रविवार को मनाए जाने वाले दीपों के पर्व दीपावली की सभी तैयारी पूरी हो चुकी है। आधुनिकता के इस दौर में लोगों ने घरों की साफ-सफाई कर उसे सजा दिया है। डिजिटल जमाने में विभिन्न प्रकार के रंगीन बल्बों से आकर्षक डेकोरेशन किए गए हैं। लक्ष्मी-गणेश की मिट्टी की प्रतिमा के अलावा नए-नए डिजाइन की प्रतिमाएं खरीद ली गई है।
”हुक्का पाती” का प्रचलन आज भी
दीपावली के उमंग पर आधुनिकता का रंग पूरी तरह से हावी हो गया है। बावजूद इसके आज भी ”हुक्का पाती” को लोग भूले नहीं हैं। शहर में ”हुक्का पाती” का प्रचलन भले ही धीरे-धीरे कम हो रहा है लेकिन गांव में आज भी इसका जोश-खरोश जारी है। दीपावली की शाम में खेले जाने वाले हुक्का पाती के लिए शुक्रवार से ही संठी (एक प्रकार की लकड़ी) की जमकर खरीदारी की गई। हुक्का पाती भी बनाकर बिक रहा है।
यह है परंपरा
रविवार की शाम लक्ष्मी-गणेश पूजा के बाद हर घर में हुक्का से लक्ष्मी को घर के अंदर और दरिद्र को बाहर किया जाएगा। पुराने समय से परंपरा चली आ रही है कि कई संठी को मिलाकर कम से कम पांच जगहों पर बांध दिया जाता है। उसके बाद पूजा घर के गेट पर जलाए गए दीपक में उसे प्रज्जवलित कर तीन बार घर के बाहर लाकर बुझाया जाता है। उसके बाद अंतिम बार घर के सभी पुरुष सदस्य उसे हाथ में लेकर अपने पूरे परिसर का भ्रमण करते हैं।
लकड़ी जब छोटी बच जाती है तो पांच बार उसे लांघ कर बुझा दिया जाता है। कहा जाता है कि इस परिपाटी से घर में हमेशा लक्ष्मी का वास होता है। पहले गांव-गांव में संठी की खेती होती थी और दीपावली के समय मुफ्त में लोग उसे बांटते थे। लेकिन अब एक और जहां खेती कम हो गई है, वहीं बांटने वाले भी समाप्त हो गए हैं और संठी बाजारों में बिक रहा है। गांव से लेकर शहर तक के तमाम बाजारों में धनतेरस के दिन से ही संठी की खूब बिक्री हो रही है।
लेकिन इसकी सबसे अधिक बिक्री शनिवार की सुबह से हो रही है। संठी शहर में भी लाए गए हैं, लेकिन शहरी चकाचौंध में लोग उसे भूलते जा रहे हैं। एक-दो कमरे में रहने वाले लोग करें भी तो क्या, उनके पास जगह नहीं है कि वह हुक्का पाती खेल सकें। लेकिन गांव में किसी भी पर्व का रंग हमेशा चटख होता है और इसी कड़ी में गांव के घर-घर में हुक्का पाती बनाकर तैयार कर लिए गए हैं। हालांकि इस बार शहर में भी संठी और हुक्का पाती की जमकर बिक्री हो रही है। (एएमएपी)