मौसम विभाग भी सक्रिय नहीं
डेरना शहर के मेयर अब्दुलमेनाम अल-घाइठी ने कहा कि शहर में मरने वालों का आंकड़ा 18 से 20 हजार तक पहुंच गया है। यही नहीं उन्होंने कहा कि अब बड़ा डर इस बात का है कि महामारी फैल सकती है। पानी में शव सड़ रहे हैं और सड़कों पर पानी के साथ गंदगी बह रही है। इसके चलते बीमारियों का खतरा पैदा हो गया है। इस बीच विश्व मौसम संगठन का कहना है कि लीबिया में इतनी ज्यादा मौतों को टाला जा सकता था। संगठन ने कहा कि लीबिया बीते एक दशक से गृह युद्ध की मार झेल रहा है और देश में दो अलग-अलग सरकारों का शासन चल रहा है। हालत यह है कि लीबिया में मौसम विभाग ही सक्रिय नहीं है।
चेतावनी जारी होती तो बच सकती थी कई जानें
यदि देश में मौसम विभाग ऐक्टिव होता तो उसकी ओर से कुछ भविष्यवाणी की जाती और फिर लोगों को बचाया जा सकता था। वैश्विक संस्था ने कहा कि यदि समय रहते बाढ़ का अनुमान जाहिर हो जाता तो लोगों को पहले ही कहीं शिफ्ट कर लिया जाता। इसके अलावा बचाव कार्य के लिए भी पर्याप्त समय मिल पाता। इसके अलावा कई जानकारों ने कहा कि डेरमा शहर पहले से ही खतरे पर था। इसे लेकर कई बार चेतावनी दी गई थी कि शहर में कुछ डैम बना दिए जाएं वरना समुद्र किनारे बसा यह शहर कभी भी भीषण आपदा की चपेट में आ सकता है।
मिनटों में इमारतें ढहीं, सैकड़ों परिवार ऐसे जिनमें कोई न बचा
डेरमा शहर की यह बाढ़ इतनी भीषण थी कि मिनटों के अंदर विशाल इमारतें ढह गईं। कई ऐसे परिवार हैं, जो पूरी तरह से तबाह हो गए और कोई सदस्य ही नहीं बचा। एक शख्स ने बताया कि उसने अपने संयुक्त परिवार के 13 सदस्यों को इस आपदा में खो दिया है। बाढ़ की भयावहता को इससे समझा जा सकता है कि शवों को सामूहिक तौर पर दफन किया जा रहा है और जेसीबी की मदद से कब्रों को खुदवाया जा रहा है। अफ्रीकी देश लीबिया में बीते 10 सालों से गृह युद्ध की स्थिति और इन्फ्रास्ट्रक्चर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।(एएमएपी)