यह दिन हमें याद दिलाता है कि आज हम जो कुछ भी हैं, वो सब इसी धरती से ही लिया हुआ है

apkaakhbarसद्‌गुरु ।

दुनिया के इस हिस्से में 14 जनवरी को मनाया जाने वाला मकर संक्रांति एक बेहद महत्वपूर्ण त्योहार है। संक्रांति का अर्थ है– गति या चाल। जीवन के रूप में हम जिसे भी जानते हैं, उसमें गति निहित है। सौभाग्य से हमसे पहले जो इस दुनिया में आए वह चले गए और जो लोग हमारे बाद आने वाले हैं, वे हमारे जाने का इंतजार कर रहे हैं– इस बारे में अपने मन में कोई शक मत रखिए। यह पृथ्वी भी गतिशील है, इसी गतिशीलता का नतीजा है कि इससे जीवन उपजा है। अगर यह स्थिर होती तो इस पर जीवन का होना संभव ही नहीं था। इसलिए इस सृष्टि में गतिशीतला– नाम की कोई चीज है, जिसमें हर प्राणी शामिल है, लेकिन अगर सृष्टि में गति है तो उस गति का विराम भी होना चाहिए। दरअसल, निश्चलता या स्थिरता की कोख से ही गति का जन्म होता है। जिसने अपने जीवन की निश्चलता का अहसास न किया हो, जिसने अपने अस्तित्व की स्थिरता को महसूस न किया हो, जिसने अपने भीतर और बाहर की निश्चलता को जाना न हो वह गति के चक्करों में पूरी तरह से खो जाएगा। गतिशीलता एक निश्चित बिंदु या सीमा तक ही अच्छी लगती है। यह ग्रह पृथ्वी बेहद सौम्य और खूबसूरत तरीके से घूम रही है– इसी वजह से मौसम बदलते हैं। कल को अगर यह अपनी गति बढ़ा दे और थोड़ा तेजी से घूमने लगे तो हमारा संतुलित दिमाग पूरी तरह से असंतुलित हो उठेगा और हर चीज नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। इसलिए गतिशीलता एक सीमा तक ही सुखद और अच्छी लगती है। एक बार अगर यह अपनी सीमा से बाहर निकल जाती है तो गतिशीलता एक मुसीबत बन जाती है।

दिखाई देते और महसूस होते हैं बदलाव

मकर संक्रांति के दिन राशिचक्र में महत्वपूर्ण बदलाव होता है। इस गतिशीलता से जो नए बदलाव होते हैं, वे हमें पृथ्वी पर दिखाई देते और महसूस होते हैं। यूं तो साल भर में कई संक्रांतियां होती हैं, लेकिन दो संक्रातियों का विशेष महत्व है, पहली मकर संक्रांति और दूसरी इससे बिल्कुल उलट जून महीने में होने वाली मेष संक्रांति। इन दोनों के बीच में कई संक्रांतियां होती हैं, हर बार जब राशि चक्र बदलता है तो इसे संक्रांति कहा जाता है, इस शब्द का मतलब हमें पृथ्वी की गतिशीलता के बारे में याद दिलाना, और हमें यह बताना है कि हमारा जीवन इसी गतिशीलता पर आधारित और पोषित है। अगर यह गतिशीलता रुक जाए तो हमारे जीवन से जुड़ा सब कुछ रुक जाएगा। हर 22 दिसंबर को अयनांत होता है, सूर्य के संदर्भ में जिसका मतलब होता है कि इस दिन पृथ्वी की गति या झुकाव अपनी चरमावस्था पर पहुंच जाता है। फिर इस दिन के बाद से गति उत्तर की ओर बढ़ने लगती है। इसके बाद धरती पर चीजें बदलनी शुरू हो जाती हैं। मकर संक्रांति के बाद से सर्दियां धीरे- धीरे कम होने लगती हैं।

एक समय ऐसा था, जब इंसान केवल वही खा सकता था, जो धरती उसे देती थी। इसके बाद हमने सीखा कि कैसे हम इस धरती से वो हासिल कर सकते हैं, जो हम चाहते हैं, यह प्रक्रिया कृषि कहलाई। जब हम शिकार करते थे या भोजन तलाशा और इकठ्ठा किया करते थे तो हमें वही मिलता था, जो वहां उपलब्ध होता था। यह कुछ ऐसा ही है कि जब आप अबोध शिशु होते हैं तो आपकी मां आपको जो देती है, बस आप वही खाते हैं। जब आप बच्चे होते हैं, तो आप अपनी मनचाही चीजों की मांग करने लगते हैं। फिर जब हम कुछ बड़े हो गए और वह मांगने और पाने लगे जो हम चाहते थे, लेकिन अभी भी आपको अपना मनचाहा सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना या जिस हद तक मां वह आपको देना चाहती है या देने की इच्छुक है।

इस पृथ्वी से हम जो पाते हैं, उस संदर्भ में इसकी गतिशीलता भी काफी महत्व रखती है। एक समय ऐसा था, जब इंसान केवल वही खा सकता था, जो धरती उसे देती थी। इसके बाद हमने सीखा कि कैसे हम इस धरती से वो हासिल कर सकते हैं, जो हम चाहते हैं, यह प्रक्रिया कृषि कहलाई। जब हम शिकार करते थे या भोजन तलाशा और इकठ्ठा किया करते थे तो हमें वही मिलता था, जो वहां उपलब्ध होता था। यह कुछ ऐसा ही है कि जब आप अबोध शिशु होते हैं तो आपकी मां आपको जो देती है, बस आप वही खाते हैं। जब आप बच्चे होते हैं, तो आप अपनी मनचाही चीजों की मांग करने लगते हैं। फिर जब हम कुछ बड़े हो गए और वह मांगने और पाने लगे जो हम चाहते थे, लेकिन अभी भी आपको अपना मनचाहा सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना या जिस हद तक मां वह आपको देना चाहती है या देने की इच्छुक है। अगर आप अपनी मांग को इस हद से ज्यादा खींचने की कोशिश करेंगे तो आपको वो सारी चीजें तो मिलेगी नहीं, हां कुछ और जरूर मिल सकता है। यही औद्योगिकीकरण कहलाता है। कृषि वह है, जिसमें आप अपनी मां से अपनी मनचाही देने की खुशामद करते हैं, जबकि औद्योगिकीकरण में आप अपनी मांगों से उसे विदीर्ण या छिन्न-भिन्न कर देते हैं। आप इसे अन्यथा न लें, मैं किसी चीज के खिलाफ नहीं बोल रहा हूं। मैं चाहता हूं कि आप उस तरीके या प्रक्रिया को समझें, जिससे हमारा दिमाग या इंसानी गतिविधियां एक स्तर से दूसरे स्तर तक संचारित हो रही हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि आज हम जो कुछ भी हैं, वो सब इसी धरती से ही लिया हुआ है। मैं देखता हूं कि आज दुनिया में हर तरफ लोग देने की बात कर रहे हैं। मुझे समझ नहीं आता कि वे कहां से ये सब दे रहे हैं। अगर आप कुछ कर सकते हैं तो वह है सिर्फ लेना- अब लेने को आप बेहद सौम्य या सभ्य तरीके से भी ले सकते हैं या फिर आप छीन सकते हैं। क्या आप इस दुनिया में अपनी संपत्ति के साथ कहीं और से आए हैं? आपके पास देने के लिए है क्या? आप सिर्फ ले सकते हैं। हर चीज आपको मिली हुई है। उसे समझदारी से ग्रहण करें, बस इतना ही काफी है।

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मकर संक्रांति को फसलों से जुड़े त्यौहार या पर्व के रूप में भी जाना व पहचाना जाता है। दरअसल, यही वह समय है, जब फसल तैयार हो चुकी है और हम उसी की खुशी व उत्सव मना रहे हैं। इस दिन हम हर उस चीज का आभार दर्शाते हैं, जिसने खेती करने व फसल उगाने में मदद की है। कृषि से जुड़े पशुओं का खेती में एक बड़ा योगदान होता है, इसलिए मकर संक्रांति का अगला दिन उनके लिए होता है। पहला दिन धरती का होता है, दूसरा दिन हमारा होता है और तीसरा दिन जानवरों व मवेशियों का। देखिए, उनकी जगह हमसे ऊपर इसलिए रखी गई है, क्योंकि हमारा अस्तित्व उन्हीं की वजह से है। वे हमारी वजह से नहीं हैं, हम उनकी वजह से हैं। अगर हम धरती पर नहीं होते तो वे सब आजाद और खुश होते। लेकिन वो अगर यहां नहीं होते तो हमारा जीवन नहीं चल पाता ।

भविष्य की योजना कैसे बनाएं

ये त्यौहार हमें याद दिलाते हैं कि हमें अपने वर्तमान और भविष्य को पूरी चेतनता और जागरूकता के साथ गढ़ने की जरूरत है। फिलहाल, हमने पिछले साल की फसल काटी है। अगली फसल को कैसे तैयार किया जाए, इसकी योजना खूब सोच-समझ कर बनाई जाती है, जिसमें जानवरों को भी विचार-विमर्श की प्रक्रिया में शामिल किया जाता है। आपको शहरों से दूर बसे गांवों में इस प्रक्रिया को देखना चाहिए। अब तो ऐसे गांव कम ही बचे हैं क्योंकि पिछले कुछ सालों में हर जगह सेल फोन, यहां तक कि इंटरनेट कियोस्क भी पहुंच गए हैं। मगर भारत के शहरों से दूर बसे इलाकों में आपको देखना चाहिए कि गांव में भावी फसलों की योजना कैसे बनाई जाती है। यह बहुत ही अद्भुत और शानदार चीज होती है। मुझे इसमें भाग लेने का सौभाग्य मिला है। ये बैठकें इस तरह की जाती हैं कि पशु भी वहां मौजूद हों। ऐसा नहीं है कि कोई उनसे पूछेगा कि क्या करना चाहिए, मगर वे भी इन बैठकों का एक अहम हिस्सा होते हैं। यह देखा जाता है कि गांव के पशु कैसे हैं, किस उम्र के हैं, कितने मजबूत हैं, कोई काम कर सकते हैं या नहीं। यह बहुत ही खूबसूरत और जीवंत प्रक्रिया होती है।

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ब्रह्मांडीय संबंध : संख्या 108 कई रूपों में अहम

मकर संक्रांति फसल काटने का त्यौहार है। मगर इसके खगोलीय और आध्यात्मिक महत्व भी हैं। यह कुछ योग अभ्यासों से उपजा है, जिन्हें आम लोगों ने ऐसे रूपों में अपनाया जो उनके लिए लाभदायक हो। यह समय योगियों के लिए सबसे अहम है, जब वे अपनी आध्यात्मिक प्रक्रिया में एक नई, ताजगी भरी कोशिश कर सकते हैं। इसी के अनुसार, पारिवारिक लोग भी अपने जीवन में जो कुछ भी कर रहे हों, उसमें एक नई कोशिश कर सकते हैं। योग प्रणाली के कई पहलू खगोलीय प्रणाली और मानव शरीर के बीच के संबंध के आधार पर विकसित किए गए ताकि पल-पल, हर मिनट, हर घंटे, हर दिन लगातार खगोलीय स्थितियों में आने वाले बदलाव का लाभ उठाया जा सके।

उदाहरण के लिए, संख्या 108 मानव शरीर और संपूर्ण सौर मंडल की रचना में कई रूपों में अहम है। पारंपरिक रूप से अगर आप कोई माला पहनते हैं, तो उसमें 108 मनके होते हैं। अगर आप किसी मंत्र का उच्चारण करते हैं या किसी ऊर्जा स्थल की प्रदक्षिणा करते हैं, तो वह 108 बार करना होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर किसी को मानव तंत्र पर पूरी महारत, पूरी दक्षता हासिल करनी है, तो उसे 108 चीजें करनी पड़ती हैं। मानव शरीर में 114 चक्र या बिंदु हैं, जहां नाड़ियां या ऊर्जा के प्रवाह मिलते हैं। इन 114 में से 2 शारीरिक ढांचे से बाहर हैं। शरीर के अंदर स्थित 112 चक्रों में से, असली मेहनत 108 पर करनी पड़ती है। अगर आप इन 108 को सक्रिय करने में कामयाब हो गए, तो बाकी के चार अपने आप सक्रिय हो जाएंगे। यह ग्रह प्रणाली में भी बहुत खूबसूरती से व्यक्त हुआ है। सूर्य का व्यास या डायामीटर पृथ्वी के व्यास या डायामीटर से 108 गुना है। सूर्य और पृथ्वी की दूरी सूर्य के व्यास से 108 गुना है। चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी चंद्रमा के व्यास से 108 गुना है। जिस पथ या कक्षा पर पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, उसमें पृथ्वी के 108 पद या अवस्थाएं आती हैं। पृथ्वी किसी माला के मनकों की तरह सूर्य के चारो ओर 108 स्थितियों में खुद को व्यवस्थित करती है। मकर संक्रांति पर सूर्य के चारों ओर 27 नक्षत्र या 108 पद पूरे होते हैं और एक नया चक्र शुरू होता है।

गतिशीलता का जश्न

यह फसलों का त्यौहार है। यह गतिशीलता के महत्व को रेखांकित करने का त्यौहार है। गतिशीलता के जश्न के लिए, वह गतिशीलता जो जीवन बनी; जो जीवन की प्रक्रिया और जीवन का आदि और अंत बनी। और उसी के साथ ‘शंकर’ शब्द आपको याद दिलाता है कि इस सबके पीछे जो है, वह है- शिव, जो पूर्ण निश्चल या अचल है, निश्चलता ही गति का आधार और मूल है। अगर सूर्य भी घूमने लगे तो हम मुसीबत में आ जाएंगे। वह गतिशील न होकर एक जगह अचल रहता है, इसलिए हर चीज की गतिशीलता अपने रास्ते पर रहती है। लेकिन उसकी स्थिरता या अचलता हमें इसलिए महसूस होती है क्योंकि हम सूर्य को पृथ्वी से देख रहे हैं, क्योंकि हो सकता है कि पूरा सौर मंडल गतिशील हो या पूरी आकाशगंगा गतिशील हो। इसलिए इन सबसे परे जो अंतरिक्ष है, वह इन सबको अपने में समाहित किए या थामे हुए है, वह भी पूर्ण रूप से स्थिर या अचल है। जब कोई इंसान अपने भीतर की स्थिरता से संबंध बनाने की कोशिश करता है, तभी वह गतिशीलता का आनंद जान सकता है, अन्यथा मनुष्य जीवन की गतिशीलता से घबरा जाता है। उनके जीवन में आना वाला हर बदलाव या परिवर्तन उनके लिए दुख या पीड़ा का कारण बनता है। इन दिनों, आज का तथाकथित आधुनिक जीवन ही ऐसा है, जिसके हर बदलाव में आपको पीड़ित होना तय है। जहां बचपन एक तनाव है, किशोरावस्था या युवावस्था उससे बड़ा दुख है, प्रौढ़ावस्था असहनीय है, जबकि बुढ़ापा डरा और सकुचा हुआ और मृत्यु या अंत किसी घोर आतंक या खौफ से कम नहीं। जीवन के हर स्तर या चरण पर कुछ न कुछ समस्या है और वह इसलिए, क्योंकि इंसान को बदलाव से दिक्कत है। दरअसल, वह समझना ही नहीं चाहता कि जीवन की असली प्रकृति ही बदलाव है। आप गतिशीलता का तभी आनंद ले पाएंगे या जश्न मना पाएंगे, जब आपका एक पैर स्थिरता में जमा होगा। अगर आपको स्थिरता का अहसास है, तो गतिशीलता आपके लिए सुखद अनुभूति होगी। अगर आपको पता ही नहीं कि स्थिरता क्या है या आपका उससे कोई संबंध ही नहीं है तो फिर गतिशीलता आपको हैरान कर सकती है। लोग इस गति के पीछे की चीजों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। कभी तारों को देखकर तो कभी अपने हाथों की लकीरों में और सभी प्रकार की आकृतियों के संकेतों को देखकर यहां तक कि चाय की पत्तियों में भी लोग किसी तरह से अपने जीवन की गतियों और चाल को समझना चाहते हैं। गतिशीलता के साथ यह संघर्ष, गतिशीलता के बारे में पीड़ा व उन्‍माद वगैरह इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि लोगों को स्थिरता का थोड़ा सा भी अनुभव नहीं है। अगर आपको स्थिरता का अहसास होगा तो गति आपको परेशान नहीं करेगी। यह वो चीज है, जो आपमें एक निश्चित लय पैदा करती है। हर लय की अपनी एक शुरुआत और एक अंत होता है, इसी तरह से हर गति की एक शुरुआत और एक अंत है। गति का अर्थ ही है, जो बदल सके या चलता-फिरता हो। जबकि निश्‍चलता का मतलब है जो हमेशा रहे। गतिशीलता का अर्थ है कैद और निश्‍चलता का मतलब है चेतना। मकर संक्रांति का पर्व यह याद दिलाता है कि गतिशीलता का उत्सव मनाना तभी संभव है, जब आपको अपने भीतर निश्चतला का अहसास हो।


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