अजय विद्युत।
दुनिया में विख्यात भारतीय लेखक अमीष  त्रिपाठी अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनने से अभिभूत हैं। कुछ वर्ष पहले  रामनवमी के अवसर पर ही उनसे लम्बी बातचीत हुई थी। राजा हो तो राम जैसा। उन्होंने राजधर्म निभाया ही नहीं बल्कि जिया भी। तभी तो हम सब कहते हैं राजा रामचंद्र की जय। और किसी भगवान के लिए ऐसा क्यों नहीं कहते।

रामायण हमारा इतिहास है। भले भारी कीमत चुकानी पड़ी हो पर श्रीराम ने देश और समाज को सबल व उन्नत बनाने के लिए हर नियम का पालन किया। व्यक्ति, परिवार, समाज, देश और दुनिया के सामने मौजूद खतरों को हम मर्यादा और नियमों की पुनर्स्थापना कर ही टाल सकते हैं। भगवन  श्रीराम आज पहले से भी ज्यादा प्रासंगिक हैं क्योंकि नियम मर्यादाएं पूरे विश्व में तार तार हो रही हैं। अयोध्या में भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक होने वाला था। राज्याभिषेक के एक दिन पहले राजा दशरथ ने भगवान श्रीराम को अपने पास बुलाया और राजधर्म का पाठ पढ़ाया था।

राजा का सब कुछ देश का

राजा दशरथ ने श्रीराम से कहा, “राम, कल तुम्हारे सिर पर राजमुकुट पहनाया जाएगा। परंतु यह याद रखना जो राजमुकुट पहनता है वह अपने आप को अपने देश और अपनी  प्रजा के हाथों सौंप देता है। राजा होने का अर्थ है संन्यासी हो जाना। फिर उसका अपना कुछ नहीं रह जाता। सब कुछ देश का हो जाता है। बल्कि आवश्यकता पड़ने पर यदि राजा को अपने राज्य और प्रजा के हित के लिए अपनी स्त्री, संतान, मित्र, यहां तक की प्राण भी त्यागने पड़े तो उसे संकोच नहीं करना चाहिए। क्योंकि देश ही उसका मित्र है, देश ही उसका परिवार है। जो देश के लिए अपना सब कुछ नहीं त्याग कर सकता, उसे राजा बनकर प्रजा से कर लेने का कोई अधिकार नहीं।”

दशरथ ने कहा, “राजा को अपने हर आचरण से एक मर्यादा एक आदर्श स्थापित करना पड़ता है क्योंकि प्रजा इसको देखकर आचरण करती है। एक राजा की मूल शक्ति दंड नहीं, न्याय है। न्याय जो पक्षपात से रहित हो और जो संकुचित ना हो, क्योंकि न्याय करते हुए उदारता को भी नहीं छोड़ना चाहिए। राजा को पृथ्वी का भगवान कहा गया है क्योंकि लाखों प्राणियों का जीवन-मरण, सुख-दुख उसके हाथ में होता है। इसलिए उसमें दया, क्षमा, उदारता आदि भगवान के गुण होने चाहिए।”

राजा होने का अर्थ है संन्यासी हो जाना। फिर उसका अपना कुछ नहीं रह जाता। सब कुछ देश का हो जाता है, क्योंकि देश ही उसका मित्र है, देश ही उसका परिवार है।

गूढ़ बात अंत तक अपने मन में रखे

“युद्धभूमि में राजा को अपनी सेना के आगे रहना चाहिए। जो स्वयं वीर नहीं होता सेना उसका आदर नहीं करती। राजा को चाहिए ऋषियों, विचारकों और कवियों के आगे सदा नतमस्तक रहे, क्योंकि वही पथप्रदर्शक होते हैं, सही रास्ता दिखाते हैं। उसके जो अंतरंग और निस्वार्थ मंत्री हों, उनकी आलोचना का आदर करे, उन पर भरोसा करे। फिर भी अपने मन की गूढ़ बात अंत तक अपने मन में रखे। राजा को चाहिए अपने गुप्तचर द्वारा राज्य की पूरी खबर रखे।”

जब दशरथ जानते हैं कि राम राजनीति के कितने बड़े जानकार हैं। फिर वह राम को राजधर्म की तमाम बातें क्यों बता रहे हैं। क्या यह सब कहने की जरूरत है। दशरथ इसे स्पष्ट करते हैं- “मैं जानता हूं राम कि तुम स्वयं राजनीति के पूर्ण ज्ञाता हो। परंतु एक जाने वाले राजा का यह कर्तव्य है कि वह आने वाले राजा को अपने अनुभव से अवगत कराए।

वही राजा आदर्श जो मन से संन्यासी हो

आगे चलकर भगवन श्रीराम बाली का वध करते हैं। और सुग्रीव को राज्य सँभालने को कहते हैं। सुग्रीव संन्यास लेने की बात करते हैं। तब श्रीराम सुग्रीव से जो कुछ कहते हैं राजा के धर्म की व्याख्या करता वह प्रसंग भी अनूठा है।

4.8. sugrIva pours his heart out to rAma – rAmabhaktisAmrAjyam

श्रीराम: “तुम्हें राज्य संभालना चाहिए।”
सुग्रीव: “प्रभु, जो संन्यास  लेना चाहता है उसे आप राजा बनने को कह रहे हैं?”
श्रीराम: “संन्यासी से अच्छा राजा और कौन हो सकता है। सुग्रीव, यदि समझो तो वही आदर्श राजा है जो मन से संन्यासी हो। जिसे सिंहासन और सत्ता का लोभ न हो- वही सच्चा न्याय कर सकता है। जिसे निजी विलास और काम में आसक्ति नहीं होगी वही एक तपस्वी की भांति दिन रात जनसेवा के कार्य में संलग्न रहेगा। संन्यासी की भांति जिसका न ही कोई अपना होगा, न कोई पराया होगा, वही मोह ममता को त्यागकर ईश्वर की भांति अपनी सारी प्रजा से एक जैसा बर्ताव करेगा। इसीलिए राजा को ईश्वर भी माना गया है।

‘आदर्श पुरुष’ नहीं ‘नियमों का आदर्श अनुयायी’

अमीश त्रिपाठी भगवान राम को लेकर भारतीय और पश्चिमी समाज के एक बड़े वर्ग में व्याप्त भ्रान्ति को रेखांकित करते हुए कहते हैं, “आम तौर पर भगवान राम का उल्लेख ‘आइडियल मैन’(आदर्श पुरुष) के रूप में किया जाता है, जो संभवत: संस्कृत की उक्ति ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’का अंग्रेजी अनुवाद है। लेकिन संस्कृत की सामान्य समझ रखने वाला भी आपसे कहेगा कि यह अनुवाद अपूर्ण है। अंग्रेजी के ‘आइडियल मैन’ का समानार्थी शब्द ‘पुरुषोत्तम’ है। लेकिन आपने ‘मर्यादा’ को तो छोड़ ही दिया। मर्यादा का अर्थ हुआ नियमों और प्रचलित परंपराओं, रीति-रिवाजों का सम्मान। तो अगर आप पुरुषोत्तम के साथ मर्यादा को जोड़ दें, तो अंग्रेजी में सही अनुवाद क्या होगा? वह ‘आदर्श पुरुष’ नहीं बल्कि ‘नियमों का आदर्श अनुयायी’ (आइडियल फॉलोअर आफ रूल्स) होगा।”

रामराज्य मतलब क्या…?

वहां भगवान राम आदिरूप में नियमों के आदर्श अनुयायी के रूप में हैं। वे नियमों के आदर्श अनुयायी क्यों बने… ताकि संपूर्ण जगत बेहतर बने। उन्होंने ऐसी स्थितियां बनाई जहां लोग खुशहाल और संपन्न रहें, जीवन में कोई बड़ा मकसद हो। इसीलिए तो उसे ‘रामराज्य’ कहा गया।