डॉ.मयंक चतुर्वेदी ।
भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित भारतीय पुरातत्वविद् के.के. मोहम्मद साहब का काम पुरातत्व के क्षेत्र में इतना अधिक है कि उनका नाम आज विश्व विख्यात है। इन्हें इबादत खाना, प्रमुख बौद्ध स्तूपों और स्मारकों की खोज का श्रेय दिया जाता है। अपने करियर के दौरान, बटेश्वर परिसर के जीर्णोद्धार का काम किया, नक्सल विद्रोहियों और डकैतों को सहयोग करने के लिए सफलतापूर्वक राजी किया , साथ ही दंतेवाड़ा और भोजेश्वर मंदिरों का जीर्णोद्धार और जीर्णोद्धार किया ।

इन्होंने ही बाबरी की खुदाई कर राम जन्मभूमि मंदिर के बारे में महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले थे और उस जगह एक प्राचीन मंदिर होने की बात बताई थी। उन्हें बाबरी मस्जिद के पश्चिमी हिस्से में एक प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले थे, जो गुर्जर-प्रतिहार राजवंश द्वारा 10वीं और 11वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था। इसके पूर्व के अवशेष भी इन्होंने खोज निकाले थे। आपने दिल्ली में प्रतिकृति संग्रहालय के निर्माण की अवधारणा को भी सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया , जिसमें भारतीय मूर्तियों और पत्थर पर नक्काशीदार मूर्तियों की प्रतिकृतियां प्रदर्शित की गई हैं। इसके अतिरिक्त भी पुरातत्व से जुड़े अन्य कई सफल प्रयास इनके खाते में दर्ज हैं।

Archaeologist KK Muhammed, who said Ram temple existed in Ayodhya, alleges ASI paralysed post 2014, Archaeologist KK Muhammed, Ram temple existed in Ayodhya, ASI paralysed 2014

ऐसे प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट के.के.मोहम्मद साहब ने काशी और मथुरा मन्दिर क्षेत्र को लेकर चल रहे विवाद पर एक महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया है। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को “बड़ा दिल” दिखाते हुए काशी और मथुरा के स्थलों को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए, क्योंकि इन स्थानों में हिंदुओं की गहरी आस्था है। उन्होंने ज्ञानवापी और शाही ईदगाह मस्जिदों को भी हिंदुओं को सौंपने का सुझाव  यह कहते हुए भी दिया है कि यही इस मुद्दे का एकमात्र समाधान है। इसके साथ ही वे यह भी कहते हैं कि इन स्थानों से जुड़ी मस्जिदों के लिए मुसलमानों की कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं है और मुसलमानों को ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के लिए खुद आगे आना चाहिए।

Ayodhya Kashi Mathura shrines - myIndiamyGlory

के.के. मोहम्मद् साहब इतना कहकर ही नही रुकते हैं, वे आगे अपनी बातों में यह भी जोड़ते हैं कि भारत आज सेक्युलर है, तो हिन्दुओं की वजह से है, हिन्दू यहाँ बहुसंख्यक हैं, इसलिए देश सेक्युलर है। मुसलमानों को इसका शुक्रगुजार होना चाहिए। यदि मुसलमान बहुसंख्यक होते, तो भारत की धर्मनिरपेक्षता बनाए रखना मुश्किल होता। आजादी के बाद मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनाया गया था, जबकि हिंदुओं को भारत दिया गया, फिर भी हिन्दुओं ने इसे हिन्दू देश नहीं बनाया, सेक्युलर रखा और इसके लिए मुसलमानों को आभार व्यक्त करना चाहिए।

वस्तुतः  इतिहास साक्षी है कि दुनिया में इस्लाम का प्रसार तलवार के बल पर हुआ। लोगों को इस्लाम कबूलने के लिए मजबूर किया। उनके पूजा-स्थलों को ध्वस्त किया और उनके मलबे से मस्जिदों का निर्माण किया।भारत में भी इस्लामी लुटेरों द्वारा  यही किया गया। अभी भी भारत में सैकड़ों ऐसी मस्जिदें हैं, जिनकी दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं के चित्र या सनातन धर्म के अन्य प्रतीक चिह्न दिखाई देते हैं।

मुस्लिम शासकों ने 60,000 हिंदू मंदिरों को तोड़ा था और उनमें से 3,000 मंदिरों की जगह मस्जिदें बनाई थीं, यह तथ्य सर्वविदित है। 1989 में अरुण शौरी ने एक प्रसिद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति मौलाना हकीम सैयद अब्दुल हाई के बारे में बताया था कि उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें से एक किताब ‘हिंदुस्तान की मस्जिदें’ है, जिसमें 17 पन्नों का अध्याय था। उसमें मस्जिदों का संक्षिप्त विवरण लिखा गया था, जिसमें बताया गया था कि कैसे मस्जिदों के निर्माण के लिए हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था।

Kashi- Mathura: Will Temple Politics be Revived Ram Puniyani :: Indian Currents: Articles

राजस्थान स्टेट आर्काइव्ज बीकानेर में मुगलों के सैकड़ों पत्र सुरक्षित रखे गए हैं जिसमे औरंगजेब के भी बहुत सारे पत्र हैं जिसमे ये मंदिरों को तोड़ने, हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने पर इनाम की घोषणा, दिवाली पर पटाखे जलाने को प्रतिबंधित करने का आदेश भी शामिल हैं।

वर्ष 1990 में इतिहासकार सीता राम गोयल ने अन्य लेखकों अरुण शौरी, हर्ष नारायण, जय दुबाशी और राम स्वरूप के साथ मिलकर ‘हिंदू टेम्पल: व्हाट हैपन्ड टू देम’ नामक दो खंडों की किताब प्रकाशित की थी। उसमें सीता राम  गोयल ने 1800 से अधिक मुस्लिमों द्वारा बनाई गई इमारतों, मस्जिदों और विवादित ढाँचों का पता लगाया था।

देश की राजधानी दिल्ली का उल्लेख करते हुए इस पुस्तक में बताया गया है कि यहाँ कुल 72 जगहों की पहचान की गई है, जहाँ पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सात शहरों का निर्माण करने के लिए इंद्रप्रस्थ और ढिलिका को नष्ट कर दिया था। 1192 ई. तक दिल्ली हिंदू राजाओं के द्वारा शासित होती थी। तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली की सत्ता हासिल कर ली। उन्हीं दिनों कुतुबुद्दीन ऐबक, जो मोहम्मद गोरी का सेनापति था, ने श्री विष्णु हरि मंदिर और अन्य 27 जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर उन्हीं के मलबे से एक ढांचा खड़ा किया, जिसे ‘कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद’ का नाम दिया गया। वहीं मंदिर की सामग्री का उपयोग अन्य स्मारकों, मस्जिदों, मजारों और अन्य संरचनाओं में किया गया था।

इल्तुतमिश का मकबरा, खिलजी का मकबरा और अलाई दरवाजा के बारे में एएसआई के द्वारा ततकालीन अंग्रेज इंजीनियर जेडी बेगलर के नेतृत्व 1871 में कुतुब कॉम्प्लेक्स में किए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट में जेडी बेगलर ने बताया था कि इल्तुतमिश के मकबरे, कुवततुल इस्लाम मस्जिद में हिन्दू साक्ष्य साफ दिखाई देते हैं और ये स्थल इस्लामिक आक्रांताओ द्वारा जोड़ तोड़ का सबसे बड़ा निशान है। इसी तरह खिलजी के मदरसे पर एएसआई की 1926 की रिपोर्ट में इसके गुंबद को हिदू मन्दिर की कलाकृति के तहत बना हुआ बताया था।

उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मंदिरों को निशाना बनाया गया और यहां पर इस्लामिक आंधी ने हिंदुओं की कला और संस्कृति पर जरा भी रहम नहीं किया 299 मंदिरों का विध्वंश कर दिया।  इस पुस्तक के सभी लेखकों ने 142 जगहों की पुष्टि  तत्कालीन आंध्र प्रदेश में की है। पश्चिम बंगाल में 102 जगहों पर मस्जिदें, किले और दरगाह हैं, जिन्हें मुस्लिम शासकों ने मंदिर को नष्ट करके बनाया था। कर्नाटक में कुल 192 स्थान हैं। मध्य प्रदेश के 151 स्थलों का उल्लेख है। किताब में गुजरात की 170 ऐसी जगहों के बारे में बताया गया है, जहाँ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं। बिहार में कुल 77 जगहों पर मंदिर को नष्ट करके या फिर उसकी सामग्री का उपयोग करके मस्जिदों, मुस्लिम संरचनाओं, किलों आदि को बनाया गया था।

 

इसी तरह से इतिहासकारों द्वारा हरियाणा में कुल 77 स्थलों का उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक और इसके बाहर अन्य तमाम पुस्तकों में जो वर्णन आया है उससे साफ पता चलता है कि भारत के जिस भी कोने में यह इस्लामी आक्रांता गए, उन्होंने सिर्फ और सिर्फ भारत की सनातन संस्कृति-सभ्यता के ध्वजवाहक मंदिरों को नष्ट करने का ही कार्य किया। इस तरह पहले जितना भी हिंदू अत्याचार हुआ आज हिंदू समाज उन तमाम मंदिरों पर अपना दावा नहीं कर रहा है, वह तो सिर्फ मुख्य आस्था केन्द्रों  काशी और मथुरा मंदिरों की मांग कर रहा है ।

वस्तुतः  इतिहासकार के. के. मोहम्मद आज जो कह रहे हैं उनकी कहीं सभी बातों पर भारत में रह रहे संपूर्ण मुस्लिम समाज को गंभीरता से विचार करना चाहिए और जो बड़ा हृदय अब तक हिंदू समाज ने दिखाया है तथा अन्य मंदिर स्थान पर वह आज अपना दावा नहीं करता है, इसी प्रकार से मुसलमानों को भी चाहिए कि वह भारत के बहुसंख्यक हिंदू समाज के इन दो आस्था प्रतीकों एवं श्रृद्धा केन्द्रों को उन्हें स्वेच्छा और प्रसन्नता के साथ समर्पित कर दें।

(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं) 

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