उसकी जिन्दगी की दिलचस्प कहानी सुने बिना आप पेरिस को नहीं समझ सकते

दयाशंकर शुक्ल सागर।

पेरिस में नोट्रे-डेम एक मशहूर जगह है। यहां मेट्रो, बस, ट्रेन, ट्राम ये सारे स्टेशन हैं।  पेरिस के बीच में बना नोट्रे-डेम दरअसल एक खूबसूरत मध्यकालीन कैथोलिक कैथेड्रल है। 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के बाद, नोट्रे-डेम और फ्रांस में पादरी की बाकी संपत्ति को जब्त कर लिया गया और उसे सार्वजनिक संपत्ति बना दिया गया था। लेकिन फ्रेंच गोथिक वास्तुकला से बना इन गिराजाघर ने मुझे सबसे ज्यादा इसलिए प्रभावित किया क्योंकि यहां मेरे हीरो नेपोलियन का राजतिलक हुआ था और उसने अपनी प्रेमिका को महारानी का ताज पहनाया था। इस चर्च ने मेरा ध्यान इसलिए भी खींचा क्योंकि मेरे प्रिय फ्रेंच लेखक, विक्टर ह्यूगो ने इस चर्च पर एक पूरा उपन्यास लिख दिया जिसका नाम ही था-नोट्रे-डेम डे पेरिस। अंग्रेजी में ये उपन्यास ‘द हंचबैक ऑफ नोट्रे-डेम’ (नोट्रे-डेम का कूबड़ा) के नाम से जाना जाता है। ये एक मध्यकालीन प्रेम कथा है जो नोट्रे-डेम चर्च के इर्द गिर्द बुनी गई। कहते हैं नेपोलियन के छोटे से शासनकाल के बाद इस चर्च ढहाने की नौबत आ गई थी लेकिन नेपोलियन की सदी में जन्में फ्रेंच लेखक ह्यूगो ने ये उपन्यास लिखकर उपेक्षित पड़े इस चर्च को बचा लिया। इसके बाद जो चर्च बना वह पेरिस आने वाले सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया। 2018 में नोट्रे-डेम में लगी भीषण आग ने इसके एक बड़े हिस्से को बर्बाद कर दिया। जब मैं यहां पहुंचा तो इसे फिर भव्य बनाने का प्रोजेक्ट जोर शोर से चल रहा था।

तो इस चर्च के बहाने कहानी शुरू करते हैं नेपोलियन की। क्योंकि नेपोलियन की जिन्दगी की दिलचस्प कहानी सुने बिना आप पेरिस को नहीं समझ सकते। पेरिस शहर के कई महलों और राजप्रसादों में नेपोलियन के जीवन की कथाएं आज भी शानदार चित्रकारी में जिन्दा हैं। दुनिया की मशहूर फ्रांसीसी क्रान्ति ज्यादा लम्बी नहीं चली। फ्रांस में राजशाही का अंतिम संस्कार करने के बाद यहां 1892 में लोकतंत्र की स्थारपना हुई। देश में एक संविधान बना। लेकिन लोकतंत्र के नायक सत्ता की चकाचौंध में इतने अंधे हो गए कि एक-एक करके क्रान्ति के सारे बड़े नायकों को ठीक उसी तरह चौराहे पर फांसी देकर मार डाला गया जिस तरह उनके राजा लुई सोलहवें को मारा गया था। कुछ लोग कहते हैं कि ये एक बेगुनाह राजा की हत्या का शाप था।  ‘प्लेस डे ला रिवोल्यूशन’ जहां राजा को मारा गया था वहां दस साल के अंदर तकरीब 40 हजार क्रान्तिकारियों की गर्दन काटी गई। कहते हैं फांसी का वह तख्ता खून के कीचड़ से सन गया था। गला काटने की ब्लेड पर खून की मोटी परतें जम गई थी जो एक झटके से अगली गर्दन नहीं काट पा रही थी।

उम्र मे 6 साल बड़ी विधवा जोसेफिन

अराजकता के इस माहौल में सेनापति नेपोलियन फ्रांस के लिए पड़ोसी देशों की जंगें जीत रहा था। नेपोलियन का जन्म कोर्सिका में मामूली इतालवी परिवार में हुआ था। वह फ्रांसीसी सेना में एक तोपखाने का अफसर बना। जब 1789 में फ्रांसीसी क्रांति भड़की तो सेना में उसका तेजी से प्रमोशन हुआ और केवल 24 साल की उम्र में वह सेना में जनरल बन गया। 26 वर्ष की उम्र में उसने ऑस्ट्रियाई लोगों के साथ अपना पहला सैन्य अभियान शुरू किया। और लगातार जंगे जीत कर वह देखते-देखते युद्ध नायक बन गया। 1798 में उसने मिस्र में एक सैन्य अभियान का नेतृत्व किया। अगले साल की सर्दियों में उसने एक तख्तापलट किया और फ्रांसीसी रिपब्लिक के पहला कौंसल बन गया। नेपोलियन बेहद महत्वाकांक्षी था और युद्ध का राष्ट्रनायक भी। क्रान्ति की अराजकता में बहुत जल्द वह फ्रांस का हीरो बन गया। लोग लोकतंत्र के नाम पर नेताओं के ड्रामे से बीस साल में ही ऊब गए थे। 1804 में नेपोलियन फ्रांस का राजा बन गया। फ्रांसीसी क्रान्ति के बाद वह पहला राजा था। लेकिन उससे पहले ही 32 साल की विधवा जोसेफिन जो नेपोलियन से उम्र मे 6 साल बड़ी थी उसकी जिन्दगी में प्रेमिका बन कर दाखिल हो चुकी थी। जोसेफिन का पति क्रान्ति की अराजकता का शिकार हुआ था। उसे भी मौत के घाट उतार दिया गया था। जोसेफिन, युवा, खूबसूरत और रसूखदार थी। फ्रांस के कई राजनेताओं से उसकी दोस्ती थी। वे सब उसे ‘रोज’ के नाम से जानते थे, क्योंकि जोसेफिन को गुलाबों से प्यार था। उसके घर के बागीचे में दुनिया भर की गुलाब की किस्में लगी थीं। नेपोलियन का भी सरकार में उठना बैठना था। इस दौरान उसे जोसेफिन से प्यार हो गया। कहते हैं कि लड़ाई के मैदान में वह रातों में जाकर जोसेफिन को खूबसूरत प्रेम पत्र लिखा करता था। लेकिन जोसेफिन उसके खतों का बहुत कम जवाब देती थी। नेपोलियन को जोसेफिन का ‘रोज’ नाम पसंद नहीं था। वह उसे जोसेफिन ही सम्बोधित करता था। यह वह समय था जब नेपोलियन बोनापार्ट उन्नत्ति के शिखर पर चढ़ रहा था। नेपोलियन इटली का सेना प्रमुख बना। उसी दौरान उसने 1796 में जोसेफिन से शादी कर ली।

Legend Love story of ''Napoleon and Josephine'' | Legend Love story

पॉलीन फोएरेस से इश्क

लेकिन जोसेफिन उससे शायद कभी प्यार नहीं कर पायी। नेपोलियन के इतालवी अभियान के दौरान जोसेफिन के एक लेफ्टिनेंट से प्रेम के किस्सा सामने आया। नेपोलियन को इस बारे में मालूम चला तो उसने जोसेफिन को एक खत लिखा, जो इंग्लैंड (जो फ्रांस का जन्मजात शत्रु-देश था) के हाथ लग गया। नेपोलियन का मजाक उड़ाने के लिए ब्रिटिश मीडिया में इस किस्से को खूब उछाला गया। इस घटना के बाद से जोसेफिन नेपोलियन की नज़रों से उतर गई। लौट कर नेपोलियन उसे छोड़ देना चाहता था। लेकिन जोसेफिन के आंसुओं से वह पिघल गया। शादी नहीं टूटी लेकिन नेपोलियन टूट गया था। इसके बाद उसके जोसेफिन से कभी संबंध सामान्य नहीं हो पाए। नेपोलियन ने अगले ही साल मिस्र में एक फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व किया। इस अभियान के दौरान  नेपोलियन का अपने एक जूनियर अफसर की पत्नी, पॉलीन फोएरेस से इश्क हो गया। उसे फ्रांसिसी सैनिक ‘नेपोलियन की क्लियोपेट्रा’ कहते थे। वह खूबसूरत थी। सैन्य अभियान पर सैनिकों को अपनी पत्नी को साथ ले जाने का नियम नहीं था। लेकिन शादी के तुरंत बाद ही फोएरेस सैनिक के वेश में अपने पति के साथ पानी के जहाज पर सवार हो गई थी। ये उनका रोमांचक हनीमून था। बाद में नेपोलियन से संबंध के बाद उसके पति ने उसे तलाक दे दिया।

सैन्य अफसर से जोसेफिन के प्रेम की घटना के बाद जोसफीन के जीवन में कोई और नहीं आया। लेकिन नेपोलियन बदल गया था। उसने कई औरतों से संबंध बनाए। राजा बनने से पहले उसका एक चर्चित वाक्य था- ‘शक्ति मेरी रखैल है।’ याद कीजिए यही वही फ्रांस था जिसके राजा लुई चौदहवे ने कभी कहा था-‘मैं ही राष्ट्र हूं।’

डे वाडेय- लेडी-इन-वेटिंग

नेपोलियन की एक और प्रेमिका थी- डे वाडेय। उसे महारानी जोसेफिन के लिए एक लेडी-इन-वेटिंग चुना गया था। नेपोलियन ने चैटो डे सेंट-क्लाउड में अपना आशियाना बनाया था। ये पेरिस शहर से कोई पांच किलोमीटर दूर है। डे वाडेय ने यहीं लेडी-इन-वेटिंग की शपथ ली थी। डे वाडेय सुंदर थी, अच्छा गाती थी, बहुत जल्द लोगों से दोस्ती कर लेती थी। वह नेपोलियन के साथ पानी के जहाज की यात्रा पर निकल गई। इस यात्रा पर, कमउम्र डे वाडे ने नेपोलियन को अपने वश में कर लिया। जल्द ही उनके प्रेम के किस्से पेरिस में फैल गए। एक दिन जोसेफिन ने उसे सेंट माउंट के महल में नेपोलियन के साथ रंगे हाथ पकड़ लिया। कहते हैं तब नेपोलियन और जोसेफिन में खूब झगड़ा हुआ। नेपोलियन ने जोसेफिन से तलाक तक मांग लिया। दोनों में बातचीत बंद हो गई। डे-वाडेय से इस्तीफा ले लिया गया। जोसेफिन अपनी बेटियों के पास चली गई, जो उसके पहले पति से थीं। लेकिन जल्द ही उनमें समझौता हो गया। पोप पायस VII की मौजूदगी में 2 दिसंबर 1804 को इसी नोट्रे डेम डे पेरिस में राज्याभिषेक समारोह  हुआ जिसमें एक पूर्व-व्यवस्थित प्रोटोकॉल के बाद, नेपोलियन ने पहले खुद को ताज पहनाया, फिर अपनी पत्नी की घोषणा करते हुए अपनी प्रेमिका जोसेफिन के सिर पर फ्रांस की महारानी का मुकुट रख दिया।

(देश दर देश घुमक्कड़ी का दिलचस्प वृतान्त ‘ओ फकीरा मान जा’ पुस्तक का अंश। लेखक दयाशंकर शुक्ल सागर। राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली)