अयोध्या नगरी में दो बड़ी कब्रें हैं, एक छह गज लंबी, दूसरी सात गज की है। लोग कहते हैं कि अयूब और शीश की कब्रें हैं और बारे में विचित्र बातें कहते हैं। अल्लाहताला ने पहले आदम को बनाया जब उन्होंने शैतान के बहकाने से गेहूं खा लिया तो फिरदौस (जन्नत) से गिरा दिए गए तो लंका द्वीप में गिरे जहां पर्वत पर उनका तीन गज लंबा चरण चिंह अबतक दिखाया जाता है। आदम के दो बेटे अयूब और शीश की कब्रें अयोध्या में बताई जाती हैं। मुगल बादशाह अकबर का मंत्री अबुल फजल लिखता है। जबकि वह लिखता है कि बताई जाती है अर्थात वह खुद भी इस बात को लेकर निश्चित नहीं है कि दो कब्रें किसकी हैं।

अयोध्या में मुसलमानों का आगमन विक्रम संवत की 11 वीं शताब्दी में हुआ था। लगभग यह वही समय था, जब गुजरात के प्रभास पाटन में सोमनाथ पर हमलों का दौर जारी था। इसी समय काबुल और कांधार के बीच के प्रांत का राजा अलप्तगीन बन गया। अलप्तगीन खुरासान और बुखारा के बादशाहों का गुलाम हुआ करता था। उसकी मौत के बाद 1034 में सुबुक्तगीन ने गजनी पर अधिकार कर लिया। दूसरी तरफ परिहार वंश का राजा राज्यपाल कन्नौज का शासक था। सुबुक्तगीन ने जयपाल से युद्ध किया। इस लड़ाई में जयपाल की पराजय हुई और उसने सुबुक्तगीन को कर देना स्वीकार किया। विंसेट स्मिथ लिखते हैं कि हिंदुओं की हार का कारण था आक्रमणकारी बर्बर थे, वह युद्ध का कोई नियम नहीं मानते थे।

महमूद गजनी बना बादशाह, बाले मियां पहुंचा बाराबंकी

सुबुक्तगीन के बाद उसका बेटा महमूद गजनी बादशाह बना। उसने भारत पर ताबड़तोड़ हमलों का सिलसिला जारी कर दिया। गुजरात में सोमनाथ मंदिर समेत हजारों मंदिर तोड़ डाले गए। सोमनाथ के पुजारियों का कत्लेआम हुआ। कोल-भीलों और सोमपुरा ब्राम्हणों ने गजनी के बर्बर हमलों का जमकर सामना किया और मारे गए। गजनी का भांजा सैयद सालार मसउद गाजी जो गाजी मियां और बाले मियां के नाम से भी जाना जाता था। उसने गुजरात के बाद भारत के अन्य हिस्सों का रुख किया। लूट और हत्या की वारदात को अंजाम देते वह उत्तरप्रदेश के बाराबंकी तक पहुंच गया।

बाराबंकी के पास उस समय सत्रिख बड़ा समृद्ध नगर हुआ करता था। बाले मियां ने यहां पर डेरा डाल दिया और हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए अपने सेना नायक सैफदउद्दीन और मियां रज्जब को बहराइच की ओर भेजा। मलिक फजल को काशी भेजा गया, तो अजीजउद्दीन को गोपामऊ रवाना किया।

बहराइच में मुगलों ने डाला डेरा

साल 1032 में बहराइच मुगल पहुंच चुके थे। जहां भगवान सूर्य नारायण का विश्व प्रसिद्ध मंदिर हुआ करता था। इसके अलावा यहां पर एक तालाब भी था जिसे सूर्यकुंड कहा जाता था। इस मंदिर का निर्माण अयोध्या के सूर्यवंशी सम्राटों ने किया था। लाला सीताराम अपनी पुस्तक अयोध्या का इतिहास में लिखते हैं कि इसकी पताका की ऊंचाई अयोध्या के राममंदिर की पताका से भी अधिक ऊंचा हुआ करती थी। बहरहाल, इतिहास के अनुसार यही पर कौशल्या नदी थी, जिसे कोड़ियाला कहा जाता था, जिसके किनारे भयंकर युद्ध हुआ। स्थानीय लोगों और मुगल सेना के बीच भारी रक्तपात हुआ।

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हमारी मौत के बाद सूर्यमंदिर तोड़कर यहीं पर बना देना मजार

ईसवी 1033 में मसउद की सारी सेना काट डाली गई और मसउद भी मारा गया। यह कथा प्रचलित है कि मसउद ने सूर्य मंदिर (वालार्क) देखकर कहा था कि हम युद्ध जीते और यह क्षेत्र हमारे पास आया तो मौत के बाद यहीं अपनी मजार बनाएंगे। करीब दो सौ साल के बाद जब मुस्लिम राज आया तो सूर्यमंदिर को तोडक़र मसउद की मजार बना दी गई। अवध गजेटियर में लिखा है कि कब्र में मसउद का सर सूर्यनारायण मंदिर पर रखा हुआ है। ग्रंथ दरबिहिश्त में लिखा है कि गाजी मियां अयोध्या आया था। अवध गजेटियर, वाल्यूम एक, पेज तीन पर इसका उल्लेख देखा जा सकता है।

राजा सुहेलदेव ने मसउद और उसकी सेना को काट डाला था

अवध गजेटियर के अनुसार मसउद को पराजित करने वाले राजा सुहेलदेव थे। संभव है कि मसउद की सेना जिस तरह गाजर-मूली की तरह काट दी गई उसके बाद गाजी मियां की सेना को अयोध्या की तरफ बढ़ने का साहस नहीं जुटा पाई थी। बाराबंकी के सत्रिख शहर से बहराईच की जगह अयोध्या करीब थी लेकिन मुगल सेनाएं उधर जाने से डरने लगी थी। हांलाकि अयोध्या के कनक भवन को गाजी मियां ने नष्ट किया था, ऐसा एक लेख कनक भवन की ओर से छापा गया था।

मंदिर का चढ़ावा आज भी मुसलमान लेते हैं

महमूद गजनी की मौत के बाद मुहम्मद बिन साम ने भारत की ओर रुख किया और पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई हुई। उस समय अयोध्या कन्नौज के गहरवारों के अधीन थी और गहरवारों के परास्त होने के बाद अयोध्या मुगलों के अधीन आ गई। इसी वक्त मखदूम शाह जूरन गोरी एक छोटी सी सेना लेकर अयोध्या पहुंचा। उसने अयोध्या आते ही जैन समुदाय के भगवान आदिनाथ मंदिर को तोड़ डाला। अयोध्या के बकसरिया टोले में अब भी जूरन के वंशज रहते हैं, हालांकि भगवान आदिनाथ का मंदिर फिर से बन गया है। लेकिन बताया जाता है कि मंदिर का चढ़ावा मुसलमान लेते हैं।

अयोध्या पर कुल 76 मुगल हमले हुए

गुलाम आब्दगीन के समय एक हमला, शाह फीरोज के समय दस हमले, मुहम्मद तुगलक के समय दो हमले, बाबर के समय चार हमले, हूमायूं के समय दस हमले, अकबर के समय 16 हमले, औरंगजेब के समय 21 हमले, सैयद सालार मसउद गाजी के समय दो हमले, नबाव सहादत अली के समय चार हमले, सिकंदर लोदी के समय एक हमला, नासिरउद्दीन हैदर के समय तीन हमले, अंग्रेजों के समय दो हमले। इस प्रकार कुल 76 हमलों से अयोध्या घायल होती रही…। (एएमएपी)