श्राद्ध क्या है, कौन कर सकता है …और किसलिए करते हैं?
लोपामुद्रा
1- श्राद्ध क्या है?
श्राद्ध प्रथा वैदिक काल के बाद शुरू हुई और इसके मूल में वायु पुराण के इस श्लोक की भावना है : ‘मेरे वे पितर जो प्रेत रूप हैं तिलयुक्त जौ के पिंडों से तृप्त हों, साथ ही सृष्टि में हर वस्तु ब्रह्मा से लेकर तिनके तक चर हो या अचर मेरे द्वारा दिए जल से तृप्त हो।’
2- श्राद्ध के मुख्य देवता कौन हैं?
वसु, रुद्र तथा आदित्य ये श्राद्ध के देवता हैं।
3- श्राद्ध किसका किया जाता है… और क्यों?
हर मनुष्य के तीन पूर्वज पिता, दादा और परदादा क्रमशः वसु, रुद्र और आदित्य के समान माने जाते हैं। श्राद्ध के वक्त वे ही सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि समझे जाते हैं। समझा जाता है कि वे श्राद्ध कराने वालों के शरीर में प्रवेश करते हैं। और ठीक ढंग से किए श्राद्ध से तृप्त होकर वह अपने वंशधर को सपरिवार सुख समृद्धि और स्वास्थ्य का वरदान देते हैं। श्राद्ध के बाद उस दौरान उच्चरित्र मंत्रों तथा आहुतियों को वे सभी पितरों तक ले जाते हैं।
4- श्राद्ध कितनी तरह के होते हैं?
नित्य, नैमित्तिक और काम्य। नित्य श्राद्ध, श्राद्ध के दिनों में मृतक के निधन की तिथि पर, नैमित्तिक श्राद्ध किसी विशेष पारिवारिक मौके (जैसे पुत्र जन्म पर) और काम्य श्राद्ध विशेष मनौती के लिए कृतिका या रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है।
5- श्राद्ध कौन-कौन कर सकता है?
आमतौर पर पुत्र ही अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते पाए जाते हैं लेकिन शास्त्रानुसार ऐसा हर व्यक्ति जिसने मृतक की संपत्ति विरासत में पाई है उसका श्राद्ध कर सकता है। यहां तक की विद्या की विरासत से लाभान्वित होने वाला छात्र भी अपने दिवंगत गुरु का श्राद्ध कर सकता है। पुत्र की अनुपस्थिति में पौत्र या प्रपौत्र श्राद्ध करते हैं। निसंतान पत्नी को पति द्वारा, पिता द्वारा पुत्र को और बड़े भाई द्वारा छोटे भाई को पिंड नहीं दिया जा सकता। किंतु कम उम्र का ऐसा बच्चा जिसका उपनयन ना हुआ हो पिता को जल देकर नवश्राद्ध कर सकता है। शेष कार्य पिंडदान, अग्नि, होम उसकी ओर से कुल पुरोहित करता है।
6- श्राद्ध के लिए उचित और वर्जित पदार्थ क्या है?
श्राद्ध के लिए उचित द्रव्य है : तिल, माष, चावल, जौ, जल, मूल (जड़युक्त सब्जी) और फल। तीन चीजें शुद्धि कारक हैं : पुत्री का पुत्र, तिल और नेपाली कंबल। श्राद्ध करने में तीन बातें प्रशंसनीय हैं : सफाई, क्रोध हीनता और चैन (त्वरा- शीघ्रता का ना होना) श्राद्ध में अत्यंत महत्वपूर्ण बातें हैं : अपरान्ह का समय, कुशा, श्राद्ध स्थलों की स्वच्छता, उदारता से भोजन आदि की व्यवस्था और अच्छे ब्राह्मणों की उपस्थिति।
कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ जो श्राद्ध में नहीं लगते इस प्रकार हैं : मसूर, राजमा, कोदों, चना, कपित्थ, अलसी (तीसी), सन, बासी भोजन और समुद्र जल से बना नमक। भैंस, हरिणी। ऊंटनी, भेड़ और एक खुर वाले पशुओं का दूध भी वर्जित है। पर भैंस का घी वर्जित नहीं। श्राद्ध में दूध दही और घी पितरों के लिए विशेष दृष्टि कारक विशेष तुष्टि कारक माने गए हैं।
7- श्राद्ध में कुश तथा तिल का क्या महत्व है?
दर्भ या कुश को जल और वनस्पतियों का सार माना गया है। माना यह भी जाता है कि कुश और तिल दोनों विष्णु के शरीर से निकले हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु, महेश उसमें क्रमशः जड़, मध्य और अग्र भाग में रहते हैं। कुश का अग्र भाग देवताओं का, मध्य मनुष्यों का और जड़ पितरों का माना गया है। तिल पितरों को प्रिय और दुष्ट आत्माओं को दूर भगाने वाले माने गए हैं। माना गया है कि बिना तेल बिखेरे श्राद्ध किया जाए तो दुष्ट आत्माएं हवि उठा ले जाती हैं।
8- अत्यंत गरीब व्यक्ति श्राद्ध कम खर्चे में कैसे करें?
विष्णु पुराण के अनुसार दरिद्र लोग केवल मोटा जंगली साग-पात-फल तथा न्यूनतम दक्षिणा, वह भी ना हो तो 7 या 8 तिल अंजलि में जल के साथ लेकर ब्राह्मणों को दे दें। या किसी गाय को दिन भर घास खिला दें। अन्यथा हाथ उठा कर दिक्पालों और सूर्य से याचना करें कि मैंने हाथ वायु में फैला दिए हैं मेरे पितर मेरी भक्ति से संतुष्ट हों।
9- पिंड क्या है उनका अर्थ क्या है?
श्राद्ध के दौरान पके हुए चावल, दूध और तिल मिश्रित जो पिंड बनाते हैं उसे सपिंडीकरण करण कहते हैं। पिंड का अर्थ है शरीर। यह एक पारंपरिक विश्वास है जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढ़ी के भीतर मातृ कुल तथा पितृ कुल दोनों में पहले की पीढ़ियों के संबंधित गुणसूत्र मौजूद होते हैं। चावल के पिंड जो पिता, दादा और परदादा तथा पितामह के शरीरों के प्रतीक हैं, आपस में मिला कर फिर अलग बांटते हैं। यह प्रतीकात्मक अनुष्ठान जिन जिन लोगों के गुणसूत्र (जींस) श्राद्ध करने वाले की अपनी देह में हैं, उनकी तृप्ति के लिए होता है। इस पिंड को गाय, कौओं को देने से पहले पिंडदान करने वाला सूंघता भी है। अपने यहां सूंघना यानी आधा भोजन करना माना गया है। इस तरह श्राद्ध करने वाला पिंडदान के पहले अपने पितरों की उपस्थिति को खुद अपने भीतर भी ग्रहण करता है।
10- इस पूरे अनुष्ठान का अर्थ क्या है?
अपने दिवंगत बुजुर्गों को हम दो तरह से याद करते हैं : स्थूल शरीर के रूप में और भावनात्मक रूप से। स्थूल शरीर तो मरने के बाद अग्नि या जल प्रवाह को भेंट कर देते हैं, इसलिए श्राद्ध करते समय हम पितरों की स्मृति- उनके ‘भावना शरीर’- की पूजा करते हैं ताकि वे तृप्त हों, और हमें सपरिवार अपना स्नेह पूर्ण आशीर्वाद दें।