शिवचरण चौहान।
क्या गंगा और गंदी होती जाएंगी? क्या गंगा को स्वच्छ और निर्मल नहीं बनाया जा सकता? क्या गंगा के किनारे रहने वाला आम आदमी गंगा को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी नहीं उठाएगा? ये सवाल बहुत महत्वपूर्ण हैं। सरकार तो गंगा सफाई के नाम पर 1986 से अब तक हजारों करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है। गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए न जाने कितने संत महात्माओं ने अपनी कुर्बानियां दी हैं किंतु गंगा रोज के रोज और अधिक गंदी होती जा रही हैं। गंगा भारत की राष्ट्रीय नदी है और भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक गंगा की सफाई के लिए स्वच्छता के लिए समर्पित रहे हैं किंतु जन सहयोग न मिलने के कारण गंगा गंदी की गंदी बनी हैं।

ऐसे लोग रखेंगे गंगा को गंदगी से मुक्त

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गंगा का जल हरिद्वार के बाद पीने लायक नहीं है- आचमन लायक तक नहीं है। सरकार गंगा नदी के किनारे गंगा एक्सप्रेस-वे बनवा रही है। गंगा के आसपास के किसानों से कहा जा रहा है कि वे प्राकतिक  खेती करें। अपनी फसलों में रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक ना डाल कर परंपरागत कंपोस्ट खाद और नीम की पत्तियों के कीटनाशक डालें। गंगा में गंदे नाले ना डालें और गंदगी भी न जाने दें। गंगा के जीवों की रक्षा करें। पर क्या ऐसा हो पाएगा बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने वाले यात्री गंगा के आसपास इतनी गंदगी छोड़ आते हैं कि सरकार को सफाई करा पाना भी मुश्किल हो जाता है तो ऐसे लोग गंगा को गंदगी से मुक्त रखेंगे इसकी आशा कैसे की जा सकती है? यदि गंगा सफाई को गंगा के किनारे रहने वाले लोग एक संकल्प लेकर गंगा सफाई करें तो गंगा स्वच्छ हो सकती है और उसकी पहचान पुनः वापस हो सकती है। पर आमजन से भगीरथ निकलेगा कहां से है? भगीरथ तो कोई नहीं बनना चाहता?

जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को भगवान शिव ने खोल दी थीं अपनी जटाएं

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पौराणिक काल से गंगा नदी के किनारे गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता रहा है जिसमें गंगा पूजन और गंगा मेला के आयोजन होते हैं। हजारों साल से। गंगा में 1100  बैक्टीरिया पाए जाते हैं। गंगा के पानी में ऐसे बैक्टीरिया होते हैं जो गंगा के पानी को स्वच्छ बनाए रखते हैं किंतु हरिद्वार के बाद गंगा में कूड़ा कचरा गंदा नाला इतना अधिक डाला जाता है कि गंगा गंदी और अपवित्र हो जाती है।
श्रीमद्भागवत पुराण ,स्कंद पुराण सहित  अनेक पुराणों में गंगा के उद्गम की कथा आती है। इक्ष्वाकु वंश की राजा सगर ने एक बार अश्वमेघ यज्ञ किया था। तब अपना सिंहासन जाने के डर से देवताओं के राजा इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया था। राजा सागर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि के आश्रम में जब घोड़ा बंधा देखा तो उन्होंने कपिल मन को बहुत भला बुरा कहा तभी तपस्या रत कपिल मुन्ने आकर खोल दी और सागर के 60000 पुत्र जलकर राख हो गए। सगर के पुत्र अंशुमान ने बहुत तपस्या की कि गंगा धरती पर आ जाए और उनके पुरखे मुक्ति पा जाएं। पर अंशुमान और बाद में उनके पीढ़ी के राजा इसमें सफल नहीं हुए। फिर भगीरथ राजा बने तो उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि वह अपने पुरखों और जनकल्याण के लिए गंगा को धरती पर लाएंगे। भगीरथ की घोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गया और गंगा को धरती पर भेजने के लिए तैयार हो गया किंतु गंगा का वेग कौन रोक पाएगा,। गंगा तो धरती से रसातल में चली जाएंगी। तब ब्रह्मा जी की सलाह पर भगीरथ में भगवान शिव की कठोर आराधना की। शिव जी प्रसन्न हुए और गंगा को धरती पर अपनी जटाओं में से प्रवाहित करने के लिए तैयार हो गए। भगवान शिव का निवास पुराणों के अनुसार कैलाश पर्वत पर है और संपूर्ण हिमालय में उनकी जटाएं फैली हुई हैं। कैलाश पर्वत पर ही मानसरोवर है जिससे ब्रह्मपुत्र, सिंधु और सतलज नदियां निकलती हैं।
जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन भगवान शिव ने अपनी जटाएं खोल दी थीं और गंगा गोमुख गंगोत्री के रास्ते धरती पर आ गई।

जीवनदायिनी गंगा

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आयुर्वेद के अनुसार आठ प्रकार की अग्नियां होती हैं। इनमें पाचक अग्नि यानी जठराग्नि सबसे महत्वपूर्ण है।
बैशाख और जेठ माह में सूर्य की तपिश की पराकाष्ठा पर होती है और आसमान से अंगारे बरसाने लगते हैं। सूर्य के प्रचंड रूप को देखकर हिमालय के ग्लेशियर गलने लगते हैं। हिमालय की जड़ी बूटियों वाले बड़े भूभाग से एक अपार जल राशि गोमुख से निकलती है किसे हमारे पुराणों में गंगा कहा गया है। गंगा हिमालय से निकलकर पूरे उत्तर पूर्वी भारत हरा भरा करती है। गंगा नदी जीवनदायिनी है।पुराणों में कथा आती है की गंगा नदी के जल में भगीरथ के साठ हजार पुरखों को अपने जल के स्पर्श से मोक्ष प्रदान किया था।

पुराणों में कथा आती है की कैलाश पर्वत से लेकर पूर्व दिशा तक हिमवान का राज्य था। राजा हिमवान का विवाह  पर्वतराज सुमेरू की एकमात्र पुत्री मैना से हुआ था। राजा हिमवान और मैंना से 27 पुत्रियां उत्पन्न हुईं थीं। इनमें गंगा सबसे बड़ी और पार्वती सबसे छोटी थीं। गंगा अपनी मां मैना की तरह  सीधी सरल और सुंदर थी। पार्वती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था जबकि गंगा धरती के लोगों का दुख दूर करने के लिए पृथ्वी पर आ गईं थीं।

मनुष्यों की धूर्तता का शिकार

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आज गोमुख से निकलने के बाद गंगा मनुष्यों की धूर्तता का शिकार है। अपने स्वार्थ के लिए मनुष्य ने गंगा नदी को गंदा कर दिया है। गंगा किनारे बड़े-बड़े नगर बसे हुए हैं जिनका सीवर का पानी ,कचरा, गंदा नाला का पानी और खतरनाक उद्योगों का टेनरियों का जहरीला पानी गंगा में गिराया जाता है। फर्रुखाबाद कानपुर इलाहाबाद और बनारस तक गंगा का बहुत बुरा हाल है। सरकार ने हजारों करोड़ रुपए गंगा सफाई के नाम पर खर्च कर दिए हैं किंतु गंगा मैली और मैली गंदी होती गई। प्रधानमंत्री मोदी ने कानपुर से लेकर काशी वाराणसी तक गंगा की सफाई के लिए खुद निरीक्षण कर गंदे नाले बंद करवाये किंतु वांछित परिणाम नहीं निकला। गंगा ,टेम्स नदी नहीं बन सकी। कानपुर में पहले जाजमऊ में और फिर बिठूर में गंगा दशहरा पर बड़े बड़े मेले लगते रहे हैं। आज भी बिठूर कानपुर में गंगा दशहरा पर मेला लगता है। बिठूर को ब्रह्मावर्त  कहा जाता है। कहते हैं यहीं पर भगवान ब्रह्मा ने तपस्या की थी धरती का केंद्र बिंदु है बिठूर। गंगा के अनेक तटों पर गंगा दशहरा पर मेला लगते हैं गंगा पूजन होता है और गंगा आरती की जाती है। क्या इस बार गंगा दशहरा पर सरकार के साथ ही गंगा नदी के किनारे बसे गांव और शहर के लोग यह संकल्प लेंगे कि वह खुद गंगा को स्वच्छ रखेंगे और गंगा की सफाई स्वच्छता ,निर्मलता के लिए आगे बढ़कर आएंगे! गंगा को उसका पहले जैसा स्वरूप लौटा देंगे! जो न करे राव! वह करे गांव!! या प्राचीन कहावत है। जो काम राजा नहीं कर सकता वह काम गांव का आम आदमी कर सकता है। अगर गंगा किनारे बसे डॉग गंगा की सफाई के लिए संकल्पित और तत्पर हो जाएं तो गंगा स्वच्छ और  निर्मल धारा के रूप में दोबारा जीवनदायिनी बन जाएगी। काश ऐसा हो सके!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)