शिवचरण चौहान।
रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया भर में गेहूं और सूरजमुखी का संकट पैदा हो गया है। दुनिया के 48 से अधिक देश भारत के सामने याचक की मुद्रा में खड़े हैं कि उनके देश को गेहूं का निर्यात किया जाए। भारत में गेहूं की घरेलू जरूरत को देखते हुए इस बार गेहूं निर्यात पर मई में ही रोक लगा दी है। फ्रांस जैसे देश ने तो भारत को चेतावनी दी है कि अगर उस ने फ्रांस को गेहूं नहीं दिया तो संबंध अच्छे नहीं रहेंगे। यूक्रेन और रूस दुनिया भर को गेहूं निर्यात करते थे- सूरजमुखी का तेल निर्यात करते थे- किंतु युद्ध के चलते हैं यूक्रेन और रूस बर्बाद होने की स्थिति में पहुंच गए हैं। करीब 55 से 60 देशों को यूक्रेन गेहूं का निर्यात करता था।
वैश्विक संकट से भूख की समस्या
रूस की नाकेबंदी के कारण यूक्रेन का गेहूं बंदरगाहों पर पड़ा है। दुनिया में गेहूं के दामों में 60% तक उछाल आया है। गेहूं से बनी ब्रेड, बिस्कुट, नूडल्स, पास्ता, पिज्जा, बर्गर, डबल रोटी ,चपाती के दामों में तेजी देखी जा रही है। गेहूं के निर्यात पर रोक लगा देने से भारत में हजारों ट्रक गेहूं गुजरात के बंदरगाहों पर विदेश जाने के लिए ट्रकों में भरा खड़ा है। दुनिया में सबसे ज्यादा मांस, चावल और किसी ना किसी रूप में गेहूं खाया जाता है। वैश्विक संकट के कारण अनेक देशों में भूख की समस्या उत्पन्न हो गई है। महंगाई उच्च स्तर पर है। अनेक देश- इनमें बांग्लादेश और पाकिस्तान भी है- भारत की ओर आशा भरी नजरों से गेहूं के निर्यात का मार्ग देख रहे हैं। रूस और यूक्रेन के बाद चीन और भारत गेहूं उत्पादन के बड़े केंद्र बन चुके हैं। कनाडा भी गेहूं उत्पादन में आगे है। भारत के किसान इतना अधिक गेहूं उपजाते रहे हैं कि गेहूं बहुत सस्ती दरों पर बिकता रहा है और किसान आंदोलन करके गेहूं का समर्थन मूल्य तय करने के लिए सरकार पर दबाव डाल कर रहे हैं। वर्ष 2022 में जलवायु परिवर्तन के कारण मार्च में पड़ी अधिक गर्मी से गेहूं की पैदावार में कमी आई है। गेहूं का दाना पतला हो गया है।
भारत में पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान तथा कई अन्य राज्यों में तीन करोड़ हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में गेहूं की खेती की जाती है और इसकी भरपूर पैदावार होती है। फिर भी देश में बरसात की अनिश्चितता व खादों की अनुपलब्धता तथा सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने के कारण और मौसम की मार की वजह से गेहूं की पैदावार में कमी-बेसी होती रहती है। भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के विजन 2050 दस्तावेज के अनुसार 2050 तक भारत देश में 14 करोड़ टन गेहूं की आवश्यकता होगी।
गोधूम से गेहूं तक का सफर
विश्व में खाद्य संकट को देखते हुए गेहूं एक बार फिर चर्चा में हैं। सभी को मालूम है कि पिछले पचास साल से गेहूं दुनिया की भूख मिटाने के काम आ रहा है। गेहूं से रोटी, चपातियों से लेकर बिस्कुट, डबल रोटियां, ब्रेड, पिज्जा, बर्गर, पास्ता आदि खाने की चीजें बनती हैं। पिछले कई सालों से दुनिया के कृषि वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित थे कि दुनिया में गेहूं का उत्पादन प्रतिवर्ष ढाई से तीन प्रतिशत गिर रहा है, जबकि आबादी रोज व प्रतिक्षण बढ़ रही है। वैज्ञानिक अब तक गेहूं का विकल्प नहीं खोज पाए हैं। अधिक रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग से गेहूं जहरीला होता जा रहा है और हर गांव में कैंसर के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। कुछ समय पूर्व गेहूं के बीज में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा चूहे व खरपतवारों के जीन मिलाने तथा ऐसे बीज बेचने के समाचार आए थे, जिसमें गेहूं का बीज एक बार ही प्रयोग करने के काम आ पाता है। किसान अपनी ही फसल का गेहूं यदि खेत में बोता है, तो वह उगता ही नहीं। विदेशी कम्पनियों ने गेहूं के बीज में चूहे की जीन डाल दिए हैं कि चूहों के विनाश के लिए सिर्फ उसी कम्पनी की चूहेमार दवा कारगर हो पाती है, जो कम्पनी गेहूं के बीज शोधित कर बेंचती है। भारत में पहले मनुष्यों को खाने के लिए जौ, बेझर व चने आदि अनाज का प्रयोग किया जाता था। गेहूं को संस्कृत में गोधूम कहा जाता है। कहते हैं पहले मनुष्य खाने में जौ और चने के आटे यानी बेझर की रोटियां खाता था। ज्वार व मक्के की रोटियां का उल्लेख भी प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। गेहूं को गोधूम घास कहा जाता था और जब गाएं जंगल से चरकर शाम को अपने गांव घर में आती थी तो मच्छरों को भगाने के लिए गेहूं के पौधों को जलाया जाता था। बाद में गायों के मच्छर भगाने के लिए जलाया जाने वाला यही गोधूम खाने के प्रयोग में आने लगा और गेहूं के नाम से मशहूर हो गया।
दुनिया भर में धाक
आज पीले, हल्के काले रंग के पेट में धारी वाले गेहूं की दुनिया भर में धाक है। विश्व में चीन गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया। इसके बाद रूस दूसरे नम्बर पर गेहूं उत्पादक देश है। यूक्रेन को गेहूं का ‘ब्रेड बास्केट’ कहा जाता था। भारत में पंजाब व हरियाणा में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन होता है। भारत में शीतकालीन गेहूं होता है। अमेरिका तथा कनाडा गेहूं के निर्यातक देश हैं। यहां शीत व बसंतकालीन गेहूं होता है। चीन का गेहूं जहां उसकी अपने देश की जनता के भरण-पोषण के काम आता है, वहीं कनाडा व अमेरिका और अब आस्ट्रेलिया गेहूं अन्य देशों को बेंचते भी हैं। भारत अभी तक कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया से गेहूं खरीदता रहा है। अब गेहूं उत्पादन में भारत न केवल आत्मनिर्भर हो गया है बल्कि निर्यात भी करने लगा है। यूरोप में फ्रांस, स्पेन, यूगोस्लाविया, रूमानिया, जर्मनी आदि प्रमुख गेहूं उत्पादक देश हैं। दक्षिण अमेरिका में अर्जेंटीना प्रमुख गेहूं उत्पादक देश हैं। दमिश्क एवं मैक्सिको में गेहूं शोध के अंतरराष्ट्रीय संस्थान हैं। ऑस्ट्रेलिया में मरे डालिंग नदी के किनारे गेहूं पैदा होता है। गेहूं विभिन्न जलवायु में सरलता से उगाया जा सकता है। दुनिया में शीतकाल तथा बसंतकाल में गेहूं बोया जाता है। भारत में शीतकालीन गेहूं होता है। जहां अत्यधिक सर्दी पड़ती है, वहां बसंत ऋतु में गेहूं बोया जाता है। मुलायम गेहूं आर्द्र क्षेत्रों में तथा कठोर गेहूं उष्ण क्षेत्रों में होता है। गेहूं की खेती गहन तथा विस्तृत पद्धतियों के द्वारा की जाती है। गेहूं 40 से 80 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में 16 डिग्री सेल्सियस तापमान तक में बोया जा सकता है। यह 3-4 डिग्री तापमान पर भी उग आता है किन्तु शून्य के नीचे तापमान जाने पर गेहूं नहीं जमता/ उगता। दोमट मिट्टी गेहूं के लिए उपयुक्त है। भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र प्रमुख गेहूं उत्पादक प्रदेश हैं। अकेले पंजाब व हरियाणा में जितना गेहूं पैदा होता है, उतना पूरे शेष भारत में नहीं पैदा होता। आज वैज्ञानिकों ने अगैती-पछैती गेहूं की सैकड़ों किस्में विकसित कर ली हैं और अभी शोध चल रहे हैं। भारत सरकार का कृषि मंत्रालय व राज्यों के कृषि मंत्रालयों में गेहूं की पैदावार को बढ़ाने के लिए योजनाएं बनाई जा रही हैं। गेहूं में सफेद फूल आता है, और फिर बालियां आ जाती हैं। हरी बालियां पकने पर सुनहरी हो जाती है। भारत में रबी में गेहूं पैदा होता है और अप्रैल से मई तक गेहूं खेतों से कटकर किसान के घर तक आ जाता है। रासायनिक खादों के प्रयोग से गेहूं के स्वाद व पौष्टिकता में कमी आई है। कीटनाशकों ने भी गेहूं में विशैले तत्व भर दिए हैं। गेहूं में अनेक रोग गेरुई यानी रेड रोट, लूजस्मट, व्हीटस्मट आदि रोग लगते हैं। काला गेहूं इंसान के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। बुंदेलखंड में होने वाला कठिया गेहूं भी पाचक होता है किंतु अब किसान इन्हें नहीं बोते हैं।
वैज्ञानिक शोध की जरूरत
अब समय आ गया है कि भारतीय कृषि वैज्ञानिक गेहूं पर शोध करें । गेहूं की ऐसी किस्म विकसित करें जिसके खाने से मधुमेह जैसी बीमारी न हो और कैंसर आदमी के शरीर के अंदर पनपने न पाए। सरकार मिट्टी परीक्षण का अभियान पूरे देश में चलाती है और किसानों की सलाह देती है कि कम से कम मात्रा में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग करें। अधिक मात्रा में कीटनाशकों, रासायनिक उर्वरकों को खेत में डालने से मिट्टी खराब हो जाती है और खेत बंजर हो जाते हैं। खेतों से केंचुए गायब हो गए हैं इसलिए गोबर वाली कंपोस्ट खाद ही खेत में डालनी चाहिए। हमें फिर प्राकृतिक कृषि की ओर लौटना होगा ताकि खेतों की मिट्टी खराब ना हो और हमारा गेहूं जहरीला ना हो।