जिस चंद्रमा को हम दूर से देखते हैं उसमें अब भारत का चंद्रयान-3 मिशन भेजा जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का बहुप्रतीक्षित मिशन 14 जुलाई, शुक्रवार को लॉन्चिंग के लिए तैयार है। इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का है। अमेरिका के नील आर्मस्ट्रॉन्ग चंद्रमा पर उतरने वाले पहले व्यक्ति थे उसके बाद से गैर-मानव मिशनों की होड़ सी लग गई। पृथ्वी और ब्रह्मांड के इतिहास का अध्ययन करने के लिए चंद्रमा वैज्ञानिकों का एक लक्ष्य बन चुका है।भारत का यह मिशन चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग के चार साल बाद भेजा जा रहा है। चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है, तो अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी। इस बीच जानना जरूरी है कि चंद्रयान-3 मिशन क्या है? इसका उद्देश्य क्या है? आखिर चंद्रमा पर खोज क्यों की जा रही है? चंद्र मिशनों से मनुष्यों को क्या हासिल होगा?

क्या है चंद्रयान-3 ?

इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। इसमें एक प्रणोदन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर होगा। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है।

मिशन 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरेगा और अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर उतरेगा। बीते बुधवार को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में चंद्रयान-3 युक्त एनकैप्सुलेटेड असेंबली को एलवीएम3 के साथ जोड़ा गया गया। यह मिशन भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का चौथा देश बना देगा।

आखिर चंद्रमा पर खोज क्यों की जा रही है?

चंद्रयान-3 को मिलाकर अकेले भारत के ही तीन चंद्र मिशन हो जाएंगे। हालांकि, इसके अलावा भी दुनिया की तमाम राष्ट्रीय और निजी अंतरिक्ष एजेंसियां लूनर मिशन भेज चुकी हैं या भेजने की तैयारी में हैं। इन मिशनों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। यही कारण है कि आज भी चंद्रमा पर खोज एक चुनौती मानी जाती है।

1969 में नील आर्मस्ट्रांग अमेरिका के अपोलो 11 मिशन के दौरान चंद्रमा पर चलने वाले पहले व्यक्ति थे। इस ऐतिहासिक मिशन के दशकों बाद भी चंद्रमा का पता लगाना मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि जब पृथ्वी और ब्रह्मांड के इतिहास का अध्ययन करने की बात आती है तो चंद्रमा एक खजाना है।

चंद्रमा पर मिशन भेजने के उद्देश्यों को लेकर नासा की वेबसाइट कहती है कि चंद्रमा पृथ्वी से बना है और यहां पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास के साक्ष्य मौजूद हैं। हालांकि, पृथ्वी पर ये साक्ष्य भूगर्भिक प्रक्रियाओं की वजह से मिट चुके हैं।

नासा के मुताबिक, चंद्रमा वैज्ञानिकों को प्रारंभिक पृथ्वी के नए दृष्टिकोण प्रदान करेगा। पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली और सौर मंडल कैसे बने और विकसित हुए जैसे सवालों के जवाब वैज्ञानिकों मिल सकते हैं। इसके साथ ही पृथ्वी के इतिहास और संभवतः भविष्य को प्रभावित करने में क्षुद्रग्रह प्रभावों की भूमिका के बारे में भी पता लगाया जा सकता है।

अमेरिकी एजेंसी की मानें तो चंद्रमा अनेक रोमांचक इंजीनियरिंग चुनौतियां पेश करता है। यह जोखिमों को कम करने और भविष्य के मिशनों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकियों, उड़ान क्षमताओं, जीवन समर्थन प्रणालियों और शोध तकनीकों का परीक्षण करने के लिए एक उत्कृष्ट जगह है।

चंद्र मिशनों से मनुष्यों को क्या हासिल होगा?

चंद्रमा की यात्रा मनुष्यों को दूसरी दुनिया में रहने और काम करने का पहला अनुभव प्रदान करेगी। यात्रा हमें अंतरिक्ष के तापमान और चरम विकिरण में उन्नत सामग्रियों और उपकरणों का परीक्षण करने की अनुमति देगी। मनुष्य सीखेंगे कि मानवीय कार्यों में सहायता करने, दूरस्थ स्थानों का पता लगाने और खतरनाक क्षेत्रों में जानकारी इकट्ठा करने के लिए रोबोटों का सर्वोत्तम उपयोग कैसे किया जाए।

नासा कहता है कि चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उपस्थिति स्थापित करके, मनुष्य पृथ्वी पर जीवन को बढ़ाएंगे और अपने सौर मंडल के बाकी हिस्सों और उससे आगे का पता लगाने के लिए तैयार होंगे।

पृथ्वी से कम गुरुत्वाकर्षण और अधिक विकिरण वाले वातावरण में अंतरिक्ष यात्रियों को स्वस्थ रखना चिकित्सा शोधकर्ताओं के लिए एक अहम चुनौती है। चंद्रमा की खोज तकनीकी नवाचारों और अनुप्रयोगों और नए संसाधनों के उपयोग के लिए नए व्यावसायिक मौके भी मुहैया करती है। अंततः, चंद्रमा पर चौकियां स्थापित करने से लोगों और खोजकर्ताओं को पृथ्वी से परे ग्रहों और उपग्रहों तक अन्वेषण और बसाहट का विस्तार करने में मदद मिलेगी।(एएमएपी)