कराची की सड़कों पर लिखे स्लोगन
कराची की मुख्य सड़कों पर जगह-जगह यह स्लोगन लिखे दिख रहे हैं जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है, ‘पाकिस्तान बनेगा खालिस्तान’, ‘कराची बनेगा खालिस्तान’, ‘मुल्ला बनेगा खालसा.’ दिलचस्प है कि खालिस्तानी आतंकवादी संगठनों के लोगों ने यह वीडियो भी वायरल कर दिया है जिसमें कराची की सड़कों पर जगह-जगह यह स्लोगन लिखे दिख रहे हैं. कराची में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और पाकिस्तानी फौज के बड़े अधिकारी बड़े पैमाने पर रहते हैं, लिहाजा माना जाता कि वहां पर कड़ी सुरक्षा और सतर्क खुफिया निगाहें होंगी. इन सबके बावजूद वहां पर अलग खालिस्तान बनाने की मांग को लेकर जगह-जगह नारे लिख दिए गए।
पाकिस्तानी हुक्मरानों ने तुरंत संभालने की कोशिश की
खालिस्तानी आतंकवादियों में दो गुट
सूत्रों का कहना है कि खालिस्तानी आतंकवादियों में दो गुट बन गए हैं, जिनमें से एक गुट चाहता है कि पाकिस्तान की बड़ी आबादी जहां मौजूद है उस इलाके को खालिस्तान घोषित कर दिया जाए. इसके साथ ही बताया जा रहा है कि यह गुट कनाडा में भी ऐसी मांग उठाने जा रहा है. खालिस्तानी आतंकवादियों के इस अलग गुट का मानना है कि दूसरे देशों की खुफिया एजेंसियों ने उन्हें अभी तक केवल यूज किया है, लेकिन उनके मतलब की कोई चीज आज तक सामने नहीं आई है. जबकि उनके सैकड़ों लोग इस दौरान मारे जा चुके हैं. लिहाजा जो देश उन्हें समर्थन दे रहे हैं वह वहां अपने यहां पर छोटा हिस्सा ही दें, लेकिन खालिस्तान के नाम पर दे दें. हो सकता है जल्दी ही यह मांग कनाडा में भी देखने को मिले।
अकाल तख़्त के जत्थेदारों की स्थिति
अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित अकाल तख़्त सिख धर्म का सर्वोच्च स्थान है. इसके प्रमुख को जत्थेदार कहा जाता है और चार अन्य तख्तों के प्रमुखों के साथ वे सामूहिक रूप से सिख समुदाय से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों पर फ़ैसले लेते हैं. साल 2020 में ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी के मौके़ पर अकाल तख़्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि खालिस्तान की मांग जायज़ है. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा था, “सिखों को यह संघर्ष याद है. दुनिया में ऐसा कोई सिख नहीं है जो खालिस्तान न चाहता हो. भारत सरकार खालिस्तान देगी तो हम लेंगे।
फिलिस्तीन में यहूदी शरणार्थी काबिज रहे या मुसलमान, आखिर क्या है पूरी सच्चाई
खालिस्तान की मांग पहली बार कब उठी?
क्या भिंडरावाले ने कभी खालिस्तान की मांग की थी?
सिख सशस्त्र आंदोलन का पहला चरण स्वर्ण मंदिर या श्री दरबार साहिब परिसर पर हमले के साथ समाप्त हुआ, जो परिसर के भीतर मौजूद उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए किया गया था. इसे 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के नाम से जाना जाता है. सशस्त्र संघर्ष के दौरान ज़्यादातर उग्रवादियों ने जरनैल सिंह भिंडरावाले को नेता के तौर पर स्वीकार किया था. हालाँकि इस ऑपरेशन के दौरान जरनैल सिंह भिंडरावाले मारे गए थे.उन्होंने कभी साफ़तौर से खालिस्तान की मांग या एक अलग सिख राष्ट्र की बात नहीं कही थी. हालांकि उन्होंने ये ज़रूर कहा था कि, ‘अगर श्री दरबार साहिब पर सैन्य हमला होता है तो यह खालिस्तान की नींव रखेगा.’ उन्होंने 1973 के श्री आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को अमल में लाने के लिए ज़ोर दिया था जिसे अकाली दल की वर्किंग कमिटी द्वारा अपनाया गया था।
क्या है आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन
1973 का आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन में अपने राजनीतिक लक्ष्य के बारे में इस प्रकार कहा गया है, “हमारे पंथ (सिख धर्म) का राजनीतिक लक्ष्य, बेशक सिख इतिहास के पन्नों, खालसा पंथ के हृदय और दसवें गुरु की आज्ञाओं में निहित है. जिसका एकमात्र उद्देश्य खालसा की श्रेष्ठता है. शिरोमणि अकाली दल की मौलिक नीति एक भू-राजनीतिक वातावरण और एक राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण के माध्यम से खालसा की श्रेष्ठता स्थापित करना है। अकाली दल भारतीय संविधान और भारत के राजनीतिक ढांचे के तहत काम करता है। आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन का उद्देश्य सिखों के लिए भारत के भीतर एक स्वायत्त राज्य का निर्माण करना है. ये रिज़ॉल्यूशन अलग देश की मांग नहीं करता है। 1977 में अकाली दल ने इस रिज़ॉल्यूशन को आम सभा की बैठक में एक नीति निर्देशक कार्यक्रम के हिस्से के रूप में अपनाया था। अगले ही साल 1978 के अक्टूबर में अकाली दल लुधियाना सम्मेलन में इस प्रस्ताव को लेकर नरम पड़ गया। इस सम्मेलन के वक़्त अकाली दल सत्ता में था. स्वायत्तता को लेकर रिज़ॉल्यूशन संख्या एक को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गुरचरण सिंह तोहड़ा ने पेश किया गया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने इसका समर्थन किया था. रिज़ॉल्यूशन संख्या एक को आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन के 1978 संस्करण के तौर पर जाना जाता है।