प्रमोद जोशी ।
अहम सुधारों को राजनीतिक ढंग से लुभावना बनाना होता है। अब सुधारों को गुपचुप और चरणबद्ध तरीके से अंजाम देने का वक्त नहीं रहा। ऐसे में समझना होगा गलती कहां हुई। दरअसल कोई भी कानून उतना ही अच्छा या बुरा होता है जितना कि उससे प्रभावित लोग उसे पाते हैं।

24 जनवरी 2021 के बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित अपने कॉलम ‘राष्ट्र की बात’ में शेखर गुप्ता ने लिखा है कि मोदी सरकार ने कृषि कानूनों पर पीछे हटकर अधैर्य का परिचय दिया है। उन्होंने लिखा, बहानेबाजी, मिशन को रद्द करना, झिझक जाना, रणनीतिक रूप से कदम पीछे करना, गतिरोध, कृषि सुधारों को लेकर मोदी सरकार की दुविधा समझाने के लिए इनमें से किसी भी शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे हार या आत्मसमर्पण न मानें तो भी यह दुविधा तो है। यह दुखद है क्योंकि ये कानून साहसी और सुधारवादी हैं और ये किसानों को नुकसान पहुंचाने के बजाय मददगार साबित होंगे।

कृषि कानूनों को लेकर पीछे हटने की वजह

हमारी दृष्टि में सात प्रमुख वजह हैं जिनके कारण मोदी-शाह की भाजपा किसानों को यकीन दिलाने में नाकाम रही।
  1. वे यह नहीं मानना चाहते कि उत्तर भारत में एक ऐसा गैर मुस्लिम राज्य है जहां मोदी को वह लोकप्रियता हासिल नहीं जो उन्हें हिंदी प्रदेश में है।
  2. वे यह नहीं मानते कि उन्हें कभी स्थानीय साझेदार की जरूरत महसूस नहीं हुई। अकालियों से अलग होने की यही वजह है। पंजाब के सिख, असम के हिंदुओं जैसे नहीं हैं जो मोदी को तब भी वोट देते हैं जब वह उनकी क्षेत्रीय पार्टी को हाशिए पर धकेल दें और उनके नेताओं को चुरा लें।
  3. इस स्तंभ में पहले भी लिखा जा चुका है कि वे सिखों को नहीं समझते। अलग वेशभूषा के बावजूद वे उन्हें मूल रूप से हिंदू मानते हैं। सच यह है कि वे हिंदू हैं लेकिन नहीं भी हैं। परंतु मोदी-शाह की भाजपा को भी बारीकियों की अधिक समझ नहीं है।
  4. भाजपा यह समझ नहीं पाई कि पंजाब के किसान 20वीं सदी के आरंभ में भगत सिंह से भी पहले वाम प्रभाव में आ गए थे। सिखों और गुरुद्वारों में सामुदायिक गतिविधियों की परंपरा रही है। वाम के संगठनात्मक कौशल और राजनीतिक विवेक को भी इसमें शामिल कर दिया जाए। नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल को वार्ताओं में इन्हीं का सामना करना है।
  5. इन्हीं सब वजहों से मोदी सरकार सुधारों का प्रचार प्रसार करने से नहीं हिचकिचाई। उसने हरित क्रांति वाले और अधिशेष उपज उत्पन्न करने वाले किसानों को यह नहीं बताया कि जिस व्यवस्था के अधीन उनकी दो पीढ़ियां समृद्ध हुई हैं वह ध्वस्त हो चुकी है। उसने बस इसे ठीक करने के लिए तीन कानून बना दिए।
  6. आप सिखों के खिलाफ बल प्रयोग नहीं कर सकते। स्पष्ट कहें तो उनके साथ मुस्लिमों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता। आप उनकी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठा सकते। अगर उनके साथ मुस्लिमों जैसा व्यवहार किया गया तो पूरा देश विरोध करेगा। वहीं अगर उनकी देशभक्ति पर सवाल उठा तो सिख आप पर हंसेंगे और पूरा देश आपसे पूछेगा कि आपकी दिक्कत क्या है। यानी उनके खिलाफ जाने-पहचाने हथियार इस्तेमाल नहीं किए जा सकते: बल प्रयोग, एजेंसियों का इस्तेमाल, दुष्प्रचार, अतिशय राष्ट्रवाद आदि।
  7. आखिर में मोदी-शाह की भाजपा का जाना-पहचाना रुख: अतीत के प्रति अवमानना का भाव। क्योंकि वे मानते हैं कि भारत का इतिहास 2014 की गर्मियों से शुरू हुआ और उसके पहले जो कुछ हुआ वह एक त्रासदी थी और उससे कोई सबक लेना उचित नहीं।PM Narendra Modi Says Farm Laws Not Brought In Overnight
सातवें बिंदु पर थोड़ा विस्तार से चर्चा करते हैं। यदि सन 2014 के बाद के भाजपा नेता सत्ता और आत्म मोह से ग्रस्त न होते तो शायद वे किसी से कहते कि उन्हें देश से जुड़े अनुभवों से वाकिफ कराए। यकीनन तब उन्हें जवाहरलाल नेहरू की उन तमाम कथित गलतियों की जानकारी नहीं मिलती जिनके बारे में उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बताया गया। तब उन्हें यह अवश्य पता चलता कि कैसे एक अत्यंत ताकतवर नेता को जो अपनी लोकप्रियता के शिखर पर था उससे गलती हुई और उसे अपने कदम वापस लेने पड़े।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)