स्मृतिशेष: कल्याण सिंह (5 जनवरी 1932 – 21 अगस्त 2021)

वीर विक्रम बहादुर मिश्र।
हिंदुत्ववादी राजनीति की आधारशिला रखने वाले कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के दोबार मुख्यमंत्री तथा राजस्थान के राज्यपाल रहे। वर्ष 1967 में अलीगढ़ की अतरौली विधानसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की पारी शुरू की। तत्कालीन कांग्रेस सरकार के विरुद्ध गठित विपक्षी दलों का गठबंधन- जो जनता पार्टी के रूप में प्रस्तुत हुआ- उसके टिकट पर वर्ष 1977 में वे चुनाव जीते और उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री बने।


हिन्दुत्व के मुद्दों पर धार

Former UP CM Kalyan Singh passes away after prolonged illness | India News,The Indian Express

कालांतर में संघ की सदस्यता के मुद्दे पर जनता पार्टी विघटित हुई तो भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ। वर्ष 1980 में हुए चुनाव के बाद से उन्होंने हिन्दुत्व के मुद्दों पर धार देना शुरू किया। वर्ष 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए जो आंदोलन शुरू किया उससे उनकी राजनीति को नया आयाम मिला। उससे पूर्व विभिन्न धड़ों में बंटे हिंदू जनमानस की एकता की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। एक फरवरी 1984 को विवादित स्थल का ताला खुलने के बाद विहिप का राम मंदिर आंदोँलन और तेज हुआ।

विपक्ष में बैठने का फैसला

Hindutva icon, tallest non-Yadav OBC leader — How Kalyan Singh helped BJP breach UP

नवंबर 1989 में हुआ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भाजपा ने कांग्रेस के विरुद्ध जनता दल के साथ मिलकर लड़ा। जनता दल को अकेले अपने बल पर ही बहुमत मिल गया और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में राज्य में सरकार गठित हुई। भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में विपक्ष में बैठने का फैसला किया। यह फैसला भाजपा के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ। मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह के तेवरों के उत्तर में कल्याण सिंह ने जो तेवर दिखाये उससे भाजपा को बढ़त मिलनी शुरू हो गयी।

राम मंदिर आंदोलन

Kalyan Singh face Ram Mandir movement all update | Kalyan Singh को मंजूर नहीं थी कारसेवकों पर गोली, कहा था- रामभक्तों के खून से नहीं रंग सकता अपने हाथ | News Track

अयोध्या में अशोक सिंघल के नेतृत्व में राम मंदिर का आंदोलन जोर पकड़ रहा था। इसी बीच आहूत उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र में इस मुद्दे पर हुई तीखी बहस को लेकर समाचार पत्रों में छपे बयानों ने जनमानस को और उद्वेलित कर दिया। विहिप के आंदोलन के संदर्भ में उठे मुद्दे पर मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह ने तीखे स्वरों में जब कहा कि ‘हिदू राष्ट्र सात जन्म में नहीं बन सकता’ तो उसका जवाब कल्याण सिंह ने उसी तेवर में यह कहकर दिया कि ‘हिंदू राष्ट्र बनकर रहेगा’। इस बयान की तीखी प्रतिक्रिया हुई जिसके फलस्वरूप लखनऊ व दूसरे अनेक नगरों में भीड़ सड़कों पर उतर आई और मुलायम सिंह के विरुद्ध हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाते हुए उन्हे मुल्ला मुलायम कहकर नारे लगाने लगी। फलतः हिंदुत्व की लहर तेज हो उठी। सरकार से जनता दल का अजित गुट अलग हो गया तो मुलायम सरकार अल्पमत में आ गयी। कांग्रेस ने सरकार को समर्थन दिया पर कुछ ही महीने बाद वापस ले लिया।

पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार

जून  1991 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के फलस्वरूप भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ गयी। पार्टी विधानमंडल दल के नेता के रूप में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। कल्याण सिंह राजनीति में आने से पहले शिक्षक की भूमिका में थे। सत्ता में आने के बाद वे फिर अपनी पुरानी भूमिका में आ गये। वे अपने से संबंधित फाइलें गंभीरता से पढ़ते और किसी चूक पर अधिकारियों की क्लास लेते। इस प्रक्रिया में उन्हे कभी कभी बहुत विलंब हो जाता था। वे वरिष्ठ पत्रकारों को फोन कर उनका हालचाल तो लेते ही थे, अपनी सरकार का भी पता लेते थे।

निर्णयों पर अडिग

Ayodhya Saints Raised Demand To Join Kalyan Singh Ram Mandir Trust - अयोध्या के संतों ने उठाई मांग कल्याण सिंह राम मंदिर ट्रस्ट में हो शामिल | Patrika News

मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह अपने निर्णयों पर अडिग रहते थे। संभवतः नवंबर 1991 की घटना है। मैं उनके पास एनेक्सी स्थित मुख्यमंत्री कक्ष में ही बैठा था। मेरे साथ अमर उजाला के तत्कालीन संवाददाता (अब दिवंगत) सुभाष दवे भी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री के फोन की घंटी बजी। कल्याण सिंह ने उठाया तो पता चला उधर से अटल बिहारी वाजपेयी जी बोल रहे हैं। वाजपेयी जी उस समय लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। वे तत्कालीन आयुर्वेद निदेशक के विरुद्ध की जाने वाली विभागीय कार्रवाई पर पुनर्विचार के लिए कह रहे थे। कल्याण सिंह ने अपना निर्णय यथावत रखने का संकेत देते हुए उनसे स्पष्ट कहा कि ‘आप रूस की यात्रा पर जा रहे हैं। आपके लौटने तक मैं इस पर निर्णय विलम्बित रखूंगा। आपके आने के बाद मैं आपको पूरे तथ्यों से अवगत कराऊँगा। फिर मुझे पूरा विश्वास है कि आप मेरे निर्णय से सहमत होंगे।’ फिर बाद में उन्होने अपने निर्णय में कोई बदलाव नहीं किया।

सरकार को कुछ दिन काम करने का मौका मिले

Kalyan Singh Death: Because of his humanity and justice, the welfare of Muslims was additionally appreciated by the ancestral villagers like this | Report Wire

कल्याण सिंह चाहते थे कि उनकी सरकार को कुछ दिन काम करने का मौका मिले। उसके बाद विहिप अपने आंदोलन को धार दे। इस मुद्दे पर उनकी विहिप नेता अशोक सिंघल से बहस हुई थी। सिंघल मंदिर आंदोलन को धीमा करने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने विवादित स्धल पर कार सेवा की तिथि छह दिसंबर 1992 निर्धारित कर दी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को कार सेवा शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने का सरकार की ओर से हलफनामा दिया था। छह दिसंबर 1992 को कार सेवा के दिन केंद्र सरकार ने जब उन्हें सूचित किया कि कारसेवक विवादित ढांचे तक पहुंच गये हैं, तो उन्होंने उत्तर दिया कि वे ढांचे पर चढ़ गये हैं और तोड़फोड़ कर रहे हैं- पर मैं भारी भीड़ पर गोली चलाने के पक्ष में नहीं हूं। निश्चित ही उस समय यदि गोली चलती तो हजारों जानें जाती। कल्याण सिंह ने गोली न चलाये जाने की परिस्धितियों की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। उन्होंने मुख्य सचिव, गृह सचिव और दूसरे संबंधित अधिकारियों को बुलाकर उन्हें निर्देश दिया कि  इस संदर्भ में जो भी औपचारिकताएं हों वे पूरी कर लें और उस पर उनके हस्ताक्षर प्राप्त कर लें।

कल्याण सिंह की खुद की अपनी विश्वसनीयता थी और उन्हे खुद पर भी अदम्य विश्वास था। उत्तर प्रदेश में दूसरी बार अपने मुख्यमंत्रित्व-काल में जब वे भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राजनाथ सिंह- जो वर्तमान मे देश के रक्षा मंत्री हैं- के आवास पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित थे तो उन्हे तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी द्वारा लोकतांत्रिक कांग्रेस के नेता जगदंबिका पाल को उनके स्थान पर नये मुख्यमंत्री की शपथ दिलाये जाने की जानकारी मिली। वे चुपचाप बैठे रहे। मैंने उनसे पूछा कि आप मुख्यमंत्री हैं। इतनी बड़ी घटना हो गयी आपको पता नहीं।  वे फिर चुपचाप बैठे रहे फिर बड़े संयत और शांत स्वर में बोले- ‘वह तो पुरानी बात है कुछ नया पूछो।’ बाद में न्यायपालिका के हस्तक्षेप से पाल को अपदस्थ किया गया।

भाजपा में वापसी का दृश्य

भाजपा नेतृत्व से खटपट के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी और भाजपा के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी को बहुत बुरा भला कहा था। परंतु जब दुबारा वापसी की वह दृश्य बड़ा दिलचस्प था। लखनऊ में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन पूर्व मंत्री लालजी टंडन के आवास पर पार्टी नेतृत्व ने कुछ बड़ी जानकारी देने के लिए संवाददाताओं को बुलाया। पीछे की लान में कुर्सियों पर जमे संवाददाता बड़ी उत्सुकता से खबर की प्रतीक्षा कर रहे थे। सहसा लान के सामने बरामदे में कल्याण सिंह प्रकट हुए और वहां रखी तीन कुर्सियों में किनारे वाली पर विराजमान हो गये। इसके थोड़े ही देर बाद वाजपेयी जी प्रकट हुए। वे बीच की कुर्सी पर विराजमान हुए और लालजी टंडन तीसरी कुर्सी पर। कल्याण सिंह के हाथ में लड्डू का डिब्बा पकड़ाया गया। उन्होंने एक लड्डू निकाला और वाजपेयी जी के होठों से लगाया ही था कि वाजपेयी जी बोल पड़े ‘खा लूं’। अब कल्याण सिंह बोले, ‘आपकी ओर दो उंगलियां उठाई थीं, अब पांचों उंगलियों से खिला रहा हूं… खा लीजिए’। वाजपेयी जी ने लड्डू खाया भी कल्याण सिंह को अपने हाथों से खिलाया भी।

अद्भुत व्यक्तित्व

अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे कल्याण सिंह। मुख्यमंत्री के रूप में अपने सरकारी आवास में वे जहां बैठते थे उस आसन के पीछे दीवार पर भगवान राम का आदमकद चित्र सुशोभित होता था। अयोध्या के राममंदिर की गाथा जब तक गायी जायगी कल्याण सिंह अमर रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)