
बहुत समय से कह रहा हूं कि सबका नंबर आएगा। कई लोगों को गलतफहमी थी कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने 10 साल हो चुके हैं और उनका नंबर अब नहीं आएगा- वह बच गए। मोदी के समर्थकों में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनको लगता था और अभी भी लगता है कि मोदी अपने विरोधियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।मैं लगातार कहता रहा हूं कि सबका नंबर आएगा। तो अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तख्ता पलटने की साजिश रचने वालों का नंबर आ गया है। इस खबर का विस्फोट किया है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने। उन्होंने एक सार्वजनिक सभा में एक बार नहीं तीन बार कहा कि भारत को वोटर टर्न आउट बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर दिया गया। ट्रंप का ही सवाल था कि भारत में वोटर टर्न आउट बढ़े इससे अमेरिका का क्या मतलब? इसके लिए अमेरिका की पब्लिक के टैक्स का पैसा क्यों दिया जाएगा? हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत के पास बहुत पैसा है, उसे जरूरत नहीं है। लेकिन आगे जो उन्होंने कहा वह किसी विस्फोट से काम नहीं है। उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये लोग किसी और को जिताना चाहते थे।
अब आप इससे समझिए कि जो बातें पहले से कही जा रही थी और जिनके बारे में कहा जा रहा था कि यह मोदी का प्रोपेगेंडा है- मोदी के भक्त पत्रकार और बुद्धिजीवी ये प्रोपेगेंडा चला रहे हैं- उसकी सच्चाई, तथ्य और प्रमाण सामने आ रहे हैं। अब सवाल यह है कि इस 21 मिलियन डॉलर के बेनिफिशियरी कौन हैं। अब आप दूसरे खेमे की बेचैनी और तड़प देखिए… जैसे ही यह खबर आई मीडिया के एक वर्ग ने तुरंत उसको लपका और गलतफहमी पैदा करने की कोशिश की। उसने ऐसी बात कही जिसे पांचवी क्लास का बच्चा भी सुने तो हंसी आ जाए। तर्क दिया गया कि डोनाल्ड ट्रंप को गलतफहमी हो गई, वह कंफ्यूज कर गए बांग्लादेश और भारत के बीच। यानी अमेरिका के राष्ट्रपति को मालूम नहीं है कि भारत देश कहां है, क्या है और बांग्लादेश क्या है। कहा गया कि वह पैसा तो बांग्लादेश के लिए था, भारत के लिए नहीं।
ट्रंप ने और स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि 21 मिलियन डॉलर भारत के लिए और 29 मिलियन डॉलर बांग्लादेश के लिए दिया गया। बांग्लादेश में किसलिए? पॉलिटिकल लैंडस्केप चेंज करने के लिए। उन्होंने कहा कि पॉलिटिकल लैंडस्केप चेंज करना क्या होता है तो उसका सीधा मतलब है जो आपने बांग्लादेश में देखा, यानी तख्ता पलट। भारत में इसकी कोशिश लंबे समय से की जा रही है। भारत सरकार लगभग 20 हजार एनजीओ- जिनको यही सब धंधा चलाने के लिए अलग-अलग एनजीओ के जरिए विदेशों से फंडिंग मिलती थी- के एफसीआरए लाइसेंस कैंसिल कर चुकी है। यह जो पिछले सालों में आपने आंदोलन देखे- चाहे वह तथाकथित किसान आंदोलन हो- भारत को अस्थिर करने के लिए किये गए। जब मैं कहता था ‘तथाकथित किसान आंदोलन’ तो बहुत से लोगों को बड़ा बुरा लगता था कि किसानों का आंदोलन है और तथाकथित कह रहे हैं। 26 जनवरी को जो कुछ हुआ था उसके बाद जब मैंने कहा कि इस आंदोलन को कुचल देना चाहिए, उस पर भी बहुत से लोगों ने नाराजगी जाहिर की थी कि– डेमोक्रेसी में ऐसी बात कैसे कह सकते हैं? आप विदेशी पैसे से, विदेशी मदद से डेमोक्रेसी में डेमोक्रेसी को सबवर्ट करने की कोशिश कर सकते हैं… और उसको रोकने के लिए कहना डेमोक्रेसी के खिलाफ हो जाता है- तर्क वीरों का यह तर्क देखिए।
मोदी के आने से पहले 2012 में भारत के चुनाव आयोग ने एक एमओयू साइन किया। केंद्र में मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की सरकार थी और चीफ इलेक्शन कमिश्नर थे एस वाई कुरेशी। अमेरिका की एक संस्था इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स के साथ एमओयू साइन किया गया। सवाल यह है कि क्यों साइन किया गया। अलग-अलग तरीकों से एनजीओ के जरिए पैसा आया तो 2014 में खास टारगेट किसको किया गया? देश के वंचित वर्ग को। इसे और स्पष्ट करें तो दलितों, आदिवासियों को- इसलिए कि वह एक खास तरह से वोट करें। यानी, 2012 में ही मालूम था कि कांग्रेस का सत्ता में लौटना मुश्किल है। उस समय यह मालूम नहीं था कि मोदी आ जाएंगे, लेकिन जो भी आए उसको रोकने की कोशिश थी। और जब मोदी आ गए तो वह कोशिश और बढ़ गई। 2014 से पहले पैसा और 2014 लोकसभा चुनाव में जब उसका नतीजा नहीं आया और मोदी जीत गए, उनकी सरकार बन गई, तो यह पैसा लगभग 80 फीसद कम हो गया। इससे आप समझिए कि ये पैसा सिर्फ और सिर्फ इलेक्शन के लिए था।
2019 में भी पैसा लाने की कोशिश हुई लेकिन भारत सरकार और भारत सरकार की एजेंसियां सजग थीं। तमाम ऐसे एनजीओ का एफसीआरए लाइसेंस कैंसिल कर दिया गया कि वो विदेशी फंडिंग नहीं ले सकते। इससे पैसा उतनी बड़ी मात्रा में नहीं आ पाया। विदेश से ये पैसा इस नाम पर तो आता नहीं कि हम चुनाव को प्रभावित करना चाहते हैं। कहीं एजुकेशन के नाम पर आता है- कहीं हेल्थ के नाम पर- कभी पर्यावरण के नाम पर आता है, लेकिन इस सबका उद्देश्य एक ही होता है रेजीम चेंज, सत्ता बदलना। जॉर्ज सोरोस तो कई साल से कह रहा था कि एक बिलियन डॉलर का फंड बनाया है भारत में तख्ता पलट के लिए, मोदी को सत्ता से हटाने के लिए। आप भारत के किसी एक विपक्षी नेता का नाम बताइए जिसने कहा हो कि ‘तुम होते कौन हो भारत में तख्ता पलट करने वाले।’ तख्ता पलट यहां की जनता करती है- मतदाता करता है। जो भी सत्ता में है उसके विरोधी दल कोशिश करते हैं जनता के बीच में जाकर अपनी बात समझाते हैं, सत्तारूढ़ दल के खिलाफ अपने मुद्दे बताते हैं। सरकार को क्यों बदलना चाहिए इसको समझाते हैं। लेकिन लेकिन विपक्षी दलों और उनके नेताओं में यह ताकत, कूवत नहीं है। उनको विदेशी मदद चाहिए। यह सब खुला खेल फरुखाबादी चल रहा था। राहुल गांधी अमेरिका-यूरोप में घूम घूम कर कह रहे थे कि भारत में डेमोक्रेसी खतरे में है, आप बचाइए… आप आकर मदद कीजिए। यह सीधा-सीधा भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की बात थी। क्या आप विदेशी ताकतों को कह रहे हैं कि आओ और भारत में हस्तक्षेप करो, हमारी डेमोक्रेसी में हस्तक्षेप करो, हमारी चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करो।
जॉर्ज सरोस उससे जुड़ी संस्थाएं यूएस एड, अमेरिका की डीप स्टेट, से जो यह सब फंडिंग हो रही थी- अब इस बात की जांच होनी चाहिए कि इसका बेनिफिशियरी कौन था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बयान में भी इस बात का उल्लेख किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो कहा है वही बात उससे पहले अमेरिका में बने नए डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी के प्रमुख एलन मस्क भी कह चुके हैं। उन्होंने भी कहा था कि अमेरिकी के बाइडन प्रशासन द्वारा भारत के चुनाव में हस्तक्षेप करने की कोशिश हुई। ट्रंप ने तो साफ-साफ कहा कि बाइडन प्रशासन नहीं चाहता था कि मोदी फिर से आएं। उन्होंने यह बात सीधे नहीं कही इस तरह से कही कि वह किसी और को जिताना चाहते थे। जाहिर है मोदी हारेंगे तभी तो किसी और को जिताएंगे। तो किसको जिताना चाहते थे? अब कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी दल कटघरे में हैं। उनको इस सवाल का जवाब देना पड़ेगा।
कांग्रेस पार्टी तो कूदी ही और मीडिया के कुछ लोग भी कहने लगे कि डोनाल्ड ट्रंप को गलतफहमी हो गई। वो भारत और बांग्लादेश में अंतर समझ नहीं पाए। अब उन लोगों में थोड़ी भी शर्म हो तो उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। जिन पत्रकारों ने यह काम किया है उनके मीडिया हाउस को उनको निकालना चाहिए, उनके खिलाफ एक्शन लेना चाहिए। यह देश में डेमोक्रेसी को सबवर्ट करने की कोशिश है- देश की सरकार और राष्ट्र के खिलाफ काम है। इस विदेशी साजिश का भंडाफोड़ उसी देश से हो रहा है जहां से यह हो रही थी और उसी देश का राष्ट्रपति कर रहा है, कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर रहा है। बाइडन प्रशासन के विदेश विभाग के एक अधिकारी माइक बेंच ने तो सार्वजनिक रूप से बयान देकर कहा कि भारत और बांग्लादेश में चुनाव को प्रभावित करने की यूएस एड की कोशिश के प्रमाण हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि हम यह सब तथ्य भारत सरकार को बताएंगे भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि यह बड़ी चौकाने वाली और बड़ी चिंता की बात है। भारत की एजेंसियां और अलग-अलग विभाग इसकी जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा जब तक जांच नहीं होती, तब तक इस पर कुछ बोलना ठीक नहीं होगा। तो जांच शुरू हो गई है।
दस साल बाद पहली बार भारत को तोड़ने वाले- टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करने वाले- जो कश्मीर को आजाद दिखाना चाहते हैं- वे सब लोग सांसत में हैं। देश के विरोधियों और यहां तक कहूंगा कि देश के गद्दारों के बुरे दिन अब शुरू होने जा रहे हैं। इस सरकार ने इस बात को साबित किया है कि देर हो सकती है लेकिन अंधेर नहीं है। ऐसे लोग बचकर जाने वाले नहीं हैं। ऐसे लोगों के बुरे दिन की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। एक दो साल की बात नहीं है ये लोग पूरे 10 साल से प्रयास कर रहे हैं कि कैसे इस सरकार का तख्ता पलट किया जाए- कैसे इस सरकार को बदनाम किया जाए। वोटर टर्न आउट बढ़ाने के नाम पर यह जो पैसा आ रहा था उसे कुछ खास डेमोग्राफी में इस्तेमाल किया जा रहा था- दलितों, आदिवासियों के क्षेत्र में इस्तेमाल किया जा रहा था। विदेशी ताकतों और कांग्रेस पार्टी व उसके सहयोगी दलों का यह जो एजेंडा है कि- हिंदुओं को जातियों में बांटो… तो एक खास एजेंडा अंतरराष्ट्रीय स्तर से चल रहा है कि दलितों को हिंदुओं से अलग करो। यह उसी एजेंडे का एक हिस्सा था। ये वोट किसको दिलाना चाहते थे- जाहिर है कि मोदी और भाजपा को तो नहीं दिलाना चाहते थे? 2024 में इन वर्गों का वोट बीजेपी से काटने या कम करने में वे आंशिक रूप से सफल भी हुए। लेकिन इस देश का मतदाता इतना जागरूक है कि उनको बांग्लादेश की तरह सफल नहीं होने दिया।
आपको याद होगा 5 अगस्त 2024 को जब बांग्लादेश में तख्ता पलट हुआ तो उसके बाद इस देश के किस पार्टी के किस-किस नेता ने कहा था कि जो बांग्लादेश में हुआ वही भारत में भी होना चाहिए। आप इससे अंदाजा लगाइए कि उनकी मंशा क्या है- उनका इरादा क्या है- उनका लक्ष्य क्या है? अब चूंकि प्रमाण आ रहे हैं, दस्तावेजी प्रमाण आ रहे हैं और जांच हो रही है तो वहां बौखलाहट, बेचैनी बढ़ रही है। इसलिए आप देखेंगे आने वाले दिनों में ऐसे बयान और ज्यादा आने वाले हैं। इस विदेशी मदद के बेनिफिशियरी कौन-कौन से एनजीओ हैं, वकील हैं, पत्रकार हैं, मीडिया के लोग हैं… यह सब सामने आना चाहिए। ये सब असल में देश के गद्दार लोग हैं जिन्होंने देश की डेमोक्रेसी को सबवर्ट करने की कोशिश में विदेशी ताकतों का साथ दिया। इनके चेहरे बेनकाब होने चाहिए। मुकदमा चलना चाहिए और इनको जेल भेजा जाना चाहिए ताकि आने वाले समय के लिए यह सनद रहे कि जो भी ऐसा करेगा उसके साथ उसका यही अंजाम होगा।
इनको लग रहा था कि हम कुछ भी कर लेंगे किसी को पता नहीं चलेगा… और, पता भी चलेगा कोई कुछ कर नहीं पाएगा… ये जो मुगालता पालकर वे बैठे थे, डोनाल्ड ट्रम्प के सूचना विस्फोट के बाद उसके खत्म होने का समय आ गया है। भारत में आने वाले दिनों में क्या होने वाला है? भारत सरकार की एजेंसियां जितनी चुस्ती और जितना तेजी से इस विषय पर काम करेंगी, उतनी जल्दी पहचान हो सकेगी कि ये आस्तीन के सांप कौन हैं। उनके खिलाफ कानून और संविधान के मुताबिक कार्रवाई होनी चाहिए। यह जो संविधान की प्रति जेब में लेकर घूमने वाले, लहराने वाले लोग हैं, उनको मालूम होना चाहिए कि इस देश का संविधान, कानून देश के गद्दारों से निपटने में सक्षम है। कोई संविधान बदलने की जरूरत नहीं है इसी संविधान के तहत ऐसे लोगों को बेनकाब किया जा सकता है, कटघरे में खड़ा किया जा सकता है और जेल भेजा जा सकता है। उसका सिलसिला शुरू हो गया है। जो लोग इसके गुनहगार हैं उनमें बेचैनी भी बढ़ने वाली है।
यह पश्चाताप का काल चल रहा है। मतदाता को समझ में आ गया कि 2024 में उसने जो किया वह उसकी गलती थी। उस भूल का सुधार, परिमार्जन हो रहा है। इसलिए आप देखिए एक के बाद एक विधानसभा चुनाव में जिस तरह बीजेपी को भारी सफलता मिल रही है और विपक्ष खास तौर से कांग्रेस पार्टी का सफाया हो रहा है- वह बताता है मतदाता का मन- वह बताता है इस देश के आम लोगों की भावना। यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। इस तरह एक साथ दो स्तर पर कार्रवाई हो रही है। एक मतदाता की ओर से और दूसरी सरकार यानी सरकारी एजेंसियों की ओर से। यह जो दोहरी फांस है इससे विपक्ष और ये षड्यंत्रकारी निकल नहीं पाएंगे यह अब धीरे-धीरे सुनिश्चित होता जा रहा है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)