पितृपक्ष: पूर्वजों के प्रति आभार प्रदर्शन का एक अवसर।

#dhruvguptध्रुव गुप्त।

आज 29 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो रहे हैं। पितृपक्ष अर्थात दुनियादारी के कामों से थोड़ी फ़ुर्सत निकालकर अपने पूर्वजों और दिवंगत प्रिय लोगों को याद करने का एक अवसर। 

मरने के बाद हम सबके अस्तित्व का क्या होता है, यह सवाल मानवता को सदा से परेशान करता रहा है। इसका कोई निश्चित उत्तर आज तक नहीं मिला है। विज्ञान कहता है कि देह की मृत्यु के बाद सब कुछ समाप्त हो जाता है। शरीर से अलग किसी आत्मा या सूक्ष्म देह का कोई अस्तित्व नही है। धर्म, अध्यात्म कहते हैं कि मृत्यु के बाद देह तो मिट्टी में मिल जाती है, लेकिन अपनी तमाम बुद्धि-विवेक के साथ आत्माएं किसी न किसी आयाम में मौजूद रहती हैं। आत्मा का कभी विनाश नहीं होता। उनमें से जो आत्माएं वीतरागी होती हैं वे संसार के बंधनों से मुक्त होकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा या ईश्वर में समाहित हो जाती हैं।

मुंह को लगी यह दुनिया तो छूटने से रही

सवाल राग-विराग, मोह-माया, दुख-सुख और हज़ारों ख्वाहिशों में जकड़े हमारे जैसे सांसारिक लोगों का है कि मरने के बाद अपने अभौतिक शरीर के साथ वे कहां जाते होंगे ? कमबख्त मुंह को लगी यह दुनिया तो छूटने से रही। कहते हैं कि ऐसे लोग प्रेत बनकर अपनी काम्य वस्तुओं, प्रिय लोगों और स्थानों के गिर्द भटकते हुए अगले जीवन के लिए परिस्थितियों की तलाश करते हैं। तर्क तो यह कहता है कि मृत्यु के बाद हमारी इच्छाओं, अतृप्तियों, विचारों और संस्कारों से निर्मित हमारी सूक्ष्म देह को श्राद्ध या पितृपक्ष में अर्पित की जानेवाली संपति, भोजन और कपड़ों की ज़रुरत नहीं होती है। भौतिक देह नहीं तो भौतिक उपादानों की भला क्या आवश्यकता?

कर्मकांडों का भावनात्मक सच

मृत्यु के बाद किये जाने वाले पितृपक्ष जैसे आयोजन व्यर्थ के कर्मकांड के सिवा कुछ नहीं, लेकिन इन कर्मकांडों का भावनात्मक सच भी है। अगर ये कर्मकांड भी न हों तो इस व्यस्त, उलझे जीवन में भला कौन किसको याद करता है? हमारा दृष्टिकोण जितना भी वैज्ञानिक हो, संस्कारों से बंधे हमारे मन के किसी कोने में यह बात जरूर दबी होती है कि मृत्यु के बाद हमारे प्रियजन हमारे आसपास ही कहीं मौजूद होते हैं और उन्हें शायद हमारी चिंता भी होती है।

आस्था और तर्क के बीच का रास्ता

 

मेरी समझ से आस्था और तर्क के बीच का रास्ता तो यह होना चाहिए कि पितृपक्ष के कर्मकाण्डीय पक्ष को खारिज़ कर परिवार के लोग इस अवधि में में रोज कुछ समय निकालकर साथ बैठें और अपने प्रिय दिवंगतों की स्मृति में दीये जलाकर उन्हें और उनसे जुडी तमाम अच्छी बातों को याद करें। मृत्यु के बाद अगर सब कुछ खत्म नहीं होता और हमारे पूर्वजों की समय और स्थान से परे किसी आयाम में उपस्थिति है तो उन्हें यह देखकर खुशी जरूर मिलेगी कि पिछले जीवन के उनके अपने अब भी सम्मान के साथ उन्हें याद करते हैं। अगर देह से अलग ऐसा कोई अभौतिक अस्तित्व नहीं है तब भी पितृ पक्ष अपने पितरों के प्रति आभार प्रदर्शन का एक अवसर तो है ही। पितृ पक्ष में अपने और संसार के समस्त पूर्वजों को नमन और श्रद्धा-निवेदन!

(लेखक जाने-माने साहित्यकार और सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी हैं। आलेख सोशल मीडिया से साभार)