#pradepsinghप्रदीप सिंह।
दिल्ली विधानसभा का चुनाव हो गया। नतीजा भी आ गया। अब सवाल यह है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? मुख्यमंत्री कौन बनेगा… इसका जवाब खोजने के लिए हम लोगों को इस बात पर विचार करना पड़ेगा कि भारतीय जनता पार्टी की अब प्राथमिकता क्या है? दिल्ली का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद दिल्ली भाजपा की प्राथमिकता के क्रम में नीचे आ गई। दिल्ली का विधानसभा चुनाव जीतना लक्ष्य था, अब वह साधन बन गया है। चुनाव जीत गए हैं। अब इसके जरिए और कौन से संदेश दिए जा सकते हैं और कहां संदेश देने की जरूरत है। तो दो दृष्टियों से संदेश है। दिल्ली में भाजपा का जो अभी वोट बैंक बना है यह स्थाई हो- इसके लिए एक संदेश देना है। और दिल्ली के बाहर अगला चुनाव इसी साल नवंबर में बिहार में होना है- तो उस लिहाज से भारतीय जनता पार्टी एक संदेश देना चाहेगी।दिल्ली में 27 सालों से बीजेपी सत्ता से बाहर थी। इससे उसको बड़ा नुकसान होता था, जो आश्चर्यजनक रूप से लोकसभा चुनाव में नहीं होता था। लोकसभा चुनाव में वंचित वर्ग बीजेपी के साथ आ जाता था। वही वंचित वर्ग विधानसभा चुनाव में बीजेपी से अलग हो जाता था और उस संचित वर्ग में सबसे बड़ी संख्या है पूर्वांचल के मतदाताओं की। पूर्वांचल के मतदाताओं ने पहली बार अपना फैसला बदला। फैसला बदला से आशय भाजपा को विधानसभा में वोट ना देने का फैसला बदला और भाजपा को वोट दिया।

भाजपा के लिए अब आगे का रास्ता क्या है? यह कि जो वंचित वर्ग उसके साथ आया है- उसको झुग्गी झोपड़ी का वोट कह लीजिए- उसको पक्का करने का तरीका क्या है? दो चीजें होती है राजनीति में। एक होता है प्रतीकों की राजनीति के जरिए और दूसरा- ठोस राजनीति के जरिए। ठोस राजनीति तब होती है जब आपकी सरकार होती है। आप उस वर्ग के भले, उसके जीवन को सुधारने के लिए, उस वर्ग के अच्छे दिन लाने के लिए कार्यक्रम चलाते हैं। जब सरकार की ऐसी नीतियां और कार्यक्रम होते हैं तो उसका असर पड़ता है। उनको कुछ कुछ ठोस चाहिए होता है और वह आप सरकार रहते हुए ही दे सकते हैं।
दूसरा संकेत या प्रतीकों की राजनीति होती है। अगर आप सत्ता में नहीं है तो आप उनको संगठन में पद दें, संगठन में हिस्सेदारी दें, पदाधिकारी बनाएं। और सत्ता में है (अगर राज्य की बात है तो) तो मंत्री बनाएं, मुख्यमंत्री बनाएं।

मुझे लगता है भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री के चयन में सबसे ज्यादा जिस बात का ध्यान रखेगी वह यह कि किसी पूर्वांचली को चुने। आपको याद होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की राष्ट्रीय मुख्यालय में हुए कार्यक्रम में भी पूर्वांचली मतदाताओं को विशेष रूप से धन्यवाद दिया। इसका मतलब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के मन में है कि हमारे संकट के समय हमारा सबसे ज्यादा साथ किसी ने दिया तो वह पूर्वांचली वोटर है। भाजपा उनका वेलफेयर तो करेगी ही, उनको राजनीति में हिस्सेदारी भी देगी। राजनीति में हिस्सेदारी का मतलब संगठन में हिस्सेदारी और सरकार में हिस्सेदारी दोनों तरह से उनको संतुष्ट करने की, उनको साथ लेने और साथ बनाए रखने की, कोशिश भाजपा करेगी। इसलिए मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री के पद पर जो भी व्यक्ति आएगा वह पूर्वांचल का होगा- यानी उत्तर प्रदेश या बिहार का। इसमें भी मुझे संभावना बिहार की ज्यादा लगती है क्योंकि मैंने शुरू में जो बात कही कि अब भाजपा की प्राथमिकता की सूची में दिल्ली की सरकार नहीं है, दिल्ली की सरकार के जरिए संदेश देने की है। अगला विधानसभा चुनाव बिहार में होने जा रहा है। सिर्फ बिहार के चुनाव की दृष्टि से नहीं बल्कि बिहार की राजनीति की दृष्टि से… जिसका संदेश पूरे देश में जाए… भाजपा और खासतौर से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की नजर निश्चित रूप से इस बात पर होगी।

बिहार में पोस्ट नीतीश कुमार सिनेरियो क्या होगा? भाजपा की पूरी कोशिश होगी कि नीतीश कुमार जब भी रिटायर होते हैं- मैं यह नहीं कह रहा हूं कि 2025 में रिटायर होने जा रहे हैं, लेकिन जब भी रिटायर होते हैं- तो अति पिछड़ा वर्ग राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ ना जाने पाए। अगर जेडीयू पॉलिटिकली सरवाइव करती है तो उसके साथ तो रहेगा ही- एक हिस्सा अगर उससे अलग होता है तो वह भाजपा के साथ आए। उसके लिए मैसेजिंग का यह सबसे सही समय है। दिल्ली की जीत से ज्यादा महत्त्वपूर्ण इस समय बिहार में भाजपा की राजनीति पर दृष्टि रखना है। उस दृष्टि से भाजपा बिहार के मतदाताओं को संदेश देना चाहेगी। मुझे लगता है कि जो पूर्वांचली मुख्यमंत्री बनेगा वह बिहार से हो सकता है। ये मैं किसी जानकारी के आधार पर नहीं केवल जो राजनीतिक समीकरण दिखाई दे रहे हैं और भविष्य की राजनीति जिस दिशा में जाती हुई दिखाई दे रही है उसकी दृष्टि से कह रहा हूं।

ज्यादा उम्मीद इस बात की है कि मुख्यमंत्री विधायकों में से ही कोई होगा। कोई सांसद या बाहर से कोई मुख्यमंत्री नहीं आने वाला है। तो विधायकों में आपको खोजना पड़ेगा। आप भी नजर दौड़ाइए। बहुत लोगों की नजर तो होगी ही कि दिल्ली विधानसभा में बिहार मूल के कितने लोग चुनकर आए हैं। उनमें फिर सामाजिक समीकरण देखा जाएगा।

मुख्यमंत्री के चयन में एक और बात भी देखि जाएगी। ठीक है कि केंद्र सरकार है, अर्बन डेवलपमेंट मिनिस्ट्री है, होम मिनिस्ट्री है और तमाम सारी एजेंसियां हैं, एलजी हैं… इसके बावजूद एक ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री बने जो डिलीवर कर सके… जो बनाई गई योजनाओं, नीतियों को जमीन पर उतार सके। तो इस तरह का विजन रखने वाले व्यक्ति पर ज्यादा ध्यान होगा। उसके मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाने की ज्यादा संभावना होगी।

अब यह तो लगभग तय ही हो गया कि प्रधानमंत्री के विदेश यात्रा से लौटने के बाद ही दिल्ली का मुख्यमंत्री पर फैसला होगा। मुझे लगता है 15 फरवरी तक यह उम्मीद करनी चाहिए कि फैसला हो जाएगा। तो जो भी होगा इसी क्राइटेरिया के इर्दगिर्द तय किया जाएगा। रहा नाम… तो नाम में क्या रखा है। जब घोषणा होगी तो पता चल जाएगा मुझे भी, आपको भी।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आपका अख़बार के संपादक हैं)