apka akhbar-ajayvidyutअजय विद्युत ।

आखिर दिल की आवाज जुबां पर आ ही गई। कुछ दिन पहले फ्रांस में पैगंबर का कार्टून दिखाने पर एक शिक्षक का सिर काट लेने की घटना पर जाने माने शायर मुनव्वर राना ने जो कहा वह उनके दिल की गहराइयों से निकली आवाज है, ‘अगर मैं उस जगह होता तो वही करता।’ यकीन वह वही करते। जगह चाहे फ्रांंस हो या और कहीं। वह हिंसा की वकालत करते हुए इसे धार्मिक आधार भी देते हैं, ‘मजहब मां की तरह होता है।’ यहां राना का मजहब का आशय सीधे सीधे मेरा मजहब यानी इस्लाम से है… अभी इस बात को हम साबित भी करेंगे।


 

फ्रांस में एक टीचर ने क्लास में पैगम्बर मोहम्मद का कार्टून दिखाया, जिसके बाद एक छात्र ने उस टीचर का सिर कलम कर दिया। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने इसे इस्लामी आंतकवाद करार दिया और कहा कि इस्लाम हमारा भविष्य हथियाना चाहता है, जो कभी नहीं होगा। बस भारत समेत दुनियाभर के मुसलमानों में फ्रांस के खिलाफ गुस्सा उबल पड़ा। देखने को मिल रहा है।

राना कहते हैं, ‘आप विवाद को जन्म देकर लोगों को उकसा रहे हैं। मोहम्मद साहब का कार्टून बना कर उसे कत्ल के लिए मजबूर किया गया। उस स्टूडेंट की जगह मैं भी होता तो वही करता जो उसने किया।’ भले दूसरों के लिए कैसे भी हों लेकिन मुनव्वर राना के पूरे होशो हवास में निकले इन हृदय उद्गारों की सत्यता असंदिग्ध है। ‘मजहब मां की तरह होता है, अगर कोई आपकी मां का बुरा कार्टून बनाता है या गाली देता है उसका कत्ल करना गुनाह नहीं।’ दूसरे मजहब वालों के लिए वह ऐसी आजादी की पैरवी नहीं करते।

लेकिन मजे की बात यह कि अपने जीवन का सबसे बड़ा झूठ भी उसी आत्मविश्वास से बोलते हैं और चाहते हैं कि लोग उस पर भरोसा भी करें, ‘कोई अगर भगवान राम का विवादित कार्टून बनाएगा तो मैं उसका भी कत्ल कर दूंगा।’

बहरहाल मुनव्वर राना के खिलाफ लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में 2 नवंबर को एफआईआर दर्ज कराई गई। एफआईआर सब इंस्पेक्टर दीपक कुमार पाण्डेय ने दर्ज कराई जिसमें राना के बयान को विभीन्न समुदायों में वैमनस्यता फैलाने और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाला बताया गया।

पकड़ा गया राना का झूठ

दरअसल राम का नाम लेकर मुनव्वर राना हिंदुओं की आंखों में धूल झोंकना चाह रहे हैं। लेकिन मुनव्वर साहब आपने उस शख्स के खिलाफ तो एक शब्द तक न कहा जिसने इस देश में भारतमाता की नग्न तस्वीर बनाई। जिसने मां दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती को कला के नाम पर नितांत अभद्र रूप में प्रस्तुत किया। जिसे इस देश ने प्यार दिया, सम्मान दिया, करोड़ों की कीमत उसके बनाए चित्रों पर लुटाई। हां, यह हो सकता है वह व्यक्ति की आपके ही मजहब से था और जैसा कि डा. अम्बेडकर ने कहा भी है कि इस्लाम का भाईचारा केवल मुसलमानों के लिए है। आपकी इस चुप्पी पर किसी ने कुछ नहीं कहा लेकिन अपने मुंह से राम का नाम लेकर आपने लोगों को सही बात सामने लाने पर मजबूर किया है।

हुसैन भी हमारे नहीं रहे…

Maqbool Fida Husain | Widewalls

भारत का पिकासो कहे जाने वाले महान पेंटर मकबूल फिदा हुसैन (एमएफ हुसैन) के बारे में यह जानना जरूरी है कि उनको इस देश ने नाम, दाम सब दिया। उन्हें पद्मश्री, पद्मविभूषण, पद्मभूषण से नवाजा। लोग दीवाने थे। उनकी पेंटिंग्स करोड़ों में बिकती थीं। इतना ज्यादा प्यार करने वाले देश के साथ हुसैन ने क्या किया। कला के नाम पर बहुसंख्यक हिंदुओं की आस्थाओं और भावनाओं को आहत करते हुए उनके देवी-देवताओं के आपत्तिजनक व अभद्र चित्र बनाए, भारतमाता तक को नग्न युवती के रूप में दिखाया। कला की प्रगतिशीलता के अलमबरदार हुसैन इतने क्रांतिकारी थे कि अपने धर्म से जुड़े किसी भी प्रतीकों के बारे में उनकी कूची खामोश कैसे रह सकी।

भारत माता को  दिखाया नग्न

2006 में इंडिया टुडे पत्रिका के कवर पेज पर छपी एक तस्वीर में भारत माता को एक नग्न युवती को रूप में दिखाया जो भारत के नक्शे पर लेटी हुई थी। उसके पूरे शरीर पर भारत के राज्यों के नाम थे। …अपना मजहब अपनी मां होती- तो बात कुछ और थी। भारत माता से उनका ऐसा कोई नाता न था।

हिंदू देवी-देवताओं की अश्लील पेंटिंग्स

मां दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की नग्न तस्वीरें बनार्इं। उन्होंने ये पेंटिंग्स 1970 में बनाई थीं। इन पेंटिंग को ‘विचार मीमांसा’ पत्रिका ने ‘मकबूल फिदा हुसैन- पेंटर या कसाई’ शीर्षक से 1996 में छापा था।

आप सोच सकते हैं कि अगर इस्लाम के संबंधित किसी प्रतीक पर ऐसा कुछ हुआ होता तो क्या हो जाता? लेकिन यह वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश देने वाला भारत था, बस उन्हें कड़ी आलोचना का शिकार होना पड़ा। हिंदू देवी-देवताओं की अश्लील पेंटिंग बनाने के विरोध में हुसैन के खिलाफ देश भर में कई आपराधिक मामले दर्ज हुए। अदालतों ने वारंट जारी किए। हुसैन ने 2006 में भारत छोड़ दिया और लंदन और दोहा में रहने लगे। 2010 में उन्हें कतर की नागरिकता मिल गई। 9 जून 2011 को लंदन में उनकी मृत्यु हो गई।

इस पूरे मामले पर मुनव्वर राना की एक पंक्ति की बाइट आपको नहीं मिलेगी।

पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैं

फ्रांस को लेकर मुनव्वर राना के बयान पर कुमार विश्वास ने ट्विटर पर जावेद अख़्तर एक शेर रखा है- नर्म अल्फाज भली बातें मोहज्जब लहजे, पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैं। इसके साथ ही उन्होंने डिस्लाइक यानी नापसंद की इमोजी भी लगाई है। कुमार विश्वास की प्रतिक्रिया इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने तमाम बड़े मुशायरों- कवि सम्मेलनों में राना के साथ स्टेज शेयर किया है। कुमार विश्वास उन्हें बहुत सम्मान देते रहे हैं और मुनव्वर राना भी कई बार कह चुके हैं कि कुमार विश्वास मेरे बेटे जैसे हैं।

ट्विटर पर अंजली सिंह लिखती हैं, ‘एमएफ हुसैन ने देवताओं की अश्लील फोटो बनार्इं। क्या कभी किसी हिन्दू ने उनका सिर कलम किया। बॉलीवुड में हमेशा ही हिन्दू धर्म का मजाक बनाया गया- क्या किसी ने कुछ कहा। बस इस्लाम के खिलाफ बोलने दो तो हत्या कर दी जाती है। भारत ने इतना कुछ दिया लेकिन आज मजहब से ऊपर कुछ नहीं है इन लोगों के लिए।


 

इस्लामी देशों सरीखी राजनीति दूसरे देश भी करें तो…

समरेंद्र सिंह ।

कतर के दोगले नेता बयान दे सकते हैं। मलेशिया का सबसे ताकतवर शख्स कह सकता है कि मारने-काटने का अधिकार है। पाकिस्तान का हुक्मरान बोल सकता है। वहां संसद प्रस्ताव पारित कर सकती है। दुनिया के तमाम इस्लामिक देशों के हुक्मरानों को इस्लाम के पक्ष में बंदर की तरह उछलने कूदने का अधिकार है। लेकिन किसी ऐसे देश के हुक्मरान को अपने धर्म के पक्ष में बोलने का अधिकार नहीं है जहां इस्लाम अल्पसंख्यक है। उन्हें अपनी जनता के पक्ष में बोलने का अधिकार नहीं अगर वह बात इस्लाम की भावना को आहत करती हो।


 

धर्म की जिस तरह की राजनीति ये इस्लामिक देश करते हैं, अगर वैसी राजनीति तमाम अन्य देशों के लोग करने लगे तो कयामत आ जाएगी। दो दिन पहले मेरे एक दोस्त ने कुछ लिखा और दूसरे दोस्त ने शेयर किया, उस पर खुद को वामपंथी कहने वाले कुछ दोगले किस्म के मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने उसे आतंकवादी करार दे दिया। इनकी कमाल की धर्मनिरपेक्षता है। जो हल्की सी बात पर तेल लेने चली जाती है। ये मुस्लिम बुद्धिजीवी भी किसी आतंकवादी से कम नहीं हैं।

मैक्रों ने बिल्कुल सही कहा

कई बार जब हम संकट में होते हैं तो आस-पास सभी को संकट में डालते हैं। यह स्वभाविक बात है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने जो कहा है वो बात बिल्कुल सही है। ये संकट इस्लाम का संकट है। इस्लाम को इससे बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए। फ्रांस की घटना पर भारत में जो लोग लिख रहे हैं, उनमें से बहुतों को सलाह दी जा रही है कि घटना फ्रांस में हुई है, भारत में नहीं हुई है, इसलिए इस्लामोफोबिया बढ़ाने की जरूरत नहीं है। लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति के बयान के खिलाफ यहां पर सड़कों पर मुसलमान निकल सकते हैं। और वो सही है! बस कोई उस बयान के समर्थन में कुछ नहीं लिख सकता। अगर लिखेगा तो वो धर्मनिरपेक्ष नहीं रहेगा। ये बेवकूफी भरी और बेहूदी बात है। मैं भारत के मुस्लिम बुद्धिजीवियों की इस दलील का खुल कर विरोध करता हूं। उनकी बुजदीली और मौकापरस्ती इस देश के गरीब मुसलमानों को भारी पड़ रही है। ये इतने कायर और कट्टर नहीं होते तो आज संघ का इतना विस्तार नहीं होता।

(सोशल मीडिया से)


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