पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने दायर की थी याचिका
जुल्फिकार अली भुट्टो को मिली सजा के फैसले पर समीक्षा याचिका 2011 में पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने दायर की थी। आसिफ अली जरदारी रिश्ते में भुट्टो के दामाद हैं और अब उनकी बनाई पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के मुखिया भी हैं। जुल्फिकार अली भुट्टो की सजा को लेकर पाकिस्तान के राजनीतिक हलकों में बहस चलती रही है कि उन्हें जल्दबाजी में फांसी की सजा दी गई थी और उनके खिलाफ सही से ट्रायल नहीं चलाया गया। इसी मामले में जरदारी ने केस दायर किया था। जिस पर सुनवाई के बाद अब 13 साल बाद फैसला आया है।
भुट्टो के खिलाफ हत्या का केस नहीं चला बल्कि केस की हुई हत्या
इस याचिका की सुनवाई 9 सदस्यों वाली संवैधानिक बेंच ने की। अदालत में सुनवाई के दौरान एक वकील ने तो यहां तक कहा कि भुट्टो के खिलाफ हत्या का केस नहीं चला बल्कि केस की हत्या हुई थी। इस मामले में ऐतिहासिक फैसले के बाद आसिफ अली जरदारी ने कहा कि हमारे परिवार की तीन पीढ़ियों ने अदालत के इन शब्दों को सुनने के लिए इंतजार किया। अदालत अब इस मामले में डिटेल ऑर्डर जारी करेगी। पाकिस्तान के मानवाधिकार संगठन भी मानते रहे हैं कि जिया उल हक के 11 सालों के शासन में तानाशाही का दौर था और लोकतंत्र को खत्म किया गया।
जियाउल हक पर भरोसा करना सबसे बड़ी गलती थी
पाकिस्तान के लोकप्रिय नेताओं में शुमार रहे भुट्टो को पसंद करने वाले उनको फांसी देने के लिए जनरल जियाउल हक को विलेन मानते रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि जिया को बढ़ाने वाले भी भुट्टो ही थे और नियमों के परे जाकर उनका कद बढ़ाया था। जियाउल हक पर भरोसा और उनको आगे बढ़ाने का फैसला ही उनकी जिंदगी के लिए सबसे खतरनाक साबित हुआ।
34 साल की उम्र में पाक के विदेश मंत्री बन गए थे भुट्टो
साल 1928 में प्रभावशाली राजनीतिक परिवार में पैदा हुए जुल्फिकार अली भुट्टो ने अमेरिका से पढ़ाई की थी और कम उम्र में ही सियासत में एंट्री मार ली थी। भुट्टो सिर्फ 34 साल की उम्र में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बन गए थे। 1971 में वह पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। पहले विदेश मंत्री के तौर पर वैश्विक मंचों पर उनके भाषण और फिर बांग्लादेश में पाकिस्तान की हार के बाद भारत से शिमला समझौता कर 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को छुड़ाना उनकी उपलब्धि के तौर पर देखा गया। इसने उनको काफी लोकप्रिय कर दिया। इसके बाद 1973 में वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने।
1976 में बनाया था जिया को आर्मी चीफ
जुल्फिकार अली भुट्टो ने 1976 में जिया उल हक को पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष बनाया। जिया इस पद के लिए पूरी तरह काबिल भी नहीं थे क्योंकि वह कई अफसरों से जूनियर थे। इसके बावजूद भुट्टो ने उनको पाक सेना का चीफ बना दिया। यही उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी चूक साबित हुई। भुट्टो कैबिनेट में मंत्री और पंजाब के गवर्नर रहे गुलाम मुस्तफा खार ने एक बातचीत में कहा था कि बाकायदा भुट्टो को आगाह किया गया था कि वह जिया को सेनाध्यक्ष ना बनाएं लेकिन उन्होंने नहीं सुनी। भुट्टो ने कहा कि कि पाकिस्तान की सेना उन्हीं जनरलों को स्वीकार करती है जो अच्छी अंग्रेज़ी बोलते हों। दूसरे ये भारत से आया है और इसकी शख्सियत भी प्रभावहीन है। मुझे लगता है कि ये सेना प्रमुख के लिए सबसे ठीक रहेगा।
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बिलावल भुट्टो ने कहा- हमारे परिवार ने तीन पीढ़ियों तक किया इंतजार
भुट्टो का जिया के बारे में आकलन पूरी तरह गलत साबित हुआ और सेना प्रमुख बनने के एक साल के भीतर ही, 1977 में जिया उल हक का पीएम पद चला गया। भुट्टो पर मुकदमे हुए, उनको गिरफ्तार किया गया और फिर उन्हें फांसी पर चढ़वा दिया। जिया के राष्ट्रपति रहते हुए एक ऐसे मुकदमे में 1979 में उनको रावलपिंडी की जेल में फांसी दे दी गई, जिस पर लगातार सवाल उठते रहे। इस मामले में भुट्टो के दामाद आसिफ जरदारी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी और अब पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने भी मान लिया है कि उनको फांसी देने का तरीका ठीक नहीं था। बेनजीर भुट्टो के बेटे और जुल्फिकार भुट्टो के नाती बिलावल भुट्टो ने सुप्रीम के फैसले के बाद कहा कि न्यायिक हत्या के 44 साल और राष्ट्रपति की ओर से रेफ्रैंस दायर होने के 12 साल बाद आज सीजेपी ने निर्णय सुनाया। उन्होंने माना कि शहीद जुल्फिकार अली भुट्टो के केस की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई थी। इन शब्दों को सुनने के लिए हमारे परिवार ने तीन पीढ़ियों तक इंतजार किया। (एएमएपी)