आपका अख़बार ब्यूरो ।
भारतीय मंत्रों के वैज्ञानिक आधार को आज का आधुनिक विज्ञान मान्यता देने को विवश है- भले उसे पूरी तरह समझ पाना अभी उसकी सामर्थ्य से बाहर की बात है। मंत्रों की शक्ति यानी उनसे उत्पन्न होने वाले चेतना और ऊर्जा के आयामों को लेकर दुनिया के तमाम संस्थानों और विश्वविद्यालयों में शोध किए जा रहे हैं।
फड़फड़ाता रह गया मशीन का कांटा
विज्ञान की सीमा यह है कि प्रायोगिक परीक्षणों द्वारा अभी तक ज्ञात चीजों से आगे की बातें उसके दायरे से बाहर हैं। मंत्रों के उच्चारण के दौरान उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को क्वांटम मशीन से मापा जाता है और महामृत्युंजय मंत्र की ऊर्जा को मापने के दौरान ऊर्जा का स्तर इतना तीव्र था कि मशीन का कांटा अंतिम सीमा तक पहुंचकर फड़फड़ाता रह गया। ऊर्जा की उस तीव्रता को माप पाना फिलहाल इस मशीन के लिए असंभव था।
वस्तुत: चेतना, जो कि ऊर्जा की विवेकपूर्ण व संपूर्ण अभिव्यक्ति है, आज भी विज्ञान के लिए एक अबूझ पहेली है। विज्ञान ने कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस तो रच ली है, लेकिन चेतना को पढ़ पाना भी अभी दूर की बात है। चेतना की रचना को समझ पाने का तो प्रश्न भी नहीं उठता।
चेतना को समझा अवश्य जा सकता है। भारतीय योगी-मनीषी इसका अभ्यास सदियों से करते आए हैं। मुंगेर, बिहार स्थित दुनिया के प्रथम योग विश्वविद्यालय में मानसिक ऊर्जा के विविध आयामों को पढ़ने के लिए उच्चस्तरीय शोध जारी है।
दुनिया के पांच सौ वैज्ञानिक कर रहे शोध
दुनिया के चुनिंदा 50 विश्वविद्यालयों और क्वांटम फिजिक्स पर शोध करने वाली वैश्विक शोध संस्थाओं के 500 वैज्ञानिक इस शोध पर एक साथ काम कर रहे हैं, विषय है- टेलीपोर्टेशन ऑफ क्वांटम एनर्जी, यानी मानसिक ऊर्जा का परिचालन व संप्रेषण।
इस शोध के केंद्र में भारतीय योग व ध्यान परंपरा का नादानुसंधान अभ्यास भी है, जिसे नाद रूपी प्राण ऊर्जा यानी चेतना के मूल आधार तक पहुंचने का माध्यम माना जाता है। बिहार योग विश्वविद्यालय के परमाचार्य पदम भूषण परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती इस शोध में मुख्य भूमिका में हैं।
मंत्रों में समाई ऊर्जा पढ़ने का प्रयास
स्वामी निरंजन बताते हैं कि यह मंत्र विज्ञान भी शोध के केंद्र में है। प्रत्येक मंत्र के मानसिक व बाह्य उच्चारण से उत्पन्न ऊर्जा को क्वांटम मशीन के जरिये मापा गया है। मानसिक संवाद, परह्रद संवेदन या दूरानुभूति जिसे अंग्रेर्जी में टेलीपैथी कहते हैं, यह विधा भारतीय योग विज्ञान का विषय रही है। मानसिक ऊर्जा के परिचालन और संप्रेषण को वैज्ञानिक आधार पर समझने का प्रयास किया जा रहा है। स्वामी निरंजन कहते हैं, संभव है कि आने वाले कुछ सालों में एक ऐसा मोबाइल सेट प्रस्तुत कर दिया जाए, जिसमें न तो नंबर मिलाने की आवश्यकता होगी, न बोलने की और न ही कान लगाकर सुनने की।
सर्वाधिक ऊर्जावान महामृत्युंजय मंत्र
57 वर्षीय स्वामी निरंजनानंद सरस्वती बताते हैं कि क्वांटम मशीन में विविध मंत्रों के मानसिक और बाह्य उच्चारण के दौरान उनसे उत्पन्न ऊर्जा को क्वांटम मशीन के माध्यम से मापा गया। स्वामी निरंजन बताते हैं कि इस शोध के लिए विशेष रूप से तैयार की गई क्वांटम मशीन विज्ञान जगत में अपने तरह का अनूठा यंत्र है, जिसे मुंगेर स्थित योग विश्वविद्यालय के योग रिसर्च सेंटर में लाया गया।
इसके सम्मुख जब महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण किया गया तो इतनी अधिक ऊर्जा उत्पन्न हुई कि इसमें लगे मीटर का कांटा अंतिम बिंदु पर पहुंचकर फड़फड़ाता रह गया। गति इतनी तीव्र थी कि यह मीटर यदि अर्द्धगोलाकार की जगह गोलाकार होता तो कांटा कई राउंड घूम जाता। सामूहिक उच्चारण करने पर तो स्थिति इससे भी कई गुना अधिक आंकी गई। महामृत्युंजय मंत्र के अलावा, गायत्री मंत्र और दुर्गा द्वात्रिंश नाम माला का स्त्रोत अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न करने वाला साबित हुआ।
ऊर्जा का संकल्प शक्ति में रूपांतरण
परमहंस स्वामी निरंजन कहते हैं, ‘इन तीन मंत्रों का जप प्रतिदिन सुबह उठकर और रात्रि में सोने से पहले सात-सात बार अवश्य करना चाहिये। इनके पाठ या जप से उत्पन्न ऊर्जा को मानसिक संकल्प लेकर संकल्प शक्ति में परिवर्तित कर देने से वांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता है। महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से पूर्व सतत आरोग्य का संकल्प, गायत्री मंत्र से पहले प्रज्ञा के सुप्त क्षेत्रों को जागृत करने का संकल्प और दुर्गा द्वात्रिंश नाम माला के तीन बार स्त्रोत से पूर्व जीवन से दुर्गति को दूर करने, जीवन में शांति, प्रेम व सद्भाव की स्थापना का संकल्प लेना चाहिये।
चेतना का प्रवाह
स्वामी निरंजन कहते हैं, जहां ऊर्जा है, वहां गति होगी, वहां कंपन होगा, और कंपन से ध्वनि होगी। कुछ ध्वनियां हैं, जो हमारे कानों के श्रवण परास से नीचे हैं, तो कुछ उससे ऊपर। ये कंपन भौतिक या प्राणिक शरीर तक ही सीमित नहीं होते हैं, ये मन, भावना और बुद्धि जगत में भी विद्यमान होते हैं। जब हम चिंतन करते हैं तो मन के अंदर तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो कंपन और ध्वनियां पैदा करती हैं। भारतीय योग विज्ञान में इसे नाद कहा गया है। नाद का अर्थ है चेतना का प्रवाह।
विज्ञान भी इससे पूरी तरह सहमत है कि संसार की सभी चीजें कंपनीय ऊर्जा की सतत क्रियाएं हैं। यदि हम मानसिक-तरंग-प्रतिरूप को पुनसंर्योजति, पुनर्स्थापित और प्रेषित कर सकें, तब हम चेतना को अभिव्यक्त कर सकते हैं।