डॉ. संतोष कुमार तिवारी

इस्कॉन के संस्थापक भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी (1896-1977) बहुत सुव्यवस्थित व्यक्ति थे और कुशल प्रशासक थे। गीता प्रेस की हिन्दी मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ के अप्रैल 1970 के अंक में  पृष्ठ संख्या 842-845  पर इस्कॉन के बारे में एक बहुत विस्तृत लेख प्रकाशित हुआ था। इसमें कहा गया  था कि तब तक इस्कॉन के 25 श्रीराधाकृष्ण मन्दिर/केन्द्र अमेरिका, यूरोप, कनाडा, आस्ट्रेलिया तथा जापान में स्थापित हो चुके थे। लेख में कहा गया था कि स्वामी प्रभुपादजी 108 मन्दिर/ केन्द्र स्थापित करना चाहते हैं।

ऐसा ही हुआ भी। 14 नवम्बर 1981 में अपना शरीर त्याग करने के समय तक प्रभुपादजी इस्कॉन के 108 मन्दिर/ केन्द्र स्थापित कर चुके थे।   

‘कल्याण’ के अप्रैल 1970 अंक में जब यह लेख प्रकशित हुआ था, तब तक भारत में इस्कॉन के बारे में कम जाना जाता था। कारण यह था कि उस युग में संचार के साधन बहुत कम थे। इंटरनेट तो था ही नहीं। मोबाइल फोन भी नहीं थे। स्वामी प्रभुपादजी (1896-1977) ने अमेरिका में सन् 1966 में इस्कॉन की न्यूयॉर्क में स्थापना की थी और वहां पहला  राधा कृष्ण मन्दिर स्थापित किया था।

भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी के आध्यात्मिक गुरु थे भक्तिसिद्धान्तजी महाराज (1874-1937)। उन्हीं से प्रभुपादजी ने सन् 1933 में दीक्षा ली थी। उन्होंने ही भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी से कहा था कि तुम पश्चिमी जगत में जाकर अंग्रेजी में भगवान श्री कृष्ण की वाणी का प्रचार करो; चैतन्य महाप्रभु की परंपरा का प्रचार करो। दीक्षित  होने के कुछ वर्षों बाद प्रभुपादजी ने Back to Godhead (ईश्वर की ओर मुड़ो) नामक पत्रिका निकली थी। यही पत्रिका बाद में इस्कॉन के फ्लैगशिप अर्थात प्रमुख पत्रिका बनी।  

अपने गुरु के सुझाव पर भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी सन् 1965 में एक मालवाहक समुद्री जहाज में बैठ कर तमाम परेशानियाँ झेलते हुए अमेरिका गए थे। पश्चिमी जगत में बहुत जल्दी ही प्रभुपादजी का ‘हरे कृष्ण’ आन्दोलन एक क्रेज हो गया। उस जमाने के मशहूर बीटल संगीतज्ञ जार्ज हैरीसन भी ‘हरे कृष्ण’ भजन के दीवाने हो गए थे।

‘कल्याण’ में क्या छपा था

इस कारण अमेरिका और यूरोप के अखबारों में इस्कॉन के बारे कुछ लेख, खबरें और चित्र छपने लगे थे। भारत में भी इक्का-दुक्का समाचार इस बारे में छपे। परन्तु जितना विस्तृत लेख गीता प्रेस की हिन्दी मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ के अप्रैल 1970 के अंक में  पृष्ठ संख्या 842-845  पर प्रकाशित हुआ, उतना हिन्दी में पहले कभी नहीं छपा था।

 उस लेख में दो अतिरिक्त पृष्ठों पर इस्कॉन से समबन्धित चित्र भी आर्ट पेपर पर छपे थे। ये फोटो थे अमेरिका के लॉस एंजेल्स मन्दिर  में राधा कृष्ण के मूर्तियों के और श्री जगन्नाथजी की मूर्ति के। न्यूयॉर्क की सड़कों पर कृष्ण भक्तों का कीर्तन और नृत्य करते हुए भी एक फोटो छपा। साथ ही एक वह फोटो भी छपा था जिसमें लन्दन के एक पार्क में वहां के स्त्री-पुरुष कृष्ण भक्ति कीर्तन कर रहे हैं।

‘कल्याण’ (अप्रैल 1970) के अंक में कहा गया कि:

“उनके (प्रभुपादजी के) भक्त हैम्बर्ग (जर्मनी) से टोकियो (जापान) तक तथा टोकियो से सिडनी (आस्ट्रेलिया) तक फैले हुए हैं। नास्तिक लोग आस्तित बनते जा रहे हैं। वे श्रीकृष्ण के रूप में भगवान्‌ को पा रहे हैं। यह सब महाप्रभु श्रीचैतन्य की कृपा है। ये लोग भक्ति के साथ ही भागवत-गुण- सदाचारसद्भावनामैत्रीसहिष्णुतासंयम आदि का क्रियात्मक आदर्श चरितार्थ कर रहे हैं।“

प्रभुपादजी ने श्रीचैतन्य महाप्रभु का कार्य किया

श्रीचैतन्य महाप्रभु ने लगभग साढ़े पांच सौ वर्ष पूर्व कहा था:

पृथिवीते जत आहे नगर आदि ग्राम।

सर्वत्र प्रचार हइबे मम नाम॥

अर्थात पृथ्वी में जितने भी नगर-ग्राम आदि हैंवहां सब जगह  मेरे (कृष्ण) नाम का प्रचार होगा। ऐसा लगता है ईश्वर ने कलियुग के जीवों पर कृपा करके स्वामीजी श्रीभक्तिवेदान्तजी प्रभुपादजी को पृथ्वी पर भेजा। और उनके द्वारा अमेरिकायूरोप तथा जपान आदि देशों के नगरों की गली-गली में भगवन्नाम-कीर्तन के प्रसार की  शुरुआत की।

इस्कॉन 2: गीता प्रेस ने की थी मदद

अमेरिका में प्रभुपादजी के पास मुख्य पूंजी क्या थी

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया:

“गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदायके प्रसिद्ध आचार्य महात्मा श्रीभक्तिसिद्धान्तजी महाराजके एक विद्वान् शिष्य श्रीभक्ति वेदान्त (प्रभुपाद) जी सन् 1965 में अमेरिका गए थे। उनके पास पूँजी थी- श्रीमहाप्रभु चैतन्यदेवकी महती कृपागुरुकृपाश्रीमद्भागवत तथा श्रीमद्भगवद्गीता एवं … श्रीभगवन्नाम की परम आश्रयता।

“उन्होंने (प्रभुपादजी ने) वहाँ न्यूयार्क में कथा आरम्भ कर दी और कभी-कभी संध्या के समय टाम्पकिन (Tompkin) पार्क में वे हरे कृष्ण‘ मन्त्र का मधुर कीर्तन करने लगे। तरुण वर्ग आकर्षित हुआ । कवि गिन्सवर्ग (अमेरिका के मशहूर कवि Allen Ginsberg 1926-1997) मिलने आने लगे। इनके संकीर्तनकी लोकप्रियता उत्तरोत्तर बढ़ती गई। …

“कवि गिन्सवर्ग के कथन का सारांश है- “यह संकीर्तन भावोन्माद की स्थिति उत्पन्न कर देता है। संकीर्तन की स्वर-ध्वनि से बलात् मानो यौगिक क्रिया होने लगती है। इस संकीर्तन में ऐसी मादकता है कि अन्य तमाम मादक द्रव्यों से पिण्ड छूट जाता है। हरे‘ ‘कृष्ण‘ ‘राम‘ नाम ही ऐसा विलक्षण है।

एक प्रोफेसर ने LSD का नशा छोड़ा

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया:

“ओहियो राजकीय विश्वविद्यालयके अंग्रेजी के प्राध्यापक श्री हावर्ड एम व्हीलर ने अपना पूरा जीवन ही श्रीकृष्णसेवा के लिए समर्पित कर दिया है। वे  कहते हैं कि ‘मैं स्वयं पिछले दो बयाने एल.एस.डी. (LSD) की पचास खुराक तथा एक-एक दर्जन पियोटे (Peyote ) – जैसे मादक द्रव्यों का सेवन कर चुकने पर अब भगवान-नाम की माद‌कता ने सबको छुड़ा दिया है। कभी कुछ भी नहीं लेता।

नौजवानों में इस्कॉन के प्रति आकर्षण बढ़ा

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया:

“स्वामीजी ने पहले न्यूयार्क में एक केन्द्र की स्थापना की। नाम रखा गया श्रीकृष्णभावना-प्रसारक अन्तग संघ‘ (International Society for Krishna Consciousness ).

 “युवक-युवतियों का (इस्कॉन के प्रति) आकर्षण बढ़ता गया और धीरे-धीरे और शाखाएँ खुलती गईं। इस समय तक अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांसजर्मनीकनाडाआस्ट्रेलिया और जापान में कुल  मिलाकर पच्चीस मन्दिर स्थापित हो चुके हैं। इन मंदिरों में श्रीबलरामजी और श्रीसुभद्राजीके साथ भगवान् जगन्नाथ तथा भगवान् राधाकृष्ण की पूजा भारतीय वैष्णव पूजा पद्धति अनुसार होती है। अपने गुरु महाराज की आज्ञा के अनुसार पहले श्रीजगन्नाथजी की पूजा आरम्भ की जाती है। सभी मन्दिरों में भगवान् जगन्नाथ और श्री चैतन्य महाप्रभु संकीर्तन के चित्र हैं। फिर क्रमशः प्रत्येक मन्दिर में श्री राधा कृष्ण के विग्रिहों  की स्थापना होती जा रही है। भारतवर्ष से बहुत सी सुन्दर मूर्तियां स्थापनार्थ जा चुकी हैं। अभी और भी मूर्तियों की आवश्यकता है। जो कोई भी भेजना चाहें तो वे स्वामीजी से पत्र व्यवहार करके जानकारी कर लें कि किस आकार की कैसी मूर्ति चाहिए। उनका पता नीचे दिया गया है।

“इस समय स्वामीजी के हजारों अमेरिकन तथा यूरोपियन दीक्षित शिष्य हैं। अदीक्षित भक्तों की संख्या तो बहुत अधिक है और दीक्षित-अदीक्षित दोनों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ रही है। इनमें वकीलअध्यापकसामाजिक कार्यकर्ताविद्यार्थी सभी श्रेणी के लोग हैं। ये सभी प्रायः सच्ची भावना वाले लोग हैं। स्वामीजी का वैष्णव सदाचार पर बड़ा जोर हैजिससे शारीरिक-मानसिक अनैतिकता नष्ट हो रही है और जीवन पवित्र होता जा रहा है।

“प्रत्येक पुरुष को धोतीमहिला को साड़ी भारतीय वेश-भूषा के अनुसार पहननी पड़ती है। पुरुष पीले गेरुए रंग के वस्त्र धारण करते हैं। सिर का मुण्डन कराते हैं। शिखा (चोटी) रखते हैं। हिंदू नाम-जैसे दामोदरदासभगवानदास आदि। स्त्रियोंके गोपिकादासीदीनदयार्द्रदासी आदि रख दिए जाते हैं। मस्तक पर सभी गोपीचन्दन का तिलक लगाते हैं।

इस्कॉन 1: मन्दिर गिरा और गिर कर उठा

इस्कॉन के नियम

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में इस्कॉन के नियम भी गिनाए गए:

“प्रातः चार बजे उठनादिनमें दो बार स्नान करनाभगवान्‌ की नियमित पूजा करनाहरे कृष्ण आदि 16 नामों की 16 माला का प्रतिदिन जप करना और प्रातःकाल तथा सायंकाल के सत्संग में अनिवार्य रूप से उपस्थित होना।

1. किसी भी मादक वस्तु का यहाँ तक कि चायकाफीसिगरेट का भी सेवन न करना।

(No addiction to or indulgence in any form of intoxication, including coffee, tea and cigarettes.)

 2. मांसमछलीअण्डा आदिका सेवन कदापि न करके पूर्णतया शाकाहारी भोजन करना।

(No eating of meat, fish or egg. Must be strictly Vegetarian.)

 3. विवाहित दाम्पत्य जीवन के अतिरिक्त अवैध यौन-सम्बन्ध का त्याग।

(No illicit sexual relationship.)

 4. जुआ या मानसिक हवाई किले बनाने से दूर रहना(No gambling or mental speculation.)

 5. अभक्तोंके साथ अत्यधिक सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए।

(Should not extensively mix with non-devotees.)

 6. अभक्तों के द्वारा बनाया हुआ भोजन नहीं करना चाहिए।

(Should not eat food cooked by non-devotees.)

 7. व्यर्थकी बातचीतमें समय नहीं खोना चाहिए।

(Should not waste time in idle talks.)

 8. सारहीन खेल-तमाशों में सम्मिलित नहीं होना चाहिए।

(Should not become engaged in frivolous sports.)

 9. निरन्तर भगवान्‌ के पवित्र नामों का जप-कीर्तन करते रहना चाहिए।

(Should always chant and sing the Lord’s Holy Names.)

इस्कॉन इन अपराधों से बचने की भी शिक्षा देता है

1. भगवान्‌ के भक्त की निन्दा।

 2. पारमार्थिक गुरु की आज्ञाओं के विरुद्ध व्यवहार करना।

 3. धर्मशास्त्रों के महत्त्व को सीमित करना।

 4. भगवान्‌ के पवित्र नाम को अर्थवाद बताना अर्थात धन से जोड़ना।

 5. भगवन्नाम के बल पर पाप करना।

 6. अश्रद्धालु लोगों के सामने भगवन्नाम की महिमा का उपदेश करना।

 7. भौतिक सदाचार के साथ पवित्र भगवन्नाम की तुलना करना।

 8. पवित्र नाम-जप के समय उसमें प्रीतिरहित रहना।

 9. नामजप-कीर्तन के समय संसारिक विषय-भोगों में आसक्ति रखना।

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया कि:

 “भक्त में ये 26 सद्गुण आवश्यक हैं-

1-हर-एक के प्रति दयालु2-किसी से झगड़ा न करना3-परम सत्य में प्रतिष्ठा4-सबके प्रति समता का भाव, 5-निर्दोष6-दानशील7-मृदु8-स्वच्छः 9-सरल (कपटहीन)10-उदार11-शान्त, 12-श्रीकृष्ण के प्रति पूर्णतया आसक्त13- सांसारिक कामना से शून्य14-विनीत15-धीर16-आत्मनिग्रही17-मितभोजी18-विवेकशील19-आदरपूर्ण20-दीन (अभिमानशून्य)21-गम्भीर22-करुणार्द्र23-मैत्रीपूर्ण24-काव्यमय25-दक्ष और 26-मौन।“

 (यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि ये सभी सद्गुण किसी भी व्यक्ति में सत्संग के माध्यम से धीरे-धीरे ही आते हैं।)

अमेरिका व यूरोप को कृष्ण भक्तों ने चकित कर दिया  

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया कि:

”कलियुग में भगवत्प्रीति या भगवत्प्राप्ति का प्रधान साधन भगवन्नाम जप तथा कीर्तन ही माना गया है। यहाँ इसी का उपदेश तथा आचरण किया-कराया जाता है। सभी भक्त नाम-जप करते हैंअखण्ड कीर्तन के आयोजन होते हैं। नगर- कीर्तन सर्वत्र रोज ही किया जाता है।

“जिस समय पवित्र भगव‌द्भाव में निमग्न पुरुषों तथा महिलाओं के दल (पुरुष) पवित्र गेरुआ वस्त्र तथा (स्त्रियां) साड़ी पहनेशुभ्र तिलक लगाएपुरुषगण अपने मुण्डित सिरों पर शिखा लटकाएसभी गले में तुलसीकी कण्ठी पहनेहृदयपर भगवन्नाम जपमालाकी झोली झुलाएनेत्रोंसे प्रेमाश्रु बहाते हुएऊर्ध्वदृष्टि (ऊपर की ओर दृष्टि) तथा ऊर्ध्वबाहु किए अमेरिका तथा यूरोप के वर्तमान भोगप्रधान नगरों की सड़कों पर उन्मत्त नृत्य करते निकलते हैं, –  उस समय उन्हें देखकर वहाँ के नर-नारी चकित रह जाते हैंउनके मस्तक श्रद्धा से झुक जाते हैंहृदय द्रवित हो जाते हैं और बरबस वे भी नामकीर्तन करने लगते हैं।

“अमेरिका के लोग तो इनके कीर्तन से बहुत ही प्रभावित है। लन्दन के कीर्तन के सम्बन्ध में  … (The Times, London) में एक लेख छपा था- लिखा था हरे-कृष्ण-कीर्तन ने लन्दनको चकित कर दिया‘ (Hare Krishna Chant Startles London.)

जार्ज हैरीसन ने 19000 पाउण्ड दिए

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया कि:

“स्वामी जी गीता तथा श्रीमद्भागवत का नियमित उपदेश करते हैं। लोगों की शंकाओं का मौखिक तथा लिखित उत्तर भी देते हैं। पुस्तकें भी लिखते हैं। इनकी एक पुस्तक कृष्ण‘ जापानमें छप रही हैजिसके लिए इनके एक अदीक्षित भक्त प्रसिद्ध अंग्रेज संगीतज्ञ श्रीजार्ज हैरीसन ने 19000 पाउण्ड दिए हैं।

Back to Godhead पत्रिका जर्मन तथा फ्रेंच भाषाओं में भी  

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया कि:

Back to Godhead  नामक पत्र अंग्रेजीजर्मन तथा फ्रेंच भाषा में निकलते हैं, जिनमें सदाचारभक्ति तथा उच्च पारमार्थिक विचारों के  लेखमहाभारत तथा भागवत की कथाएँश्रीम‌द्भगवद् गीता के उपदेश और धार्मिक भारतीय चित्र रहते हैं।

विवाह करें या न करें

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया कि:

“श्रीस्वामीजी महाराजजिन युवकों का विवाह नहीं हुआ हैउनको ब्रहाचर्य व्रतपर दृढ़ रहनेकी शिक्षा देकर उन्हें श्रीकृष्ण-सेवा में लगाते हैं। जो युवक-युवती विवाह करना चाहते हैं वे पहले अपने गुरु-भाइयों की राय लेते हैं, फिर स्वामीजी से आज्ञा  प्राप्त करते हैं। वे युवक-युवती अपनी  प्रसन्नता तथा सुख के लिए  विवाह करना नहीं चाहते हैं। वे एक सूत्र में बँधकर भगवान् श्रीकृष्ण की और भी अच्छी सेवा करना चाहते हैं। गुरुजी उनके नाम बदल देते हैं और हिंदू-पद्धति से देवता तथा अग्नि की साक्षी में गठबन्धन कराके विवाह-संस्कार कराते हैं। न कोर्टशिप होती हैन रजिस्ट्रेशन विवाहित स्त्रियाँभारतीय पद्धतिके अनुसार मस्तक पर कुंकुम या सिन्दूर का टीका लगाती हैं।

‘हरे कृष्ण से अभिवादन

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया कि:

“ये लोग जब टेलीफोन में बात करते हैंकिसी से मिलते हैं। तो पहले ‘हरे कृष्णका उच्चारण करते हैं। डेट्रायट (अमेरिका) में एक ऐसा ही विवाह हुआ हैवहाँ नववधू की माता श्रीमत रेमाण्ड क्लासनने बताया कि मैंने तथा मेरे पति ने श्रीकृष्ण मन्दिर की पूजा में भाग लिया है। मेरा साढ़े तीन वर्ष का पौत्र ‘हरे कृष्ण का उच्चारण करके टेलीफोन पर उत्तर देता है।”

सहनशीलता और ईश्वर के नाम में विश्वास

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया कि:

“इनकी सहनशीलतानामकीर्तन में विश्वासमैत्री भावना का एक उदाहरण देखिए-

“एक जगह राधाकृष्ण मन्दिर के पीछे सिगमाची संघ (Sigma Chi Fraternity) का भवन था। वे लोग इन श्रीकृष्णसेवकों की कार्यवाहियों को पसंद नहीं करते थे और बड़े हैरान थे। कुछ सप्ताह पूर्व एक दिन अर्धरात्रि के समय सिगमची के कुछ लड़के शराब की शीशियों को कमरमें खोंसे मन्दिरमें आए और उन्होंने कुछ खिड़कियाँ तोड़ डालीं।

“श्रीकृष्ण-मन्दिर के सदस्य बिस्तरों से निकले और कपड़े पहनकर झाँझ-कड़ताल मृदंग आदि लेकर उन्हें बजातेकीर्तन करते और नाचते हुए संघ के भवन के सामने पहुँच गए।

“पहले तो उन्होंने इन लोगों पर शराबके खाली बर्तन फेंके। फिर उन्होंने दिल्लगी उड़ाते हुए कीर्तनकारों को अंदर बुलाया। ये कीर्तन करते हुए अंदर चले गए। आरम्भ में तो उन लोगों ने इनका उपहास कियापरंतु बीस ही मिनट बाद वे सब इनके साथ कीर्तन करने और गाने लगे। फिर तो वे इन सबको निकटके सोरोरिटि हाउस (Sorority House) में ले गए और वहाँ की लड़कियाँ भी इनके साथ नाचने तथा कीर्तन करने लगीं।

सारा वातावरण बिल्कुल बदल गया। यह दृश्य बड़ा ही सुन्दर था। सारी शत्रुता नष्ट हो चुकी थी।

परमात्मा की प्राप्ति का सबसे सरल साधन

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में आगे कहा गया कि:

“एक सज्जन लिखते हैं कि ‘यह बड़ा सुन्दर अद्भुत … (समय) चल रहा है – अमेरिका और यूरोप में। बाल डान्स के स्थान पर कीर्तन-नृत्य-स्थल बन गया है। इन्द्रिय पूजन के स्थान पर ब्रह्मचर्यनशीली वस्तु तथा चाय, काफीतम्बाकू आदि के स्थान पर भगवान नाम का अमृतपान, मांस-मछली अण्डों की जगह पवित्र शाकाहार, शत्रुता के स्थान पर मैत्रीअहंकार के स्थान पर विनम्रता और साथ ही परमात्मा की प्राप्ति का सबसे सरल साधन नाम-जप और नाम-संकीर्तन । सचमुच चमत्कार है।

“श्रद्धेय श्रीभक्तिवेदान्तजी महाराज पाश्चात्त्य जगत्‌ के लोगों के जीवन को सदाचार-सम्पन्न बनाकर नाम-प्रसार के द्वारा उनका कल्याण करने में सफल हों। भगवत्कृपा से यह बहुत ही कल्याणकारी कार्य हो रहा है। इसमें जो हजारों युवक-युवतियाँ क्रियात्मक सहयोग दे रहे हैंउन पर भगवान् की बड़ी कृपा है। वे अभी तो पूर्णतया सच्चे भाव से ही कार्य करते प्रतीत होते हैं। उनमें कहीं भी बनावटीपन नहीं मालूम होता। आगे चलकर कैसे क्या होगासो भगवान् जानें। भगवान् इस मंगल-कार्य के सम्पादन में सबको सद्बुद्धि, सद्भावसत्-साहस तथा सफलता प्रदान करें।“

प्रभुपादजी का तब का पता

कल्याण (अप्रैल 1970) के लेख में अन्त में कहा गया कि:

स्वामीजी से कोई पत्र-व्यवहार करना चाहें तो पता यह है-

Tridandi Goswami Sri

A. C. Bhaktivedanta Swami,

International Society for Sri Krishna Consciousness,

Center: 1975 So. ha Cienega Blvd. Los Angeles, CALIFORNIA.

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

 (लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं)