प्रदीप सिंह।
गाजियाबाद में 72 साल के एक बुजुर्ग मुसलमान से जबरन जय श्री राम का नारा बुलवाया जा रहा था। उसकी दाढ़ी काट दी गई और मारा पीटा गया। यह खबर मेनस्ट्रीम मीडिया में प्रमुखता से छपी और सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुई।
पैटर्न और षड्यंत्र
मीडिया का एक वर्ग ऐसी ही खबरों के इंतजार में रहता है। उसने इस खबर को लपक लिया। फिर ट्विटर, सोशल मीडिया, टीवी चैनलों और अखबारों सब जगह यह खबर चलने लगी। उस पर प्रतिक्रियाएं भी आने लगी लेकिन यह घटना इक्का-दुक्का होने वाली घटनाओं में से नहीं है। इसमें आपको एक पैटर्न दिखेगा। साथ ही और इसके पीछे आपको षड्यंत्र दिखेंगे और वो भी दो तरह के। उन षड्यंत्रों पर बात करने से पहले इस घटना को ठीक से जान लेते हैं।
जांच हुई तो आरोप झूठा निकला
जब पुलिस ने घटना की तफ्तीश शुरू की तो पता चला कि यह आरोप पूरी तरह से झूठा है। उस बुजुर्ग की पिटाई में तीन लोग शामिल थे जिनमें एक युवक हिंदू और दो मुसलमान थे। आखिर पिटाई का कारण क्या था? कारण यह था कि वह बुजुर्ग ताबीज देता था। इन लड़कों ने कहा कि उसकी ताबीज असर नहीं कर रही है इसलिए उसकी पिटाई की। बुजुर्ग से जय श्री राम बुलवाने की कोशिश की गई थी- यह आरोप बिलकुल झूठा निकला। वैसे भी अगर दो मुस्लिम लड़के बुजुर्ग की पिटाई में शामिल थे तो वे उससे जय श्री राम का नारा क्यों लगवाएंगे… यह बड़ा सवाल है।
झूठी खबर चलाता रहा टि्वटर
पुलिस ने मामले की जांच की और इन सबके बयान लिए तो यह बात सामने आई। फिर तीनों आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए। यह घटना सोमवार की है। अगले दिन मंगलवार को पुलिस ने एफआईआर दर्ज कराई। ट्विटर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई क्योंकि उस पर इस मामले का जोर शोर से प्रचार हुआ और खबर वायरल हुई। पुलिस के स्पष्टीकरण के बावजूद कि घटना के बारे में जो बातें बताई जा रही हैं वे गलत हैं यह खबर ट्विटर पर चलती रही। ट्विटर ने इस खबर को हटाया नहीं। भारत सरकार ट्विटर और तमाम अन्य सोशल प्लेटफॉर्म को यह कहती रही है कि वे इंटरमीडियरी स्टेटस चाहते हैं तो नए आईटी एक्ट को मानें। ट्विटर के अलावा बाकी ने उसे मान लिया।
क्या है इंटरमीडियरी स्टेटस
इंटरमीडियरी स्टेटस का मतलब यह है कि आप एक संदेश वाहक हैं। एक व्यक्ति ने आपके माध्यम पर कोई संदेश भेजा। उसने अगर इसमें कोई गैरकानूनी काम किया है तो उसके लिए वह जिम्मेदार है। अगर किसी अन्य व्यक्ति ने उसमें कुछ जोड़कर या बदलकर करके उसे आगे बढ़ाया तो वह व्यक्ति जिम्मेदार है। ट्विटर या कोई अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, जो इंटरमीडियरी है, वह जिम्मेदार नहीं होगा। यह उसी तरह से है जैसे खत में क्या लिखा है इसके लिए डाकिया जिम्मेदार नहीं है। इंटरमीडियरी स्टेटस मिलने का असर यह होता है कि वे कानून से बच जाते हैं। ज्यादातर देशों में इन्हें कानूनी इंटरमीडियरी स्टेटस मिला हुआ है। कानून से उनको यह संरक्षण प्राप्त होता है कि उनके प्लेटफार्म पर जो खबर चली उसके लिए उन पर मुकदमा नहीं हो सकता। लेकिन जैसे ही आप विवादित संदेश में कुछ फेरबदल करते हैं- कुछ जोड़ते हैं, हटाते हैं या कोई टिप्पणी अथवा संपादन करते हैं- तो फिर आप इंटरमीडियरी से पब्लिशर बन जाते हैं। और पब्लिशर के लिए कानून अलग है। पब्लिशर के लिए कानून यह है कि उस पर मुकदमा हो सकता है। सरकार ट्विटर से कह रही थी कि अगर आप आईटी एक्ट में हुए संशोधन के तहत बताए गए कदम नहीं उठाएंगे तो कानून की धारा 379 के तहत आपको जो प्रोटेक्शन (संरक्षण) मिला है वह खत्म हो जाएगा। टि्वटर नया कानून मानने में हीला हवाली करता रहा। 26 मई समय सीमा समाप्त होने की अंतिम तारीख थी। वो उसके बाद भी समय मांगते रहे। मंगलवार को भारत सरकार ने तय किया कि ट्विटर का इंटरमीडियरी स्टेटस खत्म कर दिया जाए। सोशल मीडिया के बाकी प्लेटफॉर्म्स सरकार के नए नियमों को पहले ही मान चुके हैं।
ट्विटर पर पहली एफआईआर
इस प्रकार उत्तर प्रदेश पुलिस ने ट्विटर के खिलाफ देश में पहली एफआईआर दर्ज की। इसके अलावा गाजियाबाद की घटना को भ्रामक तौर पर इसको प्रचारित और प्रसारित करने वालों के खिलाफ भी उत्तर प्रदेश पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। इसमें ऑनलाइन मीडिया संस्था ‘वायर’, एक अन्य ऑनलाइन मीडिया चलाने वाले मोहम्मद जुबेर, कांग्रेस के नेता सलमान निजामी और शमा मोहम्मद शामिल हैं। एक दो पत्रकारों के खिलाफ भी एफआईआर है। राना अय्यूब के खिलाफ बी एफ आई आर दर्ज हुई है। वह अपने आप को पत्रकार कहती हैं लेकिन जिहादी माहौल बनाना और उसका प्रचार करना ही उनकी पहचान बन गई है।
‘जय श्रीराम’ से इतनी घृणा क्यों
‘जय श्रीराम’ नारे को बदनाम करने का यह कोई पहला मामला नहीं है। ऑनलाइन मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ऑप इंडिया’ ने ऐसी उन्नीस-बीस फर्जी घटनाएं बताई हैं जिनमें कहा गया कि मुसलमान मारा गया और उसे इसलिए मारा जा रहा था क्योंकि उसने ‘जय श्रीराम’ बोलने से मना कर दिया। हरियाणा के मेवात के आसिफ खान की हत्या के मामले में भी यही हुआ। इसके अलावा तेलंगाना में भैंसा मस्जिद की दीवार पर ‘जय श्रीराम’ के नारे लिखे देखे गए। काफी हो-हल्ला मचाया गया कि दंगा भड़काने के लिए हिंदुओं ने इसे लिखा है। यह सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश है। जब तेलंगाना पुलिस ने जांच की तो पता चला कि यह काम उसी मोहल्ले में रहने वाले दो मुसलमान युवकों ने किया है। जिससे लिखवाया गया वह नाबालिग था और जिसने लिखवाया वह बालिग था। इस पर कार्रवाई हुई। हालांकि यह मामला पूरी तरह से झूठा निकला, लेकिन इस घटना का देश विदेश में खूब प्रचार किया गया।
जो चला रहे झूठ के कारखाने
अब कभी भी इस प्रकार की कोई घटना होती है तो कई लोग इस पर एक्शन के लिए पहले से तैयार बैठे रहते हैं। जैसे गाजियाबाद वाली घटना पर एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि ‘हिंदू गुंडों ने मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई की और उससे जबरदस्ती जय श्रीराम बुलवाने की कोशिश की।’ एक वर्ग बन गया है जो बिना यह जाने कि सच्चाई क्या है, इस प्रकार की घटनाओं को सांप्रदायिक रूप में पेश करने की कोशिश करता है। जब यह बात बिल्कुल साफ हो गई कि उस मुस्लिम बुजुर्ग से जय श्रीराम बुलवाने की कोई कोशिश नहीं की गई फिर ट्विटर हैंडल पर तमाम लोगों द्वारा जय श्रीराम नारे को बीच में क्यों लाया गया। देश के तमाम हिस्सों में इस प्रकार की घटनाएं होती हैं और बाद में उसमें जयश्री राम को जोड़ दिया जाता है।
आखिर क्यों?
शायद कभी आपके मन में भी इस प्रकार के सवाल उठे हों:
1- कांग्रेसी और तमाम अन्य धार्मिक विद्वेष की राजनीति करने वाले दल इस प्रकार की राजनीति को बढ़ावा देकर क्या नैरेटिव खड़ा करना चाहते हैं?
2- इस सबके पीछे उनका षड्यंत्र क्या है?
3- वे ‘जय श्रीराम’ को क्यों बदनाम करना चाहते हैं?
4- एक पवित्र सम्बोधन ‘जय श्रीराम’ को हिंदुओं का युद्ध उद्घोष बताने से उनका कौन सा राजनीतिक मकसद सिद्ध होता है?
5- वे कौन लोग हैं जो समय-समय पर यह बताने की कोशिश करते हैं कि हिंदू बहुत असहिष्णु है और वह दूसरे धर्म के लोगों को बर्दाश्त नहीं करता?
6- आखिर भारत दुनिया का ऐसा देश क्यों है जहां सबसे अधिक विभिन्न धर्मों के अनुयाई रहते हैं?
7- ऐसा क्यों है कि हिंदुओं से ज्यादा सहिष्णु लोग और किसी धर्म में नहीं हैं?
8- भारतीय संस्कृति को कमतर और हीन दिखाने की कोशिश में जुटे लोग किस एजेंडे पर काम कर रहे हैं?
अगर आप इन तमाम बातों को जानना चाह रहे हैं तो नीचे दिए वीडियो को क्लिक कर सकते हैं।