अमिताभ श्रीवास्तव ।

राजू हीरानी को मौजूदा दौर के हिंदी सिनेमा में जादूगर फिल्मकार का रुतबा हासिल है क्योंकि उनकी अब तक की किस्सागोई में कुछ ऐसा जादू रहा है कि दर्शक बेहतरीन मनोरंजन के लिए उनकी फिल्म की तरफ दौड़े आते हैं। शाहरुख खान से जुगलबंदी करके राजकुमार हीरानी ने इस जादू का दोहरा असर पैदा करने की ख्वाब देखा होगा। हीरानी को उम्मीद रही होगी कि 2023 में पठान और जवान की धमाकेदार कामयाबी के बाद शाहरुख की साल की तीसरी फिल्म डंकी की तरफ भी दर्शक खिंचे चले आएंगे और फिल्म पहले दिन से ही ब्लॉकबस्टर साबित होगी।

पहले दिन लोग खूब आए तो जरूर लेकिन अफसोस, डंकी देखने के बाद प्रतिक्रियाएं मिलीजुली रहीं।

राजकुमार हीरानी की फिल्में दर्शकों को हंसाने, उन्हें खूब इमोशनल कर देने और सकारात्मक संदेश देने के लिए जानी जाती हैं। मुन्नाभाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्नाभाई,  थ्री इडियट्स और पीके में हीरानी ने बहुत गंभीर विषयों को उठाया। राजकुमार हीरानो की फिल्मों ने हिंदी के सिनेमा दर्शकों के एक बहुत बड़े वर्ग के दिल को बहुत गहरे छुआ है।  यह अनुभूति सिर्फ आम दर्शक की नहीं बल्कि विशिष्ट वर्ग के दर्शकों और बुद्धिजीवियों की भी रही है।  हिंदी के चर्चित जन बुद्धिजीवी, इतिहासकार और  प्राध्यापक स्वर्गीय लाल बहादुर वर्मा ने जब महात्मा गांधी पर किताब लिखी तो उसके शीर्षक के लिए उन्होंने राजकुमार हीरानी की फिल्म ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ में इस्तेमाल किए गये शब्द गांधीगीरी को चुना और किताब में इसका जिक्र भी किया कि किस तरह गांधीवाद की जगह गांधीगीरी के जरिये आज के दौर में गांधी की गंभीर बातों को आम लोगों के बीच पहुंचाया जा सकता है।

डंकी से पहले राजकुमार हीरानी के निर्देशन की खूबी यही रही है कि उन्होंने गंभीर विषयों को भी कसी हुई कथा-पटकथा के सांचे में ढालकर कॉमेडी और इमोशन के मिश्रण के साथ हल्के- फुल्के अंदाज में पेश किया और दर्शकों की वाहवाही के साथ-साथ बॉक्स ऑफिस पर भी जबरदस्त कामयाबी हासिल की। संजू से पहले की उनकी सारी फिल्में इसकी मिसाल हैं। संजू भी बहुत कामयाब  रही लेकिन उसकी कहानी एक जीतेजागते,  सफल और विवादास्पद फिल्म अभिनेता पर आधारित थी और व्यक्तिकेंद्रित थी।  उसके अलावा सभी फिल्मों में हीरानी के निर्देशन में संजय दत्त,  आमिर खान, बमन ईरानी का शानदार अभिनय उन फिल्मों की सफलता के साथ जुडा रहा है।

डंकी में हीरानी अपनी ही स्थापित लीक से भटक गये हैं। हंसी और इमोशन दोनो मोर्चो पर मामला फीका रह गया है। फिल्म बुरी नहीं है लेकिन खुद राजकुमार हीरानी की पिछली फिल्मों के मुकाबले एक अच्छे विषय के बावजूद ट्रीटमेंट में कमजोर है और कम असर छोड़ती है। हीरानी से मास्टरपीस की उम्मीद थी… डंकी नहीं है। शाहरुख खान भी 2023 में दो धमाकेदार एक्शन फिल्में देने के बाद डंकी में वापस इमोशनल रोल में लौटे हैं।  डंकी की पहले दिन की कमाई शाहरुख की बाकी दोनों फिल्मों की पहले दिन की कमाई  से कम बताई जा रही है। ऐसे में देखना है कि पठान, जवान, गदर 2 और एनिमल को छप्परफाड कामयाबी देने वाला  दर्शक आगे डंकी को कितना सराहता है।

फिल्म  की कहानी अवैध तरीके से विदेश जाने वाले आम लोगों से जुड़ी है और उनके प्रति सहानुभूति दिखाती है। यह वैश्विक स्तर पर एक गंभीर राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विषय है। तमाम पश्चिमी देश अवैध प्रवासियों की समस्या से जूझ रहे हैं। इस विषय पर पश्चिमी सिनेमा में बहुत गंभीर, मार्मिक फिल्में बनी हैं।

भारत में विदेश जाने की ललक बेहतर जिंदगी के सपने से जुडी है। अमेरिकन ड्रीम हमारे समाज में एक जुमला भर नहीं है, लाखों लोगों के लिए हैसियत, इज्जत और रुतबे का ख्वाब है जो उन्हें अपने देश में पूरा होता नहीं दिखता। इस सपने में महानगरीय मध्यवर्गीय आबादी के अलावा छोटे शहरों के निचले तबके के लोगों की भी सेंधमारी है। पंजाब , हरियाणा, गुजरात समेत कई राज्यों के तमाम  निम्न वर्गीय लोग शिक्षा और संसाधनों  की कमी की वजह से अवैध तरीके से विदेश जाने की जालसाजी का शिकार हो जाते हैं और अपना सब कुछ गंवाकर कहीं के नहीं रहते। ऐसे बहुत से लोग या तो रास्ते में मारे जाते हैं या फिर विदेशों की जेलों सड़ते रहते हैं और उनके घर वालों को उनका कुछ हाल नहीं मिलता। बचे खुचे लोग परदेस में मामूली काम करते हुए जिंदगी बिताते हैं। इधर भारत में उनके घर वाले उनके भेजे पैसों की बदौलत बेहतर जीवन जीते हैं और उन्हें बड़ा आदमी समझते हैं। पंजाब, हरियाणा में अवैध तरीके से विदेश जाने की कोशिश को डंकी मारना कहते हैं।

डंकी ऐसे ही कुछ किरदारों की कहानी है जो पंजाब के लाल्टू से लंदन जाने की कोशिश करते दिखाए गये हैं।  फिल्म के पहले हिस्से में ‘बर्मिंघम हियर आई कम’ का संवाद कई बार गूंजता है।  फिल्म का एक संवाद है- डंकी वो मुश्किल सफर है जिसमें भूख, गोलियां लांघनी होती है।

फिल्म खत्म होने के बाद जो एक एक्टर सबसे ज्यादा याद रह जाता है वह है विकी कौशल। अपनी प्रेमिका को लंदन से भारत लाने के लिए विदेश जाने की नाकाम कोशिश करने वाले एक नौजवान सुक्खी के छोटे से किरदार में विकी कौशल ने कमाल का काम किया है। विकी ने एक बार फिर साबित किया है कि उनमें गजब की प्रतिभा है और वह किसी भी एक्टर पर भारी पड सकते हैं। सैम बहादुर  के फौरन बाद  इस साल यह उनकी दूसरी फिल्म है। राजू हीरानी के साथ इससे पहले विकी संजू फिल्म में नजर आए थे और शानदार अभिनय के लिए खूब प्रशंसा मिली थी।

फिल्म के अंत में निर्देशक ने एक ग्राफिक प्लेट पर आंकडों के जरिये अवैध प्रवासियों की समस्या से जुडे कुछ तथ्य उजागर करते हुए यह भी कहा है कि सीमाएं सिर्फ गरीबों को रोकती हैं। यह फिल्म जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी की पुरानी सूक्ति को नये अंदाज में पेश करती है। फिल्म में देशप्रेम का मसाला है, लव स्टोरी है जहां हीरो-हीरोइन का ट्रैक भी पारंपरिक प्रेम कहानियों से अलग है। अफसोस कि हीरानी की हर फिल्म में बहुत अहम किरदार में नजर आने वाले बोमन ईरानी इस फिल्म में बहुत छोटी और कमजोर सी भूमिका में हैं। उनसे ज्यादा अच्छा स्पेस विक्रम कोचर और अनिल ग्रोवर को मिला है। तापसी पन्नू शाहरुख की जोड़ीदार बनी हैं।

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अभिनेताओं का काम ठीक है लेकिन इस बार हीरानी, अभिजात जोशी की लिखावट में वह कसावट नहीं है जिसके लिए वो जाने जाते हैं। पटकथा लिखने वाली टीम में इस बार कनिका ढिल्लों भी जुडी हैं। हीरानी का निर्देशन भी बिखरा बिखरा सा है। कमियां हैं लेकिन  डंकी को इस बात के लिए भरपूर तारीफ मिलनी चाहिए कि साल के अंत में एक पारिवारिक फिल्म आई है जिसमें न तो हिंसा है, न गालियां, न नंगापन और अश्लीलता । साफ सुथरी फिल्म है और, सबके साथ देखी जा सकती है।

लगातार बहुत अच्छे नंबर लाने वाले छात्र से सब हमेशा बहुत अच्छे रिजल्ट की ही उम्मीद करते हैं। बदकिस्मती से अगर कभी उसके नंबर पचानबे छियानबे पर्सेंट न होकर सत्तर-पचहत्तर तक रह जाएं तो उसे औसत भी न मानकर लोग फेल हो जाने वाली निगाह से देखने लगते हैं। राजकुमार हीरानी की फिल्म डंकी का यही हाल है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)