जयंती रंगनाथन।
मैंने तो यही पाया है कि आमतौर पर हिंदुस्तानी लड़कियां सेक्स से जुड़ी अपनी कामनाओं, लालसाओं और दिक्कतों के बारे में बात तो करना चाहती हैं, पर उनसे नहीं जिसे वो जानती है।
किसी पत्रिका की एगोनी आंट या सेक्सोलॉजिस्ट से वो राय ले लेंगी, अपना नाम छिपा कर फोन पर बात कर लेंगी, पर जिनके साथ वो रहती है, उनसे वो खुल कर बात नहीं कर पाती। चाहे वो उसकी मां हो, बहनें हों या पति ही क्यों ना हो। थोड़ा बहुत दोस्तों से शेयर कर लेगी, पर यहां भी हमेशा यह डर बना रहता है कि उसके बारे में कोई जजमेंटल ना हो जाए।
औरतें अपने पुरुष साथी से ज्यादा मुखर
सालों पहले मेरे एक युवा दोस्त ने दावे के साथ कहा था कि अपने कस्बे में उसके अपनी सभी भाभियों, पड़ोसिन आंटियों और मोहल्ले में अकेली रहने वाली, विधवा या तलाकशुदा औरतों से उसके संबंध रहे हैं। हम एक लेख के विषय में बात कर रहे थे और उसने कहा था कि शहरी लड़कियां सेक्स को ले कर उतना एक्सपेरिमेंट नहीं करती, जितना छोटे शहर या गांव-कस्बों की करती है। मैंने उसकी बात पर पूरा यकीं नहीं किया। वो शख्स डीयू से पढ़ाई करने के बाद नौकरी करने कहीं बाहर चला गया। उसी लेख के सिलसिले में मैं अपोलो हॉस्पिटल के सेक्सोलॉजिस्ट से मिली थी। उन्होंने भी यही कहा था कि सेक्स के बारे में औरतें बात तो करना चाहती हैं, पर उन्हें सही प्लेटफॉर्म नहीं मिल पाता। उनका यह भी कहना था कि उनके पास जो भी कपल आते हैं, ज्यादातर केस में औरतें अपने पुरुष साथी के मुकाबले ज्यादा मुखर होती हैं।
पति के बेस्ट फ्रेंड से अफेयर
मेरी एक मुंबई की मित्र का अपने पति के बेस्ट फ्रेंड से अफेयर था। वो मुंबई से साल में दो बार दिल्ली आती, मेरे ऑफिस आ कर मुझसे मिलती और अपने पति से फोन पर मेरी बात करवाती। इसके बाद वो अपने प्रेमी के साथ कभी जयपुर तो कभी शिमला घूम-घाम कर दो-चार दिन बाद अपने घर लौट जाती। एक बार जब रात को हम दोनों साथ में थे, मैंने उससे पूछा कि क्या उसे इस अफेयर से डर नहीं लगता? उसने बड़े आराम से कहा कि इस अफेयर की वजह से वो अपने पति से अच्छे से निभा पाती है। उसने बताया कि वो अपने प्रेमी के साथ जितना खुल कर सेक्स कर पाती है, जी पाती है, अपने पति के साथ नहीं कर पाती। शुरू में पति को दोस्त बनाने की कोशिश की थी, पर हो नहीं पाया। पति और वो अकसर जब साथ भी रहते हैं तो बच्चों, इनलॉज, घर के लोन और दूसरे मसलों पर उलझे रहते हैं। उस शायराना तबीयत की दोस्त से कभी-कभी रश्क भी होता था कि कितनी मुलायमियत से वो दोनों रिश्ते जी रही है और जिंदगी को जज्ब कर रही है। ऐसी कई औरतें मिलीं, मुंबई की लोकल ट्रेन में, किसी टूरिस्ट जगह पर, सोशल मीडिया पर, जो अनजान थीं, पर जब बात करने लगे तो बड़े आराम से अपनी सेक्स जिंदगी के बारे में बोलने लगीं। एक तीसेक साल की युवती ने कहा था कि इस उम्र में जा कर वो अपनी देह के साथ एक बेहतर रिश्ता बनाने लगी है और अपने पति से फरमाइश करके अपनी हसरतें पूरी करने लगी है। एक लड़की ने कुछ सालों पहले लेटर लिखा था कि उसे सेक्स को ले कर अजब सी फेंटेसी है, वो चाहती है कि जब भी वो सेक्स करे, किसी अनजान आदमी के साथ करे और उस लड़की की आंखों पर पट्टी बंधी हो।
कमला दास की ‘मेरी कहानी’
सेक्स के बारे में ये बातें इसलिए क्योंकि मैंने कल और आज में मलयालम और अंग्रेजी की विवादास्पद और चर्चित साहित्यकार कमला दास की आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ पढ़ कर खत्म की। कमला दास एक धनाढ्य मलयाली परिवार में पैदा हुई, एक अच्छी जिंदगी मिली। 15 साल की उम्र में अरैंज्ड मैरिज के बाद पति के उग्र सेक्सुअल डिमांड ने उसे भीतर तक हिला दिया। लेकिन उसने प्यार करना और अपनी देह की चाहतों को मानने से इंकार नहीं किया। सेक्स उनकी जिंदगी में हमेशा ऊंचे पायदान पर रहा। हालांकि जिंदगी के अंतिम दिनों में उन्होंने यह मानने से भी इंकार नहीं किया कि सेक्स में उनकी रुचि कभी थी ही नहीं। पर अपने अंतिम प्रेमी के लिए वे हिंदू से मुसलमान भी बन गईं और कमला दास कमला सुरैया बन कर 2009 में दुनिया का अलविदा कह गईं।
कमला दास की जीवनी पर बनी फिल्म में एक समय विद्या बालन काम करने वाली थीं। बाद में उनके मना करने पर साउथ की अदाकारा मंजू वारियर ने यह फिल्म की। यह फिल्म मलयालम में आमी नाम से रिलीज हुई है और जी5 पर उपलब्ध है।
कमला दास की इस किताब से कुछ पंक्तियां कोट कर रही हूं: ‘अधिकतर शहरी औरतों की तरह मैंने भी कुछ समय के लिए व्यभिचार करने की कोशिश की थी, पर मुझसे इसमें मजा ना आया। मेरे प्रेमी का पतन शुरू हो चुका था। मैं तो अपना जीवन ही उस पर लुटा देना चाहती थी। उसके लिए राहत पाने को केवल एक ही लता कुंज बचा थ। मेरे अंगों के बीच के छोटे गुप्तघर में ही राहत पा सकता था वह।’
किताब को पढ़ने के बाद
इस किताब को पढ़ने के बाद देर तक सोचती रही, कमला दास ने जो जिंदगी जी, उस पर कतई टिप्पणी किए बिना, कि औरत अगर अपनी देह की चाहतों को पहचान लें और उन साजिशों को समझ लें जो उसकी कमजोरियों का फायदा उठाने के लिए उसकी देह का इस्तेमाल करते हैं, तो शायद जिंदगी के अंतिम दिनों में उसे कम ख़लिश रहेगी। (साभार)
(लेखिका ‘हिंदुस्तान’, नई दिल्ली में एक्जिक्यूटिव एडिटर हैं)