प्रदीप सिंह ।
लोकसभा चुनाव की औपचारिक घोषणा अब किसी भी दिन हो सकती है। पिछले करीब सवा महीने में राजनीतिक विमर्ष बदल गया है। किसानों की समस्या, बढ़ती बेरोजगारी, राममंदिर निर्माण और राफेल लडाकू विमान की खरीद सहित तमाम मुद्दों से होते हुए विमर्ष पुलवामा हमला और उसके बाद भारतीय वायुसेना की जवाबी कार्रवाई पर टिक गया है। चौदह फरवरी और छब्बीस फरवरी ने देश का माहौल बदल दिया है। देश में राष्ट्र भक्ति का ज्वार नजर आ रहा है। यह कुछ भाजपा का बनाया हुआ और ज्यादातर स्वतःस्फूर्त है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी को विपक्ष के बयानों से और मदद मिल रही है। मोदी और उनकी सरकार पर प्रत्यक्ष रूप से सवाल उठाते उठाते विपक्ष वायुसेना की कार्रवाई पर ही परोक्ष रूप से सवाल उठा रहा है।
अपने देश में चुनाव मुख्यतौर पर दो मसलों पर होता है। एक, जाति के आधार पर और दूसरा, साम्प्रदायिकता के आधार पर। आम लोगों के जीवन से जुड़े मुद्दे अक्सर राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में नीचे ही रहते हैं। साल 1977, 1989 और 2014 में भ्रष्टाचार का मुद्दा प्राथमिकता में ऊपर आ गया था। तीनों मामलों में उसके कारण अलग अलग थे। पर क्या यह महज इत्तफाक है कि तीनों ही चुनावों में कटघरे में कांग्रेस पार्टी और उसकी सरकार खड़ी थी? पहले दो मामलों में कांग्रेस की स्पष्ट बहुमत की सरकार थी और पिछले चुनाव के समय गठबंधन की सरकार। यही कारण है कि सत्ता से बाहर होने के बावजूद भ्रष्टाचार का लेबल कांग्रेस से चिपका हुआ है। इसलिए 2019 में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं होने वाला है। हालांकि, कांग्रेस ने राफेल के मुद्दे के जरिए इसकी पुरजोर कोशिश की। पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, सीएजी की रिपोर्ट और दूसरे विपक्षी दलों का इस मुद्दे पर ठंडा रवैया उसके रास्ते का रोड़ा बन गया।
इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पूरे विपक्ष ने किसानों के मुद्दे को जोर शोर से उठाया। इससे मोदी सरकार घिरती हुई नजर आई। माना जा रहा था कि अब चुनाव में ज्यादा समय नहीं है इसलिए सरकार ज्यादा कुछ कर नहीं पाएगी और भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा की हार में इस मुद्दे का भी योगदान था। इन राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद दो बातें हुईं। एक, राहुल गांधी ने नतीजों से उत्साहित होकर सरकार को घेरने के लिए राष्ट्रीय स्तर किसानों की कर्जमाफी की मांग कर दी। यह घोषणा भी कर दी कि कांग्रेस सत्ता में आई तो वह पूरे देश में किसानों का कर्ज माफ करेगी। बहुत से राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे राहुल का मास्टर स्ट्रोक बताया। बाकी विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर एक नजर आए। बहुत से लोगों को लग रहा था कि मोदी के लिए इसका जवाब देना कठिन होगा। वे कर्ज माफी करेंगे तो फंसेंगे और नहीं करेंगे तो और फंसेंगे। प्रधानमंत्री ने एक बार फिर राजनीति जोखिम वाला फैसला लिया। सार्वजनिक रूप से कह दिया कि वे कर्जमाफी के खिलाफ हैं। ऐसे माहौल में जब किसान सरकार से नाराज हों और उसे विधानसभा चुनाव में सबक भी सिखा चुके हों ऐसा फैसला, सरकार विरोधी माहौल को कई गुना बढ़ा सकता था। उस समय तक राष्ट्रीय विमर्ष कांग्रेस और मोदी विरोधियों के हाथ में था। गैर आरक्षित वर्गों को दस फीसदी आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक के समर्थन के लिए विपक्ष को विवश करके मोदी ने विमर्ष एक बार फिर अपने हाथ में ले लिया। उसके बाद देश की राजनीति में कई उतार चढ़ाव आए। अंतरिम बजट की घोषणाओं, खासतौर से मध्य वर्ग और किसानों के लिए सम्मान निधि ने पलड़ा एक बार फिर भाजपा के पक्ष में कर दिया। उसी दौरान उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन की औपचारिक घोषणा और प्रियंका वाड्रा के सक्रिय राजनीति में प्रवेश की मुनादी हो गई। ऐसा लगा की उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव आएगा। फिर पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकवादी हमला हो गया। एक हफ्ते की चुप्पी के बाद विपक्ष सरकार पर टूट पड़ा। छब्बीस फरवरी के तड़के भारतीय वायुसेना की सर्जिकल स्ट्राइक की पाकिस्तान को तो छोड़िए भारत में भी किसी को उम्मीद नहीं थी।
इससे मोदी सरकार को अपनी पांच साल की उपलब्धियों के साथ एक बड़ा और भावनात्मक मुद्दा मिल गया है। सरकार और पार्टी इसका श्रेय ले रही है। विपक्ष के लिए यह समस्या बन गया है। वह वायुसेना को तो इसका श्रेय देने को तैयार है लेकिन मोदी सरकार को नहीं। 1971 के युद्ध की जीत का श्रेय इंदिरा गांधी को जाता है लेकिन छब्बीस फरवरी, 2019 को एयरफोर्स की सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय मोदी को नहीं मिलना चाहिए। यह कुछ ऐसा ही है कि ताजमल शाहजहां ने नहीं कारीगरोंऔर शिल्पकारों ने बनवाया था। मोदी को श्रेय से वंचित करने के फेर में विपक्ष पहली सर्जिकल स्ट्राइक की ही तरह दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक का भी सबूत मांग रहा है। इसका फायदा चुनाव में किसे मिलेगा किसे नहीं यह तो बाद की बात है। फिलहाल तो इसका फायदा पाकिस्तान उठा रहा है। पाकिस्तान कह रहा है कि देखिए भारत में विपक्षी दल ही अपनी सरकार से समहत नहीं हैं।
तो चुनाव का मुद्दा तय हो गया है। भाजपा के प्रचार में केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के अलावा दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक सबसे अहम मुद्दा होगा। सोमवार को प्रधानमंत्री ने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के कार्यक्रम में कहा कि ‘घर में घुसकर मारूंगा यह मेरा सिद्धांत है।‘ उन्होंने यह भी कहा कि ‘सातवें पाताल में होंगे( आतंकवादी), उनको भी मैं छोड़ने वाला नहीं हूं।‘ इसे लोकसभा चुनाव में भाजपा के चुनाव प्रचार की विषय वस्तु मान लीजिए। इसका असर यह हुआ है कि पिछले महीने उत्तर प्रदेश में मजबूती से लड़ने की घोषणा करने वाली कांग्रेस अब सपा-बसपा के तम्बू में अपने लिए भी जगह तलाश रही है। प्रियंका वाड्रा के राजनीति में प्रवेश को गेम चेंजर बताया जा रहा था। पिछले बीस दिन से प्रियंका को न तो देखा गया है और न ही सुना गया है। इसमें कोई शक नहीं है कि वे जल्दी ही सक्रिय होंगी लेकिन बदले हालात में उनका प्रभाव और भूमिका दोनों सीमित हो सकते हैं।
भाजपा इस समय बम बम है। उसे लग रहा है कि जीत का मंत्र मिल गया है, बस चुनाव की घोषणा हो जाए। विपक्ष कह रहा है कि यह चीटिंग है। सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे को छोड़कर लड़ो तो बताएं। चुनाव सिर पर है। विपक्ष के लिए इतनी जल्दी विमर्ष बदलना लगभग असंभव है। यही विपक्ष की हताशा का कारण भी है। दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक ने केवल देश का माहौल ही नहीं बदला है बल्कि भाजपा के सबसे बड़े डर को भी फिलहाल दूर कर दिया है। खासतौर से उत्तर प्रदेश में। अब चुनाव में जाति के आधार वोट पड़ने की संभावना कम हो गई है। यही कारण है कि अखिलेश और मायावती कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने और कांग्रेस शामिल होने के लिए तैयार दिखती है। बदली परिस्थितियों में विपक्ष को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ेगा।