प्रदीप सिंह।
जम्मू-कश्मीर कैडर के IAS अधिकारी शाह फैसल… यह नाम तो जरूर सुना होगा आपने। अलग-अलग कारणों से चर्चा में रहे हैं। हालांकि अच्छे कारणों से कम रहे हैं। 2009 में UPSC की परीक्षा में उन्होंने टॉप किया था। तब से उनका नाम चर्चा में है। जम्मू-कश्मीर से पहली बार किसी ने UPSC के सिविल सर्विसेज के एग्जाम में टॉप किया है। सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने के बाद IAS अधिकारी बने और राज्य में उनकी नियुक्ति हुई। जनवरी 2019 में उन्होंने IAS के पद से इस्तीफा दे दिया। उससे पहले सर्विस में रहते हुए वह बहुत कुछ ऐसा कर चुके थे जो किसी सरकारी कर्मचारी को भी नहीं करना चाहिए, IAS अधिकारी की तो बात ही छोड़ दीजिए। देश के विरोध में, समाज के विरोध में, जम्मू कश्मीर की स्थिति के विरोध में लगातार ट्वीट करते रहे हैं। उनके एक ट्वीट पर केंद्र सरकार ने जांच भी शुरू कराई लेकिन जांच का क्या हुआ किसी को नहीं मालूम।
जब उन्होंने इस्तीफा दिया तब जांच चल रही थी इसलिए उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया था। जनवरी 2019 में इस्तीफा देने के बाद उनका मन हुआ कि उन्हें राजनीति में जाना चाहिए। 4 फरवरी,2019 को कुपवाड़ा में, जहां के वह रहने वाले हैं, वहां उन्होंने एक जनसभा को संबोधित किया। जनसभा में उन्होंने कहा कि वे 10 साल IAS अधिकारी रहे और ये 10 साल वैसे ही रहे जैसे कोई 10 साल जेल में रहता है। इस देश की Premier Administrative Service के अधिकारी का यह बयान है। उनका जो विवादास्पद ट्वीट है उसके बारे में भी आपको बता देते हैं। इस ट्वीट में उन्होंने लिखा- पैट्रिआर्की, पॉपुलेशन, इलिट्रेसी, अल्कोहल, पोर्न, टेक्नोलॉजी, एनार्की इज इक्वल टू रेपिस्तान। यह उन्होंने जम्मू कश्मीर के बारे में कहा। इस पर जांच शुरू हुई तो बाद में उन्होंने इससे पल्ला झाड़ लिया कि यह कश्मीर के बारे में नहीं था। तो फिर किसके बारे में था? यह उन्होंने कभी स्पष्ट नहीं किया। जाहिर है कि कश्मीर को लेकर, कश्मीर की परिस्थिति को लेकर उनके ऐसे विचार थे। उन्होंने मार्च 2019 में अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट और इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए।
धारा 370 हटने से पहले ही दिया था इस्तीफा
ये सब उन्होंने किया 5 अगस्त 2019 से पहले। इस तरीख को संसद के प्रस्ताव के जरिये धारा 370 को डायल्युट किया गया और और 35ए को हटा दिया गया। इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि 370 को डायल्युट करने और 35ए को हटाने के विरोध में उन्होंने इस्तीफा दिया। उससे पहले से उनकी जो दिशा थी वह अलगाववाद की दिशा थी, इसमें किसी को शक नहीं था। इसीलिए भारत सरकार ने IAS अधिकारी के रूप में उन्हें मिली सुरक्षा को 2018 में ही हटा लिया। 5 अगस्त के बाद 14 अगस्त, 2019 को उन्होंने साफ कहा कि 1947 से अब तक जितने अधिकार हमारे लिए रहे हैं, वे सब जब तक वापस नहीं होते तब तक ईद नहीं मनाएंगे। दूसरी बात उन्होंने कही कि जब तक आखिरी अपमान का बदला नहीं ले लिया जाता तब तक ईद नहीं मनाएंगे। ये हैं शाह फैसल। उसके बाद उन्होंने देश छोड़कर भागने की कोशिश की। वे टर्किश एयरलाइंस से इस्तांबुल जा रहे थे। उससे पहले 35ए हटाने के बाद उनको प्रिवेंटिव डिटेंशन (नजरबंद) में रखा गया था। फिर भी ट्वीट करने का कोई जरिया वह निकाल लेते थे। वहां से निकलकर दिल्ली पहुंचे और एयरपोर्ट पर उनको इमीग्रेशन डिपार्टमेंट ने रोक दिया क्योंकि उनके खिलाफ पहले से आईबी का लुक आउट नोटिस जारी था।
देश से भागने की कोशिश
एयरपोर्ट पर उनको रोका गया तो दिल्ली हाई कोर्ट में उन्होंने मुकदमा दायर कर कहा कि कि उनको गलत तरीके से रोका गया। वे अमेरिका जा रहे थे अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने के लिए। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बारे में सरकार से पूछा तो इमीग्रेशन डिपार्टमेंट ने एफिडेविट देकर कहा कि उनके पास अमेरिका का वीजा है लेकिन वह टूरिस्ट वीजा है- स्टूडेंट वीजा नहीं है। इस वीजा पर वे पढ़ाई करने के लिए जा ही नहीं सकते। शाह फैसल ने झूठ बोला। अदालत में भी बोला, सरकार के सामने भी बोला और आम लोगों के सामने भी बोला। दरअसल, उनका इरादा कुछ और था। उस समय चर्चा यह थी कि वे देश छोड़कर जाना चाहते हैं और तुर्की से भारत विरोधी अभियान चलाना चाहते हैं। इसमें कितनी सच्चाई है पता नहीं लेकिन यह सच है कि वे टर्किश एयरलाइन से इस्तांबुल जा रहे थे। यह सच्चाई है कि उनके पास अमेरिका का स्टूडेंट वीजा नहीं था। यह सच्चाई है कि सरकार उनके खिलाफ जांच कर रही थी। यह सच्चाई है कि आईबी का उनके खिलाफ लुक आउट सर्कुलर था। यह सच्चाई है कि केंद्र सरकार ने उनकी सुरक्षा हटा ली थी। दिल्ली एयरपोर्ट पर रोके जाने के बाद उन्हें श्रीनगर ले जाया गया और प्रिवेंटिव डिटेंशन में रखा गया। उसके बाद पीएसए (पब्लिक सेफ्टी एक्ट) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।
शुरू हो चुकी है सेवा बहाली की प्रक्रिया
पीएसए के तहत जिसको गिरफ्तार किया जाता है उसे दो साल तक बिना जमानत के जेल में रखा जा सकता है। लेकिन प्रिवेंटिव डिटेंशन में उन्हें किसी जेल में नहीं रखा गया बल्कि पहले एक बड़े होटल में रखा गया, उसके बाद एमएलए हॉस्टल में रखा गया। बाकी गिरफ्तार नेताओं को भी कुछ को उनके घर में तो कुछ को दूसरी जगह पर रखा गया। इनमें से किसी को जेल नहीं भेजा गया। लेकिन भारत सरकार के खिलाफ इन सबके मन में जो नफरत है- बल्कि ये कहें कि भारत के खिलाफ जो नफरत है- उसमें कोई कमी नहीं आई। मगर अब भारत सरकार के मन में बदलाव आ गया है। भारत सरकार ने तय किया है कि शाह फैसल की सेवा फिर से बहाल की जाए। इस्तीफा देने के तीन साल बाद उनकी सेवा बहाल करने का प्रोसेस जम्मू-कश्मीर जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने शुरू कर दिया है। पिछले पांच-छह महीने से इस तरह की खबरें आ रही थी कि शाह फैसल को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का सलाहकार बनाया जा सकता है। खबर आती थी खंडन होता था, फिर आती थी फिर खंडन होता था। शाह फैसल या सरकार की ओर से कोई आधिकारिक जवाब नहीं आता था। लेकिन यह चर्चा थी कि उनको फिर से IAS के पद पर वापस लिया जा रहा है।
क्या कोई दूसरा योग्य अधिकारी नहीं है?
इस पर बहुत से लोगों ने सवाल उठाया कि इस्तीफा देने के तीन साल बाद कैसे उन्हें वापस लाया जा सकता है? इसके पीछे एक तकनीकी कारण बताया गया कि उनका इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ था। एक ऐसे व्यक्ति को जिसको आपने पीएसए में बंद किया, जो देश के विरोध में ट्वीट करता रहा हो, जो देश के विरोध में बोलता रहा हो, उसका इस्तीफा तीन साल में मंजूर नहीं हुआ और उसको फिर से नौकरी में बहाल किया जा रहा है। शाह फैसल ने अभी हाल ही में एक ट्वीट किया है जिसमें कहा है कि अपने आदर्शवाद के पीछे मैं बर्बाद हो गया। मतलब, वे जो कर रहे थे वह उनका आदर्श था, वह वही करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि उस चक्कर में मैंने जो भी कमाया था वह सब चला गया। यह अहसास उनको कब हुआ? क्या उन्होंने अपने आदर्श को छोड़ दिया है- या आदर्श बदल लिया है- या व्यावहारिक हो गए हैं? क्या अब जो करेंगे वह बच-बचाकर करेंगे? क्या करेंगे- किसी को पता नहीं। मेरी तरह आपमें से भी बहुत लोगों के मन में यह सवाल होगा आखिर शाह फैसल ही क्यों? क्या जम्मू-कश्मीर में या देश में कोई और IAS अधिकारी नहीं है जिसकी सेवा ली जा सके? जम्मू-कश्मीर कैडर के कोई और अधिकारी नहीं हैं जो शाह फैसल के बराबर की योग्यता रखते हैं? क्या शाह फैसल सबसे योग्यतम अधिकारी हैं जिनको इन सबके बावजूद वापस लिया जा रहा है।
अलगाववादी विचारधारा के हैं समर्थक
उन्होंने सरकार के खिलाफ बोल लिया, राजनीतिक पार्टी बना ली, चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी, हालांकि लोकसभा चुनाव नहीं लड़े। कहा कि अभी मैंने तैयारी नहीं की है। उसके बाद कहा विधानसभा का चुनाव लड़ूंगा। विधानसभा का चुनाव अभी हुआ नहीं है। इन सबके बावजूद शाह फैसल को वापस लेने का कारण क्या है? हो सकता है कि बहुत वाजिब कारण हो। इतना ही नहीं, धारा 370 को जब डायल्युट किया गया और 35ए को खत्म किया गया तो शाह फैसल ने कहा कि यह अनप्रेसिडेंटेड हॉरर है। इसके बाद अब या तो आप पिट्ठू बन कर रह सकते हैं या अलगाववादी हो सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में जिसको रहना है वह पिट्ठू, मतलब सरकार का चापलूस बन कर रहे, सरकार का वफादार बंन कर रहे या फिर अलगाववादी बन जाए। जिसका यह घोषित आदर्श हो उसको अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा में वापस क्यों लिया जाना चाहिए? इसका जवाब Jammu-Kashmir Administration को देना चाहिए और बताना चाहिए कि ऐसी कौन सी मजबूरी है- ऐसा कौन सा लाभ है- ऐसी क्या खासियत है शाह फैसल में- ऐसा क्या कर देंगे वे जम्मू-कश्मीर के लिए या जम्मू-कश्मीर की सरकार के लिए कि उनको वापस लिया जा रहा है। कुछ दिनों में उनकी बहाली हो जाएगी- उनको पद भी मिल जाएगा- हो सकता है वे उपराज्यपाल के सलाहकार भी बन जाएं, लेकिन सवाल फिर भी बना रहेगा।
शाह फैसल जब कहते हैं कि अपने आदर्श के चक्कर में उन्होंने सब कुछ गंवा दिया, तो उनकी यह निराशा, यह हताशा इसलिए नहीं है कि उनको लगा कि उन्होंने गलत कदम उठा लिया, जो कर थे वह गलत था। उनको इस बात का बहुत ज्यादा अफसोस है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने 5 अगस्त,2019 के बाद कोई बड़ा प्रोटेस्ट नहीं किया। जिस तरह से विरोध करना चाहिए था केंद्र सरकार के कदम का- वैसा विरोध नहीं किया। अब वो फिर से एडमिनिस्ट्रेशन में आ जाएंगे। अगर वह नुकसान करना चाहेंगे तो नुकसान करने की उनकी ताकत कई गुना ज्यादा होगी, जो बाहर रहकर बहुत कम होती। इसलिए मन में सवाल उठता है कि शाह फैसल में ऐसी क्या खूबी है कि तीन साल बाद उनको Indian Administrative Service में लाया जा रहा है? यह सवाल मेरे मन में भी है, आपके मन में भी होगा। इसका जवाब कहीं से मिलेगा या नहीं मिलेगा पता नहीं लेकिन Jammu-Kashmir Administration को उन्हें बहाल करने के बाद तो कम से कम बताना चाहिए कि ऐसी क्या खास वजह थी कि यह कदम उठाना पड़ा।