4 नवंबर: प्रकाश का त्यौहार दिवाली, सभी में प्रकाश देने की क्षमता।
श्री श्री रविशंकर।
‘पू’ का अर्थ है ‘परिपूर्णता’ और ‘जा’ का अर्थ है ‘वह जो परिपूर्णता से जन्मा है’। इसलिए, पूजा का अर्थ है : वह जो परिपूर्णता से जन्मा है और पूजा करने से जो प्राप्त होता है- वही परिपूर्णता और संतुष्टि है। पूजा करने से वातावरण में सूक्ष्म तरंगें बनतीं हैं जिससे सकारात्मकता आती है।
पूरे समाज को प्रकाशित होना होगा
दिवाली प्रकाश का त्योहार है। भगवान बुद्ध ने कहा है, “अप्प दीपो भवः” – आप स्वयं ही प्रकाश बन जाइये। सभी वेद और उपनिषद भी यही कहते हैं- “आप सभी प्रकाश हैं। आप में से कुछ प्रकाशित हो गए हैं और कुछ अभी प्रकाशित नहीं हुए हैं। लेकिन सभी के अंदर प्रकाश देने की क्षमता है।” दिवाली वह दिन है जब हम अंधकार को दूर करते हैं। और अंधकार को मिटाने के लिए एक रोशनी काफी नहीं है, उसके लिए पूरे समाज को प्रकाशित होना होगा। परिवार में केवल एक सदस्य का खुश होना काफी नहीं है, प्रत्येक सदस्य को खुश होना होगा। यदि एक भी सदस्य खुश नहीं है, तो बाकी लोग भी खुश नहीं रह सकते। इसलिए प्रत्येक घर को प्रकाशित होना होगा।
मिठाई नहीं मिठास बांटिए
दूसरी चीज़ जो हम सबको अपने जीवन में लानी है वह है ‘मिठास’। केवल मिठाई मत बाँटिये, बल्कि सभी लोगों को मिठास बाँटिये। दिवाली का त्योहार हमें यही याद दिलाता है कि यदि मन में कोई कड़वाहट है, कोई दबाव या दिल में कोई तनाव है तो पटाखों की तरह उन सबको फोड़ दीजिये और एक नए जीवन की शुरुआत करिये, उत्सव मनाइये।
माँ लक्ष्मी का आवाहन
अमावस की रात को मनाते हैं दिवाली और इस दिन माँ लक्ष्मी की आराधना शुभ है। दिवाली को अमावस की रात को मनाते हैं और इस दिन लक्ष्मी देवी की पूजा करते हैं। वह दिव्यता जो हमें समृद्धि प्रदान करती है – देवी लक्ष्मी उसी का रूप हैं। भारत में भगवान केवल पुरुष नहीं, बल्कि स्त्री रूप में भी पूजे जाते हैं। जिस प्रकार सफ़ेद रोशनी में सात रंग होते हैं, उसी प्रकार एक दिव्यता के अलग-अलग रूप होते हैं। इसलिए आज के दिन हम ऋग्वेद के कुछ प्राचीन मन्त्रों के द्वारा देवी लक्ष्मी का आवाहन करेंगे और इससे सकारात्मक तरंगें और समृद्धि प्राप्त करेंगें।
(लेखक आध्यात्मिक गुरु और द आर्ट लिविंग के संस्थापक हैं)