(आजादी विशेष)
इतिहासकार नागेंद्र सिंह बताते हैं कि जब छात्रों का बड़ा हुजूम न्यायालय के सामने विरोध प्रदर्शन करने पहुंचा तो उन्हें तितर-बितर करने के लिए लाल बाजार स्थित तत्कालीन अंग्रेजी पुलिस मुख्यालय से सैकड़ों सशस्त्र पुलिसकर्मियों ने छात्रों पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया। उसी में एक अंग्रेज सार्जेंट विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर बर्बर अत्याचार कर रहा था जिस पर नजर पड़ते ही सुशील कुमार सेन हमलावर हो गए और उसे जमीन पर पटक कर अस्त्र-शस्त्र छीन लिया। उसे इतना पीटा कि वह लहूलुहान होकर भागने को मजबूर हो गया। उनकी बहादुरी पर खुश होकर बंगाल के तत्कालीन राष्ट्रवादी नेता सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने उन्हें सत्येंद्र नाथ बोस स्वर्ण पदक भेजा।
क्रांतिकारियों की सबसे बड़ी सहायक थी दुर्गा भाभी, अंग्रेज भी मानते थे आयरन लेडी
उक्त पुलिस अधिकारी को पीटने के अपराध में प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की अदालत ने सुशील कुमार पर मुकदमा चलाया और 15 बेंत लगाने की सजा दी। उस समय फोर्ड देशभक्त क्रांतिकारियों को कठिन सजा देने के लिए कुख्यात था। इस घटना के बाद किंग्सफोर्ड की हत्या की योजना बनाई जाने लगी और हथियार जुटाने का काम शुरू कर दिया गया। इतिहासकार नागेंद्र नाथ सिन्हा बताते हैं कि इसकी मुख्य जिम्मेदारी सुशील कुमार सेन को मिली थी। लेकिन तभी अलीपुर बम ब्लास्ट केस में उन्हें 1908 में गिरफ्तार कर लिया गया। उसमें सुशील कुमार के साथ कन्हाई लाल भट्टाचार्य, सत्येंद्र नाथ बसु, उल्लासकर दत्त, उपेन बनर्जी समेत अन्य क्रांतिकारियों को पकड़ा गया था। इन्हें काल कोठरी में भेज दिया गया जहां सात साल तक इन्हें जेल की यातनाएं सहनी पड़ीं।
उसके बाद सुशील कुमार सेन रिहा हुए और उन्हें पता चला कि तब कोलकाता पुलिस के एक इंस्पेक्टर सुरेश मुखर्जी क्रांतिकारियों को लगातार पकड़ कर उन पर मुकदमा चलवा रहा था। सुशील ने लक्ष्य निर्धारित किया और सुरेश मुखर्जी को गोलियों से भून दिया। पुलिस एड़ी चोटी का जोर लगाती रही लेकिन सुशील को पकड़ नहीं पाई।
इसके बाद गदर पार्टी के आह्वान पर हथियारों की आपूर्ति के लिए एक राजनीतिक डकैती की योजना बनाई गई। 30 अप्रैल 1915 को नदिया जिले के दौलतपुर थाना के प्रागपुर गांव में अंग्रेजों के सहायक रहे साहूकार हरिनाथ साहा की दुकान में राजनीतिक डकैती डाली गई। इसमें सुशील कुमार मुख्य भूमिका में थे। डकैती में सात हजार मूल्य की नगदी और जेवरात हाथ लगे। उस समय सात हजार रुपये की बड़ी कीमत होती थी। डकैती को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद क्रांतिकारी नाव में सवार होकर वापस लौट रहे थे तभी पुलिस ने इन क्रांतिकारियों पर फायरिंग कर दी। मुठभेड़ में सुशील कुमार को गोली लग गई जिसकी वजह से वह नाव पर ही बलिदान हो गए। तब उनकी उम्र महज 22 साल थी।
इधर, डकैती की वारदात में सुशील के साथ उनके क्रांतिकारी साथी आंसू लाहिरी, गोपेन रॉय, क्षितिज सान्याल और फनी राय शामिल थे। इन्होंने सुशील कुमार के पार्थिव शरीर को हुगली नदी में ससम्मान प्रवाहित किया। इसके बाद पुलिस ने इन सभी को गिरफ्तार कर लिया था। इन्हें मुकदमा चला कर कलापानी की सजा दी गई जिसके बाद इन सभी की जिंदगी अंडमान की जेल में बीती।
(एएमएपी)