरीदेगा। आपको लगता है वे इसे चुपचाप देखते रहेंगे। भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के क्वाड का विस्तार होने जा रहा है। बहुत से देशों ने इसमें रुचि दिखाई है। चीन और उसके मित्र देशों के लिए इस संकट के केंद्र में मोदी हैं।
कोरोना आया तो उसकी पहली लहर में भारत का काम दुनिया के तमाम अति विकसित देशों से बेहतर रहा। पीपीई किट, वेंटीलेटर, मास्क और सेनीटाइजर आयात करने वाला देश कुछ ही महीनों में निर्यात करने की स्थिति में आ गया। यह बात दुनिया के दूसरे उत्पादकों को कैसे पंसद आएगी। सारी दुनिया कोरोना की वैक्सीन जल्दी से जल्दी बनाने में लगी थी। चीन की कोशिश थी कि उसकी वैक्सीन पहले आए और वह दुनिया का तारणहार बने। वैक्सीन तो आई पर दिवाली के गीले पटाखे जैसी निकली। दो डोज से भी काम नहीं चल रहा। अब तीसरी डोज देने की बात हो रही है। भारत ने दो वैक्सीन बना ली। एक अपनी देसी और एक विदेशी मदद से। भारत की वैक्सीन जिसकी आज दुनिया भर में तारीफ हो रही है, उस पर पहला हमला भारत के विपक्षी दलों और मीडिया के बड़े हिस्से ने किया।

उपलब्धियों की केंद्रीय शक्ति

Covid-19 vaccination drive begins in New Delhi - The Hindu BusinessLine

इसके बावजूद भारत वैक्सीन के मामले में दुनिया में गर्व से सिर उठाकर चलने वाला देश बन गया। सत्तर से ज्यादा देशों को वैक्सीन दी। इन सब उपलब्धियों की केंद्रीय शक्ति केवल एक शख्स है, जिसका नाम नरेन्द्र दामोदर दास मोदी है। इसलिए वह कांटे की तरह चुभ रहा है। कोरोना की दूसरी लहर आएगी सबको पता था। पर सुनामी की तरह कुछ ही दिनों में ऐसी तबाही मचाएगी किसी को पता नहीं था। अब कोई भी ज्ञानी चाहे जो दावा करे। फरवरी में केंद्र ने राज्यों में पचहत्तर टीमें भेजीं, ताकि राज्य दूसरी लहर के लिए तैयारी करें। उससे भी तीन महीने पहले आक्सीजन के प्लांट लगाने के लिए पैसे और सलाह दोनों दी। टीकाकरण के लिए सबसे अच्छी नीति बनाई। ताकि पहले इलाज और मरीजों की मदद/ सेवा-सुश्रुशा करने वाले सुरक्षित हों। फिर सबसे ज्यादा खतरे में रहने वाले बुजुर्ग और फिर पैंतीलीस साल से ऊपर वाली आबादी जिसे पहले से कई तरह की बीमारियां होने की आशंका है। इसके अलावा पचासों कदम हैं जो केंद्र सरकार ने उठाए।

आलू का चिप्स नहीं है वैक्सीन

पर याद क्या रहा!  सिर्फ दो बातें। मोदी की चुनावी रैली, जी सिर्फ मोदी की बाकी किसी नेता की नहीं। दूसरी अट्ठारह साल के ऊपर वालों को वैक्सीन लगाने की घोषणा के बाद वैक्सीन की कमी। वैक्सीन कोई आलू का चिप्स नहीं है। यह बात इसलिए कह रहा हूं कि अपने को राजनीतिक विदूषक साबित कर चुके अरविंद केजरीवाल की ताजा मांग है कि दूसरी कंपनियों को भी वैक्सीन बनाने की इजाजत दे दीजिए।

विरोध का एक तरफा एजेंडा

जब केंद्रीय स्तर से लॉकडाउन का फैसला हुआ तो कहा कि तानाशाही है। स्वास्थ्य राज्य का विषय है। राज्यों को फैसला करने दीजिए। अब कह रहे हैं केंद्र क्यों नहीं लगाता। यही दोमुंहापन वैक्सीन के मामले में भी है। प्रधानमंत्री को दिन-रात गाली देते हैं। यहां तक कि उनकी मृत्यु की भी दुआ करते हैं और अगली सांस में कहते हैं, मोदी के राज में बोलने की आजादी नहीं है। प्रधानमंत्री ने किसी राज्य सरकार या किसी पार्टी के नेता के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला है। पर मोदी विरोध का एक तरफा ऐजेंडा चलाया जा रहा है।

जो आपदा में देख रहे अपने लिए अवसर

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जैसे कालाबाजारियों, रिश्वतखोरों, लुटेरों और मानवता के दुश्मनों को इस आपदा में अवसर नजर आ रहा है। वैसे ही इस राजनीतिक बिरादरी को भी आपदा में अवसर दिख रहा है। मोदी को गिराने का। पर वे भूल जाते हैं कि अंधेरा कितनी भी ताकत लगा ले वह उजाले को आने से रोक नहीं सकता। आम लोगों को मोदी से शिकायत हो सकती है, नाराजगी भी हो सकती है। पर जरा सोचिए कि इस समय मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, शरद पवार, मायावती या अखिलेश यादव देश के प्रधानमंत्री होते तो…। आप इस बात की कल्पना से भी सिहर उठेंगे। इसे नियति का निर्देश समझिए कि इस समय देश की बागडोर उस नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के हाथ में है जिसके लिए पहले नम्बर पर देश है, दूसरे नम्बर पर देश है, तीसरे और आखिरी नम्बर पर भी देश ही है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं। आलेख ‘दैनिक जागरण’ से साभार)