राज्यसभा की घटना से गहरी आत्मवेदना और मानसिक पीड़ा

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी 

पीएम मोदी ने कहा देशवासी इस प्रेरणादायी पत्र को अवश्य पढ़ें

आपका अख़बार ब्यूरो । 

राज्यसभा में रविवार 20 सितम्बर को संसदीय मर्यादाओं को तार तार करने वाले विपक्ष के कुछ सदस्यों के आचरण से आहत राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने इस घटना को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू को चिट्ठी लिखी है। राजनीतिक गलियारों से लेकर आम लोगों के बीच भी हरिवंश की चिट्ठी की खूब चर्चा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर देशवासियों से इस प्रेरक पत्र की जरूर पढ़ने की अपील की है।


 

चिट्ठी को ट्वीट करते हुए मोदी ने कहा, ‘माननीय राष्ट्रपति जी को माननीय हरिवंश जी ने जो पत्र लिखा, उसे मैंने पढ़ा। पत्र के एक-एक शब्द ने लोकतंत्र के प्रति हमारी आस्था को नया विश्वास दिया है। यह पत्र प्रेरक भी है और प्रशंसनीय भी। इसमें सच्चाई भी है और संवेदनाएं भी। मेरा आग्रह है, सभी देशवासी इसे जरूर पढ़ें।’

उल्लेखनीय है कि रविवार को सदन में हुए हंगामे को लेकर विपक्ष के आठ सदस्यों को मौजूदा सत्र के शेष समय के लिए निलंबित कर दिया गया था। निलंबित किए गए सदस्यों में कांगेस के राजीव सातव, सैयद नजीर हुसैन और रिपुन बोरा, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन और डोला सेन, माकपा के केके रागेश और इलामारम करीम व आप के संजय सिंह शामिल हैं।

यह है राष्ट्रपति को सम्बोधित पूरा पत्र

आदरणीय महामहिम जी, 20 सितंबर को राज्यसभा में जो कुछ भी हुआ, उससे पिछले दो दिनों से गहरी आत्मपीड़ा, आत्मतनाव और मानसिक वेदना में हूं। पूरी रात सो नहीं पाया। उच्च सदन में जो दृश्य उत्पन्न हुआ, उससे सदन और आसन की मर्यादा को अकल्पनीय क्षति हुई है।

जेपी के गांव में पैदा हुआ, सिर्फ पैदा नहीं हुआ, उनके परिवार और हम गांव वालों के बीच पीढ़ियों का रिश्ता रहा। गांधी का बचपन से गहरा असर पड़ा। गांधी, जेपी, लोहिया और कर्पूरी ठाकुर जैसे लोगों के सार्वजनिक जीवन ने मुझे हमेशा प्रेरित किया। जय प्रकाश आंदोलन और इन महान विभूतियों की परंपरा में जीवन में सार्वजनिक आचरण अपनाया। मेरे सामने 20 सितंबर को उच्च सदन में जो दृश्य हुआ, उससे सदन, आसन की मर्यादा को अकल्पनीय क्षति पहुंची है।

लोकतंत्र के चीरहरण

Rajya Sabha passes contentions farm bills amid chaos, high drama - The South Indian Post | DailyHunt

सदन के सदस्यों द्वारा लोकतंत्र के नाम पर हिंसक व्यवहार हुआ, आसन पर बैठे व्यक्ति को भयभीत करने की कोशिश हुई. उच्च सदन ही कर मर्यादा और व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई गईं। सदन में माननीय सदस्यों ने नियम पुस्तिका फाड़ी, मेरे ऊपर फेंका। टेबल पर चढ़कर सदन के महत्वपूर्ण कागजात-दस्तावेजों को पलटने, फेंकने और फाड़ने की घटनाएं हुईं। नीचे से कागज को रोल बनाकर आसन पर फेंके गए। आक्रामक व्यवहार, भद्दे और असंसदीय नारे लगाए गए। हृदय और मानस को बेचैन करने वाला लोकतंत्र के चीरहरण का पूरा नजारा रात मेरे मस्तिष्क में छाया रहा। इस कारण मैं सो नहीं सका। गांव का आदमी हूं, मुझे साहित्य, संवेदना और मूल्यों ने गढ़ा है।

मुझसे गलतियां हो सकती हैं

सर मुझसे गलतियां हो सकती हैं, पर मुझ में इतना नैतिक साहस है कि सार्वजनिक जीवन में खुले रूप से स्वीकार करुं। जीवन में किसी के प्रति कटु शब्द शायद ही कभी इस्तेमाल किया हो, क्योंकि मुझे महाभारत का यक्ष प्रश्न का एक अंश हमेशा याद रहता है। यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि ‘हम रोज कंधों पर शव लेकर शमशान जाते हैं पर हम कभी नहीं सोचते हैं कि अंततः जीवन की यही नियति है।’ मेरे जैसे मामूली गांव और सामान्य पृष्ठभूमि से निकले इंसान आएंगे और जाएंगे। समय और काल के संदर्भ में उनकी न कोई स्मृति होगी, ना गणना। पर लोकतंत्र का यह मंदिर ‘सदन’ हमेशा समाज और देश के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा अंधेरे में रोशनी दिखाने वाला लाइट हाउस बन कर संस्थाएं ही देश और समाज की नियति तय करती हैं। इसलिए राज्यसभा और राज्यसभा का उपसभापति का पद ज्यादा महत्वपूर्ण और गरिमामय है, मैं नहीं। इस तरह मैं मानता हूं कि मेरा निजी कोई महत्व नहीं है। पर इस पद का है। मैंने जीवन में गांधी के साधन और साध्य से हमेशा प्रेरणा पाई है।

मेरी कोई पृष्ठभूमि नहीं है

बिहार की जिस भूमि से मेरा रिश्ता है वहीं गणतंत्र का पहला स्वरूप विकसित हुआ। वैशाली का गणतंत्र। चंपारण के संघर्ष ने गांधी को महात्मा गांधी बनाया। भारत की नई नियति लिखने की शुरुआत यहीं से हुई। जेपी की संपूर्ण क्रांति ने देश को दिशा दी। उसी धरती के लाल कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय का रास्ता सदियों से वंचित और पिछड़े लोगों के जीवन में नई रोशनी लेकर आया। उस धरती, माहौल, संस्कार और परिवेश से निकले मेरे जैसे गांव के मामूली इंसान की कोई पृष्ठभूमि नहीं है। हमारी परवरिश किसी अंग्रेजी स्कूल में नहीं हुई। खुले मैदान में पेड़ के नीचे लगने वाली पाठशाला में संस्कार का प्रस्फुटन हुआ। न पांच सितारा जीवन संस्कृति, न राजनीतिक दांव पेंच से रिश्ता रहा। पर कल की  घटनाओं से लगा कि जिस गंगा और सरयू के बीच बसे गांव के संस्कारों से नियमित और शालीन व्यवहार के बीच पला बढ़ा। गांधी, लोहिया, जेपी, कर्पूरी ठाकुर, चंद्रशेखर जैसे लोगों के विचारों ने मुझे मूल्य और संस्कार दिए। उनकी ही हत्या मेरे सामने कल उच्च सदन में हुई।

शायद सदस्यों में आत्म शुद्धि का भाव जागृत हो

भगवान बुध मेरे जीवन के प्रेरणास्रोत रहे हैं। बिहार की धरती पर ही आत्मज्ञान पाने वाले बुद्ध ने कहा था- आत्मदीपो भव।

मुझे लगा है कि उच्च सदन की मर्यादित पीठ पर मेरे साथ जो अपमानजनक व्यवहार हुआ, उसके लिए मुझे एक दिन का उपवास करना चाहिए। शायद मेरे उपवास सदन में इस तरह के आचरण करने वाले माननीय सदस्यों के अंदर आत्म शुद्धि का भाव जागृत हो।

यह उपवास इसी भावना से प्रेरित है। बिहार की धरती पर पैदा हुए राष्ट्रकवि दिनकर दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। कल 23 सितंबर को उनकी जन्म तिथि है। आज 22 सितंबर सुबह से कल 23 सितंबर सुबह तक, इस अवसर पर 24 घंटे का उपवास कर रहा हूं। कामकाज की गति न रुके इसलिए उपवास के दौरान राज्यसभा के कामकाज में नियमित रूप से भाग लूंगा।

एक सप्ताह में ऐसे कटु अनुभव की कल्पना नहीं थी

पिछले सोमवार 14 सितंबर को दोबारा मुझे उपसभापति का दायित्व दिया गया तो मैंने कहा था- इस सदन में पक्ष एवं विपक्ष में एक से एक वरिष्ठ जिम्मेदार प्रखर वक्ता एवं जानकार लोग मौजूद हैं। हम सब लोग उनके योगदान को समय-समय पर देखते हैं। मेरा मानना है कि वर्तमान में हमारा सदन प्रतिभावान एवं कमिटेड सदस्यों से भरा है। इस सदन में आदर्श सदन बनने की पूरी क्षमताएं हैं। जब जब बहसें हुई, हमने देखा है।

पर महज एक सप्ताह में मेरा ऐसा कटु अनुभव होगा, आहत करने वाला, कल्पना नहीं की थी।

दिनकर की कविता से अपनी भावना को विराम दे रहा हूं:

वैशाली! इतिहास पृष्ठ पर अंकन अंगारों का/ वैशाली! अतीत गह्वर में गुंजन तलवारों का/ वैशाली! जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता/ जिसे ढूंढता देश आज उस प्रजातंत्र की माता/ रुको, एक क्षण पथिक! यहां मिट्टी को शीश नवाओ/ राजसिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ।


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