पीएम मोदी ने विपक्ष पर वंशवाद का आरोप लगाते हुए कहा “अगर आप गांधी परिवार के बेटों और बेटियों की मदद करना चाहते हैं, तो आप कांग्रेस को वोट दें। अगर आप मुलायम सिंह के बेटे के कल्याण के लिए काम करना चाहते हैं तो समाजवादी पार्टी को वोट दें। लेकिन मेरी बात बहुत ध्यान से सुनिए, अगर आप अपने बेटे और बेटी का कल्याण करना चाहते हैं तो बीजेपी को वोट दें’। प्रधानमंत्री का यह बयान 22वें विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता पर 30 दिनों के अंदर जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचार आमंत्रित किए जाने के एक सप्ताह बाद आया है।
समान नागरिक कानून के मुताबिक पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक होंगे। इस कानून को बीजेपी के वैचारिक एजेंडे का अंतिम विषय भी बताया जा रहा है। अयोध्या में राम मंदिर और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ ही यूसीसी को पूरे देश में लागू करना बीजेपी का आखिरी एजेंडा है। वहीं विपक्ष इसे एक विवादास्पद मुद्दा बता रहा है ।
समान नागरिक संहिता क्यों है इतना बड़ा मुद्दा
समान नागरिक संहिता को लेकर बहस कोई नई नहीं है। समय- समय पर देश की बहुसंख्यक आबादी समान नागरिक संहिता को लागू करने की पुरजोर मांग उठाती रही है, वहीं अल्पसंख्यक वर्ग इसका विरोध करता रहा है। सवाल ये है कि क्या सांस्कृतिक विविधता वाले इस देश में इस तरह का कानून लाया जा सकता है? क्या एक एकीकृत राष्ट्र को ‘समानता’ की इतनी जरूरत है कि हम विविधता की खूबसूरती की परवाह ही न करें? और सबसे जरूरी सवाल ये कि इस बारे में हमारा संविधान क्या कहता है? ये सब समझने की कोशिश करते हैं।
समान नागरिक संहिता के पक्ष और विपक्ष में तर्क
समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग संविधान निर्माण के बाद से उठती रही है। लेकिन हर बार इसका विरोध भी हुआ। समान नागरिक संहिता के हिमायती यह मानते हैं कि भारतीय संविधान में नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार दिए गए हैं। यूसीसी को लागू न करना इन्हीं मूलभूत अधिकारों का हनन होगा।
क्या कहता है कानून

संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी को समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव करने की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार दिया गया है।
महिलाओं के मामले में इन अधिकारों का लगातार हनन होता रहा है। इसका उदाहरण तीन तलाक ( मुस्लिमों में था जिसे पीएम मोदी ने खत्म कर दिया है), मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर मनाही, शादी-विवाह या कई मामलों में महिलाओं को आजादी न देना, इसके अलावा कई ऐसे मामले हैं जिनमें महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। समाज की ये सारी रीतियां संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं, और समान नागरिक संहिता के पक्ष में इसे संविधान का उल्लंघन बताया जा रहा है।
यूसीसी का जिक्र संविधान में
समान नागरिक संहिता’ शब्द का भारतीय संविधान के भाग 4, अनुच्छेद 44 में जिक्र है। अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से मेल खाता है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है।
समान नागरिक संहिता पर बहस
समान नागरिक संहिता के लिए बहस भारत में औपनिवेशिक काल से शुरू होती है। और आजादी के बाद अब तक इस पर बहस जारी है। पूरे देश में आपराधिक कानून एक कर दिए गए। पर्सनल लॉ में कोई छेड़-छाड़ नहीं किया गया।
इसके तहत हुए कुछ सुधार
हिंदू कोड बिल
हिंदू कानूनों में सुधार के लिए डॉ बी आर अंबेडकर द्वारा बिल का मसौदा तैयार किया गया था। इसने तलाक को वैध बनाया। बहुविवाह का विरोध किया। बेटियों को विरासत का अधिकार दिया। इस बिल का भी जमकर विरोध किया गया था।
उत्तराधिकार अधिनियम
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 मूल रूप से बेटियों को पैतृक संपत्ति में विरासत का अधिकार नहीं देता था। वे केवल संयुक्त हिंदू परिवार से भरण-पोषण का अधिकार मांग सकती थी। लेकिन 9 सितंबर, 2005 को अधिनियम में संशोधन करके इस भेदभाव को दूर कर दिया गया था।
विशेष विवाह अधिनियम

यह 1954 में लाया गया था, जो किसी भी धर्म के व्यक्ति को अपने धर्म से बाहर शादी करने का अधिकार देता है।
अल्पसंख्यक समुदाय खासतौर से मुस्लिम समाज समान नागरिक संहिता का जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा जाता है कि संविधान ने देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। इसलिये सभी पर समान कानून थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा।
भारत का संविधान कैसे यूसीसी का विरोध करता है इस तर्क को समझिए
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। यह मौलिक अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी आधार पर भेदभाव किए बिना अपनी पसंद के किसी भी धर्म को मानने की आजादी है। अनुच्छेद 25 में “नागरिक” शब्द की जगह “सभी व्यक्तियों” शब्द का इस्तेमाल किया गया है। यानी कि धार्मिक स्वतंत्रता भारत के नागरिकों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह अधिकार विदेशियों को भी मिलता है। अनुच्छेद 25 व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है। यह अपनी पसंद के धर्म को मानने के अधिकार की गारंटी देता है। यह कानून सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के अधीन है।
मुस्लिमों में विरोध की क्या वजह?
मुस्लिमों के मुताबिक उनके निजी कानून उनकी धार्मिक आस्था पर आधारित हैं इसलिये समान नागरिक संहिता लागू कर उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाए। मुस्लिम विद्वानों का ये तर्क है कि इस्लाम का शरिया कानून 1400 साल पुराना है। यह कानून कुरान और पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित है।मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक शरिया उनकी उनकी आस्था से जुड़ा हुआ है। मुस्लिमों का ये तर्क है कि 6 दशक पहले उन्हें मिली धार्मिक आजादी धीरे-धीरे उनसे छीनने की कोशिश की जा रही है।
पीएम मोदी के भाषण से एजेंडा सेट
अब पीएम मोदी ने समान नागरिक संहिता की बात कहकर विपक्ष के सामने एजेंडा सेट कर दिया है। विपक्ष लगातार इस पर हमलावर हो रहा है। गोवा, गुजरात, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश की कई राज्य सरकारों ने अपने राज्यों में समान नागरिक संहिता लाने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि पार्टी को विश्वास है कि विधि आयोग की रिपोर्ट के बाद अगर समान नागरिक संहिता संसद में लाई जाती है तो उसे पारित करने के लिए संख्या बल भी होगा और यह मुद्दा शीतकालीन सत्र में उठ सकता है।
दूसरी तरफ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल ये नहीं चाह रहे हैं कि बीजेपी आगामी चुनावों में समान नागरिक संहिता लागू करने का श्रेय ले। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस लगातार इसका विरोध कर रही है। कांग्रेस ने 22वें विधि आयोग (यूसीसी को लागू करने की सिफारिश के लिए) की आलोचना करते हुए उसे 21वें विधि आयोग के बयान की याद दिलाई।
क्षेत्रीय दल भी यूसीसी का विरोध कर रहे
बिहार के मंत्री और जदयू के वरिष्ठ नेता विजय कुमार चौधरी ने आरोप लगाया कि समान नागरिक संहिता का जिक्र कर मोदी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर रहे हैं। राजद नेता मनोज झा ने कहा कि हिंदू धर्म में भी बहुत विविधता है।
पूर्वोत्तर के राज्य
पूर्वोत्तर राज्यों के राजनेता का कहना है कि यूसीसी विविध समाजों के लिए खतरा पैदा करेगा। संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) और 371 (जी) के अनुसार, पूर्वोत्तर राज्यों की जनजातियों को विशेष प्रावधानों की गारंटी दी गई है जो संसद को किसी भी कानून को लागू करने से रोकते हैं।(एएमएपी)



