विरोध से पहले जम्मू कश्मीर की घटनाओं पर ध्यान देना जरूरी
प्रमोद जोशी।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने हाल में पश्चिम बंगाल, असम और पंजाब में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया है, जिसे लेकर राजनीतिक सवाल उठाए जा रहे हैं। खासतौर से पंजाब और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने इसकी आलोचना की है। इन राज्यों का कहना है कि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है, इसलिए बीएसएफ अधिकार के क्षेत्र में बढ़ोतरी राज्य सरकार की शक्तियों का उल्लंघन है। केन्द्र के इस कदम का विरोध करने के पहले देखना यह भी होगा कि इसके पीछे उद्देश्य क्या है। हाल में पंजाब और जम्मू-कश्मीर में हुई घटनाओं पर खासतौर से ध्यान देना होगा।
पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने ट्वीट कर कहा, ‘मैं अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगे 50 किलोमीटर के दायरे में बीएसएफ को अतिरिक्त अधिकार देने के सरकार के एकतरफा फैसले की कड़ी निंदा करता हूं, जो संघवाद पर सीधा हमला है। मैं केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस तर्कहीन फैसले को तुरंत वापस लेने का आग्रह करता हूं।’ वहीँ कांग्रेस के महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन में कहा, मुझे बताएँ कि क्या कारण है कि पंजाब जैसे प्रांत में आप आधे इलाक़े को 50,000 किलोमीटर में से 25,000 किलोमीटर में पंजाब की सरकार के अधिकार, वहाँ के पुलिस के अधिकार को छीन लेते हैं, आप पंजाब के मुख्यमंत्री से बात ही नहीं करते? आप बंगाल और असम के मुख्यमंत्रियों से, वहाँ की चुनी हुई सरकारों से अधिकार छीन लेते हैं, आप उनकी मीटिंग ही नहीं बुलाते, उनसे राय-मशविरा ही नहीं करते। क्या इस देश में लोकतंत्र, प्रजातंत्र, संघीय ढाँचा ऐसे चलेगा? सच्चाई ये है कि किसी ना किसी छद्म नाम से विपक्ष के अधिकारों को छीन रहे हैं और चुनी हुई सरकारों को वो पूरी तरह से चकनाचूर करने का षड़यंत्र कर रहे हैं।
सीमा पर बढ़ती गतिविधियाँ
दूसरी तरफ बीएसएफ के क्षेत्र-विस्तार के पीछे केन्द्र सरकार का मंतव्य है कि सीमा पर बढ़ती देश-विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए ऐसा करना जरूरी है। अब मजिस्ट्रेट के आदेश और वॉरंट के बिना भी बीएसएफ इस अधिकार क्षेत्र के अंदर गिरफ्तारी और तलाशी अभियान जारी रख सकता है। गृह मंत्रालय का दावा है कि सीमा पार से हाल ही में ड्रोन से हथियार गिराए जाने की घटनाओं को देखते हुए बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में विस्तार करने का कदम उठाया गया है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दावा किया, राजनीतिक रूप से यह बेहद संवेदनशील कदम है। बीएसएफ का मुख्य उद्देश्य सीमाओं की रक्षा करना और घुसपैठ को रोकना है। हाल के मामलों ने देखा गया है कि बीएसएफ सीमा रेखा की रक्षा करने में नाकाम रही है। इस कदम से बीएसएफ की तलाशी और जब्ती के दौरान उनका स्थानीय पुलिस और ग्रामीणों के साथ टकराव हो सकता है। बीएसएफ की ड्यूटी सीमा चौकियों के आसपास रहती है, लेकिन इन नई शक्तियों के साथ वे कुछ राज्यों के अधिकार क्षेत्र में भी काम करेंगे।
दूसरी तरफ सीमा सुरक्षा बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, इस कदम के बाद यदि हमारे पास किसी भी मामले में खुफिया जानकारी होगी, तो हमें स्थानीय पुलिस के जवाब का इंतजार नहीं करना पड़ेगा और हम समय पर निवारक कार्रवाई कर सकेंगे हैं। नई अधिसूचना के अनुसार, बीएसएफ अधिकारी पश्चिम बंगाल, पंजाब और असम में गिरफ्तारी और तलाशी ले सकेंगे। बीएसएफ को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), पासपोर्ट अधिनियम और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम के तहत यह कार्रवाई करने का अधिकार मिला है। असम, पश्चिम बंगाल और पंजाब में बीएसएफ को राज्य पुलिस की तरह ही तलाशी और गिरफ्तारी का अधिकार मिला है।
राज्य की सहायता करेंगे
बीएसएफ के डीजी पंकज कुमार सिंह का कहना है कि अब हम खतरनाक घुसपैठियों के खिलाफ बेहतर कार्रवाई कर पाएंगे। हमारे पास सिर्फ पासपोर्ट एक्ट, एनडीपीएस एक्ट, कस्टम्स एक्ट के तहत तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी का अधिकार होगा। हम घुसपैठियों के खिलाफ बेहतर कार्रवाई कर पाएंगे। राज्यों के पुलिस-प्रशासन को इससे परेशानी नहीं होगी, उल्टा उन्हें अपराधियों से निपटने में मदद ही मिलेगी। बीएसएफ किसी भी शख्स को यदि गिरफ्तार करेगी, तो वह उसे संबंधित राज्य की पुलिस को ही सौंपेगी और स्थानीय पुलिस उसके खिलाफ आरोप पत्र कोर्ट के सामने पेश करेगी।
बीएसएफ का गठन सन 1965 के पाकिस्तान युद्ध के बाद 1 दिसम्बर 1965 को किया गया था। सन 1971 के युद्ध में इस संगठन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सीमा-सुरक्षा के लिए कई प्रकार की व्यवस्थाओं से सुरक्षा बलों को लैस करना होता है। सन 1999 के करगिल-युद्ध के शुरूआती सन्देश इसी बल ने भेजे थे। उस दौरान ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में पाकिस्तान के वायरलैस सन्देशों को समझने में दिक्कतें थीं, क्योंकि पाकिस्तानी घुसपैठियों के सन्देश दरदी, बल्टी, पश्तो और फारसी जैसी भाषाओं में होते थे।
केन्द्रीय बल
सीमा सुरक्षा बल भारत के केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में से एक है, जिनका गठन मुख्य रूप से भारत के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ आन्तरिक खतरों से रक्षा के लिए किया गया है। ये पुलिस बल गृह मंत्रालय के अधिकार के अधीन हैं। सीएपीएफ में शामिल सुरक्षा बल निम्नलिखित हैं: सीमा सुरक्षा बल, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और सशस्त्र सीमा बल।
बीएसएफ का मुख्य कार्य पाकिस्तान और बांग्लादेश से लगी भारत की सीमा की रक्षा करना है। आईटीबीपी का मुख्य कार्य चीन के साथ लगी भारत की सीमा की रक्षा करना है और सशस्त्र सीमा बल नेपाल और भूटान के साथ लगी भारत की सीमा की रक्षा करता है। संवेदनशील प्रतिष्ठानों की सुरक्षा केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल और सीआरपीएफ के आतंकवाद विरोधी अभियानों के अधिकार क्षेत्र में है।
सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 के तहत सीमा सुरक्षा बल की शक्ति, कर्तव्यों और अधिकार क्षेत्र की सीमाओं का प्रावधान किया गया है। बीएसएफ एक्ट की धारा 139(1) केन्द्र सरकार और गृह मंत्रालय को बीएसएफ की अधिकार क्षेत्र की सीमा को परिभाषित करने की शक्ति देता है। बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र उन दस राज्यों और दो केन्द्र शासित प्रदेशों तक फैला है, जिनकी पाकिस्तान या बांग्लादेश के साथ सीमा जुड़ती है। इनमें मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम और जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के केन्द्र शासित प्रदेश शामिल हैं। इन राज्यों के भीतर, बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र अलग-अलग राज्यों के अनुसार अलग-अलग हैं।
क्षेत्राधिकार
बीएसएफ एक्ट, 1968 के तहत क्षेत्राधिकार की सीमा 2014 में जारी एक अधिसूचना में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के पूरे राज्य, गुजरात में सीमा से 80 किलोमीटर भीतर तक, राजस्थान में 50 किलोमीटर भीतर तक, पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में 15 किलोमीटर भीतर तक रेखांकित किया गया था। 2021 की अधिसूचना के माध्यम से 2014 की अधिसूचना में संशोधन किया गया है और पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में सीमा से 50 किलोमीटर भीतर तक बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार कर दिया गया है। पहले इन राज्यों में बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र 15 किलोमीटर तक सीमित था। गुजरात में बीएसएफ की अधिकार क्षेत्र की सीमा 80 किमी से घटाकर 50 किमी कर दी गई है।
केन्द्र सरकार सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 की धारा 139 (1) के तहत प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए समय-समय पर सीमा बल के परिचालन जनादेश के क्षेत्र और सीमा को अधिसूचित कर सकती है। धारा 139 (1) में प्रावधान है कि केन्द्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्देश दे सकती है कि भारत की सीमाओं से लगे ऐसे क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर, बल का कोई भी सदस्य अधिनियम के तहत ऐसी शक्तियों और कर्तव्यों का निर्वहन कर सकता है।
यह अधिनियम पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और बिक्री अधिनियम, विदेशी अधिनियम, फेमा, सीमा शुल्क अधिनियम, या किसी अन्य केन्द्रीय अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी संज्ञेय अपराध को निर्दिष्ट करता है। इसके अलावा, धारा 139 में प्रावधान है कि यदि केन्द्र सरकार राज्य अधिनियम के तहत बीएसएफ के सदस्यों को कोई शक्ति या कर्तव्य प्रदान करना या उन्हें लागू करना चाहती है, तो राज्य सरकार की सहमति आवश्यक है।
केन्द्रीय शक्तियाँ
धारा 139 की उप-धारा (3) में आगे यह अपेक्षा की गई है कि इस धारा के तहत पारित आदेश संसद के समक्ष रखे जाएं और दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाएं। इस प्रकार, बीएसएफ एक्ट की धारा 139 के पाठ से यह देखा जा सकता है कि केन्द्र सरकार के पास इन क्षेत्रों में सीमा सुरक्षा बल की अधिकार क्षेत्र की सीमा को बढ़ाने या घटाने की एकतरफा शक्ति है। केन्द्रीय अधिनियमों के तहत बढ़ी हुई शक्तियों के मामले में राज्य सरकारों के परामर्श या सहमति का कोई वैधानिक आदेश नहीं है। बीएसएफ एक्ट राज्य की सहमति को केवल तभी अनिवार्य करता है, जब प्रदत्त शक्तियां या कर्तव्य राज्य अधिनियम के तहत हों।
बीएसएफ की बढ़ी शक्तियों और संघीय ढांचा संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत, विधायी शक्तियों को केन्द्र और राज्यों के बीच संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची में विभाजित किया गया है। राज्य सूची (सूची 2) राज्यों को सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस पर विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान करती है। राज्य सूची की प्रविष्टि 2 निर्दिष्ट करती है कि पुलिस राज्य का कार्य है, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रविष्टि के बाद “सूची एक की प्रविष्टि 2ए के प्रावधानों के अधीन” शब्द आते हैं। सूची एक (संघ सूची) की प्रविष्टि 2ए में प्रावधान है, “किसी भी राज्य में नागरिक शक्ति की सहायता के लिए संघ के किसी सशस्त्र बल या संघ के नियंत्रण के अधीन किसी अन्य बल या किसी भी दल या किसी भी इकाई की तैनाती”।
संविधान को सरसरी तौर पर पढ़ने से ही स्पष्ट होता है कि सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस व्यवस्था पर राज्य की शक्ति पूर्ण प्रकृति की नहीं है। यह अधिकार संघ के किसी भी सशस्त्र बल की तैनाती के साथ जुड़ा हुआ है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि सशस्त्र बल की तैनाती की आड़ में राज्य की पुलिस व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता। केवल अनुच्छेद 246 और सीमा सुरक्षा बल अधिनियम के तहत अनुमत सीमा तक ही ऐसा किया जा सकता है।
अधिकारों का सवाल
यह भी ध्यान दें कि 2011 में सीमा सुरक्षा बल (संशोधन) विधेयक को इस इरादे से पेश किया गया था कि बीएसएफ को देश के किसी भी हिस्से में तलाशी लेने, जब्त करने और गिरफ्तार करने की शक्तियों प्रदान की जाएं। उस विधेयक में ‘भारत की सीमाओं से सटे’ शब्दों को छोड़ने का प्रयास की गया था। इस प्रकार देश के सभी राज्यों में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का प्रभावी ढंग से विस्तार किया गया था। वह विधेयक पेश नहीं हो पाया और अब तक लम्बित है। इस संबंध में नगा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं- राज्य सूची की प्रविष्टि एक और संघ सूची की प्रविष्टि 2A में ‘नागरिक शक्ति की सहायता’ अभिव्यक्ति का अर्थ है कि संघ के सशस्त्र बलों की तैनाती राज्य में नागरिक शक्ति को सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव को प्रभावित करने वाली स्थिति से निपटने में सक्षम करने के उद्देश्य से होगी, जिसके कारण राज्य में सशस्त्र बलों की तैनाती आवश्यक हो गई है।
सीमा सुरक्षा बल जैसे केन्द्रीय बलों के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के लिए केन्द्र सरकार की शक्ति निम्नलिखित शर्तों द्वारा सीमित है- एक, यह भारत की सीमाओं से सटे राज्यों के संबंध में होना चाहिए; दूसरा, यदि राज्य के कानूनों के संबंध में बढ़ी हुई शक्तियां हैं तो राज्य की सहमति आवश्यक है; तीसरा, अधिसूचना/आदेश संसद के समक्ष रखा जाता है और दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाता है और चौथा, भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन कि संघ बलों को राज्य की नागरिक शक्ति को प्रतिस्थापित करना या हटाना नहीं चाहिए। 2021 की अधिसूचना के लिए कानूनी चुनौती, यदि कोई हो, इस आधार पर होनी चाहिए कि इसका परिणाम राज्य में नागरिक शक्ति को प्रतिस्थापित करना है या यह सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 के धारा 139 (1) द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख ‘जिज्ञासा’ से)