प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को देश के नए संसद भवन का उद्घाटन किया है। आज देशभर की नजरें भारतीय लोकतंत्र के नए मंदिर पर हैं। बेहद भव्य और त्रिभुजाकार अवस्था में बना नया संसद भवन रविवार को 135 भारतीयों के लिए समर्पित किया जाएगा। नए संसद भवन में कई विशेषताओं के साथ उत्कृष्ट कलाकृतियों का समागम है। 971 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित, नया परिसर भारत की प्रगति का प्रतीक है और सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना का हिस्सा। नई संसद भवन को पुराने भवन के बजाय त्रिभुजाकार में बनाया गया है। ऐसा क्यों है? दरअसल, इस आकार का वैदिक संस्कृति और तंत्रशास्त्र से गहरा नाता है। आइए समझते हैं।
पुरानी संसद भवन के बजाय लोकतंत्र के सभी फैसले नए और भव्य संसद भवन से किए जाएंगे। नई संसद परिसर में पहले के बजाय काफी ज्यादा सुविधाएं और हाईटेक व्यवस्था है। यहां पहले से कहीं ज्यादा बड़े विधायी कक्ष होंगे। लोकसभा में राष्ट्रीय पक्षी मोर की आकृति पर बनी नई 888 सीटों की व्यवस्था की गई है। जबकि राज्यसभा में 348 सीटों को राष्ट्रीय फूल कमल की आकृति दी गई है। संयुक्त सत्र के लिए 1272 सीटों वाला एक वृहद हॉल बनाया गया है।
भवन का आकार तिकौना क्यों
धार्मिक महत्व
नए संसद भवन की प्रमुख विशेषताएं
नई संसद भवन को बनाने में देश के हर राज्य का योगदान
लोकतंत्र के नए मंदिर में देश के हर हिस्से की छटा देखने को मिलेगी। सेंट्रल विस्टा वेबसाइट के अनुसार संसद भवन को सुंदर बनाने के लिए देश के हर राज्य का कुछ न कुछ योगदान है। हरियाणा की रेत और त्रिपुरा के बांस का इस्तेमाल किया गया है जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है।
इसी तरह मशीन से तैयार सीमेंट की ईंट उत्तर प्रदेश से आई है। इसके अलावा संसद भवन परिसर में इस्तेमाल लकड़ियों पर की गई नक्काशी में नोएडा का योगदान है। संसद परिसर में बिछी दरी में मिर्जापुर की झलक देखने को मिलेगी। नए संसद भवन में लगे लाल और सफेद पत्थर राजस्थान के सारमथुरा से आए हैं। कहा जाता है कि लाल किले और हुमायूं के मकबरे पर लगा पत्थर भी यहीं से मंगाया गया था। उदयपुर से केसरिया हरा पत्थर और अजमेर से ग्रेनाइट और अंबाजी से सफेद माबर्ल आया है।
वहीं, संसद भवन की खूबसूरती में चार चांद लगा रही टीक की लकड़ी महाराष्ट्र के नागपुर से मंगाई गई है। संसद भवन परिसर में हजारों किलोग्राम लकड़ी का प्रयोग किया गया है। संसद भवन में लगे अधिकतर फर्नीचर मुंबई से तैयार होकर आए हैं। लोकसभा और राज्यसभा की छत में लगी फॉल्स सीलिंग के लिए स्टील दमन और दीयू से आया है। इसी तरह अशोक स्तंत को बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री औरंगाबाद और जयपुर से लाई गई है। जबकि लोकसभा और राज्यसभा की दीवारों पर लगा विशाल अशोक चक्र का चिन्ह और संसद की बाहरी दीवारों पर बनीं कलाकृतियों को इंदौर से लाया गया है। संसद की दीवारों और भीतर के परिसर को सुंदर बनाने के लिए कारीगरों ने कड़ी मेहनत की है।
स्पीकर की कुर्सी के पास सेंगोल की स्थापना
पुराने संसद भवन का क्या होगा
नई संसद भवन के बन जाने के बाद अब पुरानी संसद भवन का क्या होगा? पुरानी संसद भवन को वास्तुकारों ने ‘काउसिंल हाउस’ के रूप में डिजाइन किया था। इसे बनाने में छह साल लगे थे, यह 1921 में बनना शुरू हुआ और 1927 तक बनकर तैयार हुआ। उस वक्त इस भवन में ब्रिटिश सरकार की विधान परिषद काम करती थी। उस वक्त इसे बनाने पर 83 लाख रुपये खर्च हुए थे। अधिकारियों के अनुसार मौजूदा संसद भवन का इस्तेमाल संसदीय आयोजनों के लिए किया जाएगा।(एएमएपी)