डॉ. मयंक चतुर्वेदी।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद प्रमुख महमूद मदनी का यह कहना, ‘इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो बाहर से आया है, सरासर गलत और निराधार है। इस्लाम सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। इस्लाम भारत का ही मजहब है और सारे मजाहिद और सारे धर्मों में सबसे पुराना मजहब है। इस्लाम के आखिरी इसी दिन को मुकम्मल करने के लिए तशरीफ लाए थे।’ बहुत आश्चर्य है ! एक नैरेटिव गढ़ने के लिए वे जूठ भी बोलते हैं तो इतनी सफाई से। जिस खुदा और उनके शब्दों में पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम(प्रोफेट मोहम्मद) का वे जो हवाल देते हैं, कम से कम अपनी नहीं तो अपने खुदा एवं अपने ईश्वर का तो बोलते वक्त ध्यान रख लेते?देखा जाए तो इस समय नैरेटिव गढ़ने का दौर चल पड़ा है। कभी-कभी लगता है कि 21वीं सदी विकास के लिए कम नैरेटिव के लिए जरूर अधिक याद की जाएगी । आखिर अब ‘ईसाईयत’ के बाद सार्वजनिक मंच से ‘इस्लाम’ को भी झूठ के सहारे की आवश्यकता पड़ गई? ईसाइयत भी तो सेवा की आड़ में, झूठ के सहारे और प्रार्थना के नाम पर लोगों को गुमराह करती और मतान्तरण करवाती हुई अनेक स्थानों पर दिखाई देती है। इसी प्रकार लग रहा है, कुछ लोगों के माध्यम से इस्लाम को भी इस झूठ की आवश्यकता पड़ गई है कि कैसे वह अपनी दूसरे मत के बीच और अपने मत के मानने वालों के विश्वास को बनाए रखने का काम करे।

दूर नहीं जाएं यह पिछली शताब्दियों की ही बात है, जब मैक्स मूलर, विलियम हंटर और लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले इन तीन लोगों के कारण भारत के इतिहास का विकृतिकरण आरंभ हुआ, इन्होंने भी अपने हित को देखते हुए एक नैरेटिव रचा और भारत के तथाकथित बुद्धिमान उसके चक्र में फंस गए। अंग्रेंजों ने कहना शुरू किया, भारतीय इतिहास की शुरुआत सिंधु घाटी की सभ्यता से हुई है। फिर कहा कि सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे । आर्यों ने बाहर से आकर सिंधु सभ्यता को नष्ट करके अपना राज्य स्थापित किया। 1500 ईसा पूर्व से 500 ईस्वी पूर्व के बीच के काल को अंग्रेजों ने आर्यों का काल घोषित कर दिया।

अंतत: समाज में यह भ्रांति फैलती गई की आर्यों ने दृविड़ों की सिंधु सभ्यता को नष्ट कर दिया। आर्य घोड़े पर सवार होकर आए और उन्होंने भारत पर आक्रमण कर यहां के लोगों पर शासन किया। तात्पर्य 1500 ईसा पूर्व घोड़े के बारे में सिर्फ आर्य ही जानते थे। जबकि तथ्य यह है कि मध्य पाषाण काल का युग 9000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व के बीच था। इस काल में व्यक्ति शिकार करने के साथ ही पशुओं को पालने लगा था। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी के किनारे बागोर और मध्यप्रदेश के नर्मदापुर जिले में नर्मदा नदी के पास आदमगढ़ में 9000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व के बीच के पाषाण अवशेष मिल चुके हैं जिनसे ज्ञात होता है कि उस काल में लोग धनुष बाण का उपयोग करने के साथ ही घोड़े की सवारी करते थे। अर्थात् भारत में लोग नौ हजार ईसा पूर्व घोड़ों पर बैठकर शिकार किया करते थे।

इससे स्पष्ट है कि कथित रूप से बताए गए आर्यों के काल से पूर्व ही भारतीय लोग घोड़ों पर बैठकर धनुष बाण से शिकार करते थे। लेकिन अंग्रेज यह भ्रम फैलाकर आगे दूसरे नैरेटिव गढ़ने में लग गए। आश्चर्य की बात है कि जिस इतिहास और शोध के दावों के आधार पर अंग्रेज इस ”आर्यन इन्वेजन थ्योरी” को गढ़ रहे थे, उसका कोई मूल तथ्य कभी प्रस्तुत नहीं कर पाए। इनमें से किसी ने कहा कि आर्य मध्य एशिया के रहने वाले थे, कोई इन्हें साइबेरिया, मंगोलिया, ट्रांस कोकेशिया या स्कैंडेनेविया का मूल निवासी बता रहा था। आर्य बाहर से यानी कहां से आए ? उसका कोई सटीक उत्तर कभी किसी के पास नहीं रहा, किंतु धारणा (नैरेटिव) तो धारणा है, एक बार मस्तिष्क में छप गई तो फिर क्या किया जा सकता है?

दो शताब्दियां गुजर गईं इस जूठ को समझाने में कि आर्य जैसा कोई शब्द कभी विदेशियों के लिए रहा ही नहीं, जोकि भारत में बाहर से आकर कभी बसे हों। भाषा विज्ञान में आर्य का अर्थ उत्तम, पूज्य, मान्य, प्रतिष्ठित, धर्म एवं नियमों के प्रति निष्ठावान या श्रेष्ठ है। प्राचीन भारत में जो भी श्रेष्ठीजन थे, उन्हें आदर सूचक शब्द अर्थात आर्य कहकर संबोधित किया जाता था। आज यह बात पूरी तरह से सिद्ध भी हो चुकी है। किंतु सोचिए कितना वक्त लगा, कितनी ऊर्जा, श्रम, समय और सामर्थ्य सिर्फ इस तथ्य को प्रकाश में लाने और समझाने में लगा है कि ”आर्यन इन्वेजन थ्योरी” असत्य है।

वास्तव में जमीयत उलेमा-ए-हिंद प्रमुख महमूद मदनी भी आज बड़ी चालाकी से जूठी ”आर्यन इन्वेजन थ्योरी” की तरह यह धारणा बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि इस्लाम दुनिया का सबसे पुराना धर्म है। इसमें भी गजब यह है कि खुले साक्ष्यों के बावजूद भी शब्दों का जादू दिखा रहे हैं। अब इससे जुड़ा इतिहास देखिए; मुहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था। उस समय तीन देवियों की पूजा होती थी, ये देवियां थीं, अल-लात, मनात और अल-उज्ज़ा। इन तीनों देवियों का मंदिर मक्का के आस-पास ही स्थित थे और तीनों की काबा के भीतर भी पूजा होती थी। सारे अरब के लोग इन तीनों देवियों की पूजा करते थे। लगभग 613 इस्वी के आसपास मुहम्मद साहब ने लोगों को अपने ज्ञान से परिचित कराया, यहीं से इस्लाम का आरंभ होता है। परवर्ती वर्षों में मुहम्म्द साहब के अनुयायियों का मक्का के लोगों द्वारा विरोध करने पर उन्हें मदीना जाना पड़ा था, इस प्रस्थान को हिजरत नाम से मुस्लिम इतिहास में जाना जाता है।

मदीना से ही इस्लाम को एक सम्प्रदाय या मजहब माना गया। मुहम्मद के जीवन काल में ही और उसके बाद जिन-जिन प्रमुख लोगों ने अपने आपको पैगंबर घोषित कर रखा था वो थे, मुसलमा, तुलैहा, अल-अस्वद, साफ़ इब्न सैय्यद और सज़ाह। बाद के समय में मुहम्मद साहब ने मक्का जीत लिया । यहां के सभी लोग इस्लाम में परिवर्तित हुए। फिर अरबों ने पहले मिस्र और उत्तरी अफ्रीका पर इस्लामिक विजय पाई, फिर बैजेन्टाइन तथा फारसी साम्राज्यों को हराया। यूरोप में तो उन्हें विशेष सफलता नहीं मिली, पर पूरब की दिशा में उनका साम्राज्य फैलता रहा । सन् 1200 तक वे भारत में पहुँच गए। इस्लाम का पूरा इतिहास आप उठाकर देख लेवें । संपूर्ण इतिहास आपको रक्तरंजित मिलेगा। भारत का विभाजन और उसके पश्चात पाकिस्तान और बांग्लादेश में क्या हो रहा है, इस्लामिक स्टेट के लिए दुनिया भर में क्या-क्या हो रहा है, वह सभी कुछ हमारे सामने है ही ।

कोई मदनी जी से पूछे, दारुल-हरब और दारुल-इस्लाम की कल्पना क्या है? इनकी ही मान्यतानुसार आसमानी किताब कुरान मजीद में पहले नबी, धरती के पहले मनुष्य आदम थे। अब तक कुरान के अनुसार अनगिनत नबी हुए हैं। कुरान यहूदियों के अब्राहम, मूसा को और क्रिश्चियनों के जीसस को नबी बताती है। लेकिन यहूदी और ईसाई आज भी इस्लाम की नजरों में अलग मत-मजहब हैं। आखिर ऐसा क्यों?

घोर आश्चर्य है कि महमूद मदनी जैसे लोग कुरान मजीद के आधार पर दूसरों के पूर्वजों को अपना पूर्वज तो स्वीकारते हैं, किंतु उनकी मान्यताओं को नहीं स्वीकारते। सिर्फ इस्लाम को ही सबसे ऊपर रखेंगे! कोई पूछे कि अब्राहम अले सलाम, या ईसाले सलाम को मानने वाले यहूदियों, ईसाइयों या सनातन संस्कृति को माननेवाले हिन्दू अथवा अन्य कोई और क्यों न हों, आखिर क्यों इस्लाम उन्हें अपना नहीं मानता? फिर कहेंगे कि इस्लाम तो सारे धर्मों में सबसे पुराना मजहब है।

वास्तव में कोई इनसे यह अवश्य पूछे कि आखिर झगड़ा किस बात का है ? कुरान के अनुसार जब पहला नबी ही पहला इंसान था, आदम अलैहिस्सलाम ( آدم), अल्लाह (الله) द्वारा निर्मित, फिर विभेद कैसा? सभी तो उस एक की ही संतान हैं। तब फिर ये काफिर शब्द आया ही क्यों? और इससे जुड़ी मान्यता एवं हिंसा क्यों दुनिया भर में आग लगाए हुए है ?   (एएमएपी)